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कालिदास :

यह यात ठीक ठीक समझ में नहीं प्रतिी कि ऐसी प्रवृत्ति ग्रीक लोगों की सभ्यता की बदौलत उत्पन्न हुई थी या यौन लोगों को सभ्यता को बदौलत। यहुत करके यौर लोग इसके जन्मदाता नहीं हूँ। प्रीफ लोगों के विलास-मिय जीवन का ही यह फल होगा। तथापि यह नहीं कहा जा सकता कि यह परिवर्तन एकाएक माहो.! पहले समय से इस समय के अलगाव की सीमा नही निधित की जा सकती। ऐसा-निधय करना मानों मनुष्य की उन्नति के प्रारतिक नियमों का विरोध करना है। इस समय की प्रत्येक विद्या और शिल्प-कला किसी न किसी रूप में मायीन भारत में भी विधमान् थी। प्राचीन समय में भी कानून थे। शिल्प और नाटक की उत्पत्ति भी पहत प्राचीन समय में थी। योग की किया तो महुन पहले से पर्तमान् पी। पाश्चमीतिक जीवन के भी जो चित्र रघुवंश में हैं उनमें काही अच्छे चित्र रामायण और महाभारत में दिखाये गये है। किन्तु भेर इतना ही है कि पहले ये याने किमी किमी श्रेष्ठ कल्पनाशाले विद्वान् के द्वारा होतीच, पर कालिदास के समय में ये प्रधाननासे फैल गई थी, अग्छ अच्छलांग माना घर-पार इन्ही कामों में व्यय करते थे। उजना की पदोमत, बौद्ध-पम्मक, विकारागवार्य के प्रार-

भाष के बीच की शमादियों में, लोगों का जापनपुरी

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