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[ कालिदास के समय का भारत।

और समाज का संस्कार करने में व्यास ने यहुत सहायता की है। ट्रयास पड़े आदमियों को उस राजनीति के प्रचार के पक्षपाती ये जो देश के प्रधान पुरुषों के मनोऽनुकूल थी। ये चाहते थे कि देश में एक ऐसा साम्राज्य स्थापित हो जो उच्च प्रवृत्ति का उदाहरण समझा जा सके और जो नीच प्रवृति को दयाने या इसको दूर करने में समर्थ हो। घाल्मीकि और व्यास के विचारों में अन्तर है। पारमीकि ने देश की सामयिक स्थिति का खयाल न करके प्राचीन समय के आदर्श को ग्रहण किया। पर व्यास का सारा लक्ष्य अपने ही समय की स्थिति पर था। उसके साथ सहानुभूति दिखाते हुए ये उसे, कुछ समयानन्तर, आदर्श-रूप में परिणत करने की आशा रखते थे। पाल्मीकि पुगने और प्रतिष्ठित राजनियमों के पक्षपाती थे। ये समाज को प्राचीन समय के आदर्श पर ले जाना चाहते थे। किन्तु व्यास राजनीति के नयीन संस्कार के पक्षपाती थे। इसीसे उन्होंने प्रचलित नियमों का विरोध नहीं किया। उन्होंने उन नियमों को भावी संस्कार का आधार माना और निष्काम-धर्म की शिक्षा से उन्हें आदर्श-रूप में परिणत किया।

व्यास का बुद्धि-थल घड़ा प्रयल था। ध्यान, धारणा, अयात्म-विद्या और नैतिक विचारों में उनका मन यदुत लगता था। उन्होंने प्रचलित नीति-नियमों की परीक्षा

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