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[ कालिदास के विषय में जैन पंडितों की एक निर्मूल कल्पना ।

की घेटा कर रहे.हैं। यह चेष्टा श्री जैन-सिद्धान्त-भास्कर नामक त्रैमासिक पत्र के सम्पादक ने की है। श्रारा में कोई जोन-सिद्धान्त-भवन है। उसीको उद्देश-सिद्धि के लिए यह पत्र निकला है। जैनियों के इतिहास से सम्बन्ध रखने- घाले लेस आदि प्रकाशित करने के लिए यह पन निकाला गया है। इस पत्र के सम्पादक महाशय ने पूर्वोक्त श्राख्या- यिका को नकल करके लिखा है-"चिनयसेन के अनुरोध से कालिदास के अभिमान-चमनार्थ जिनसेन ने मेघदूत के श्लोकों को परिवेष्टित करते हुए पार्धाभ्युदय रचा"।

• पायाभ्युदय की प्रस्तायना में काशिनाथ घापूजी 'पाठक की सम्मति को देखकर भी जैन-भास्कर के सम्पादक का ऐसा लिखना पड़े साहस का काम है। जो पत्र ऐतिहा- सिक खोज का फल प्रकाशित करने के लिए निकाला गया है उसमें ऐतिहासिक तत्वों का उद्घाटन यहुत सोच समझकर करना चाहिए। भास्कर के सम्पादक खुद ही लिखते हैं कि पार्थ्याभ्युदय की पूर्ति लगभग शक संवत् ७३६ में हुई हे"। अर्थात् यह काव्य लगभग १४ ईसपी का है। मरन्तु जैसा कि पाठक महाशय ने पार्थ्याभ्युदय की प्रस्ता- पना में लिखा है-स समय के पहले के करियों के लेखों में कालिदास का नाम याया है। शिलालेखों और हाम्रपत्रों

- से यह निधित है कि थानेश्वर का राजा हर्षवर्द्धन सन्

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