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पालिदाम।]

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मेघदूत के एक एक दो दो चरणों से घेरित करके "पाश्वर्या- भ्युदय" नाम फा काम्य बना डाला। पाठवें रोज जर के उसे सभा में सुना चुके तप कालिदास से यथार्थ बात उन्होंने कह दी और उनका यदुन कुछ सन्मान किया।

___ यह काव्यावतार नामक परिशिष्ट टीकाकार ने थपनी तरफ से इस काव्य के अन्त में लगा दिया है। श्रीयुत प्रश्नालाल याक्तीशल ने इसे पार्थाभ्युदय के अन्त में ज्यों का त्यों रखकर इस काव्य को बम्बई से प्रकाशित कराया है। परन्तु पुस्तक के प्रारम्भ में, वाकलीवालजी की प्रार्थना पर, पूना के दक्षिण-कालेज के भूत-पूर्व संस्कृतामा- पक्र पण्डित काशिनाथ बापूजी पाठक, पी० ए० का लिखा हुमा एक छोटा सा उपोद्घात है। उसमें पाठक महाशयः ने साफ-साफ लिख दिया है कि टीकाकार का यह किस्सा सही नहीं, क्योंकि कालिदास जिनसेन के बहुत पहले हुए है। पाठक महाशय की इस सम्मति को पार्धाग्युदय के प्रकाशक ने, बिना किसी काट-छाँट या रीका-टिप्पणी के, प्रकाशित कर दिया है। उनकी यह उदारता प्रशंसनीय है। .....

- परन्तु हम देखते हैं कि इस आख्यायिका के आधार पर जैन-पण्डित, ऐतिहासिक तत्व पर हरताल लगाकर, 'कालिदास को जिनसेन का समकालीन बनाने और उनको

'अभिमानी-विद्वानों का अपमान करनेयाला सिद्ध करने

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