पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/९९

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१८ अध्याय ४ परिपथ के तीन सूत्र 16 1 तरह, 'कुल परिचलन प्रक्रिया" के लिए कु प का प्रयोग करते हुए तीनों सूत्र इस प्रकार प्रस्तुत किये जा सकते हैं : १. द्र-मा मा'-द्र' २. उ कुप ३. कु प ... उ (मा') यदि हम तीनों रूपों को संयुक्त करें, तो प्रक्रिया के सभी पूर्वाधार उसके परिणाम की स्वयं उसके द्वारा उत्पन्न पूर्वाधार की तरह प्रकट होते हैं। प्रत्येक तत्व प्रस्थान विंदु , संक्रमण बिंदु और प्रत्यावर्तन बिंदु की तरह प्रकट होता है। कुल प्रक्रिया स्वयं को उत्पादन तथा परिचलन प्रक्रियायों की एकान्विति के रूप में प्रस्तुत करती है। उत्पादन प्रक्रिया परिचलन प्रक्रिया का माध्यम बन जाती है, और इसी प्रकार परिचलन प्रक्रिया उत्पादन प्रक्रिया का। तीनों परिपथों में यह सामान्यता होती है : मूल्य का स्वप्रसार निर्धारक उद्देश्य , प्रेरक हेतु होता है। सून १ में यह बात उसके रूप में व्यंजित होती है। मूत्र २ उ से शुरू होता है, जो वेशी मूल्य के सर्जन को ही प्रक्रिया है। सूत्र ३ में परिपथ की शुरुयात स्वप्रसारित मूल्य से और समाप्ति नये स्वप्रसारित मूल्य से होती है, भले ही गति की प्रावृत्ति उसी पैमाने पर हो। चूंकि ग्राहक के लिए मा द्र का अर्थ द्र मा और विक्रेता के लिए द्र मा का अयं मा द्र होता है, इसलिए पूंजी का परिचलन पण्य वस्तुओं के केवल साधारण रूपांतरण को प्रस्तुत करता है और उससे संबंधित प्रचल द्रव्य की राशि पर विकसित किये गये नियम (Buch I, Kap. III, 2) • यहां भी लागू होते हैं। किंतु यदि हम इस प्रौपचारिक पक्ष से ही चिपके न रहें, वरन विभिन्न वैयक्तिक पूंजियों के रूपांतरणों के वास्तविक संबंध पर विचार करें, दूसरे शब्दों में, यदि हम समग्र मामाजिक पूंजी की पुनरुत्पादन प्रक्रिया की प्रांशिक गतियों की हैसियत से वैयक्तिक पूंजियों के परिपथों के प्रांतरिक संबंध का अध्ययन करें, तो द्रव्य और माल का रूप परिवर्तन मान इस संबंध की व्याख्या न कर सकेगा। . • हिन्दी संस्करण : अत्र्याय ३, २१-सं०