पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/८८

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८७ माल पूंजी का परिपथ - है। द्र' =द्र + द्र, और उ' = उ+ उ. द्र और उ के रूप में नयी प्रक्रिया शुरू करते हैं। रूप ३ में प्रारम्भ विन्दु मा को मा' कहना चाहिए, भले ही परिपथ उसी पैमाने पर नवीकृत किया गया हो। इसका कारण यह है कि रूप १ में द्र' अपने में नया परिपथ शुरू करने के साथ द्रव्य पूंजी द्र का, उस पूंजी मूल्य के पेशगी द्रव्य रूप का कार्य करता है, जिसे वेशी मूल्य पैदा करना है। पेशगी द्रव्य पूंजी का आकार प्रथम परिपथ के दौरान उपलब्ध संचय द्वारा परिवर्धित होकर बढ़ जाता है। किन्तु पेशगी द्रव्य पूंजी का आकार चाहे ४२२ पाउंड हो या ५०० पाउंड हो, उससे इस तथ्य में अन्तर नहीं पड़ता कि वह सादे पूंजी मूल्य के रूप में प्रकट होती है। द्र' अव स्वप्रसारित पूंजी अथवा वेशी मूल्य से परिपूर्ण पूंजी के रूप में, पूंजी सम्बन्ध के रूप में विद्यमान नहीं होता। वस्तुतः वह अव केवल अपनी प्रक्रिया के दौरान ही स्वयं को प्रसारित करेगा। यही वात उ उ' के बारे में सही है ; उ' को उ के रूप में, उस पूंजी मूल्य के रूप में निरन्तर कार्य करते जाना होगा, जो बेशी मूल्य का उत्पादन करेगा और अपना परिपथ नये सिरे से शुरू करना होगा। इसके विपरीत माल पूंजी का परिपथ पूंजी मूल्य मात्र के साथ - उद्घाटित नहीं होता, वरन ऐसे पूंजी मूल्य के साथ उद्घाटित होता है, जो माल रूप में परिवर्धित हो चुका है। अतः प्रारम्भ से ही उसमें न केवल माल रूप में विद्यमान पूंजी मूल्य का ही, वरन वेशी मूल्य का परिपथ भी समाहित होता है। फलतः यदि साधारण पुनरुत्पादन इस रूप में होता है, तो अन्तस्थ विन्दु पर मा प्रारम्भ विन्दु पर मा' के आकार के बराबर होता है। यदि बेशी मूल्य का एक भाग पूंजी परिपथ में प्रवेश करे, तो यद्यपि अंत में मा' के वदले मा", परिवर्धित मा', प्रकट होता है, फिर भी इसके वादवाला परिपथ फिर मा द्वारा उद्घाटित होता है। पूर्ववर्ती परिपथ के मा' की अपेक्षा यह मा केवल अधिक बड़ा होता है, इसमें संचित पूंजी मूल्य अधिक बड़ा होता है। अतः वह अपना नया परिपथ अपेक्षाकृत अधिक बड़े, नवसृजित वेशी मूल्य से प्रारम्भ करता है। कुछ भी हो, मा सदैव माल पूंजी की हैसियत से परिपथ का उद्घाटन करता है, जो पूंजी मूल्य+वेशी मूल्य के बरावर होती है। मा की हैसियत से मा' किसी वैयक्तिक औद्योगिक पूंजी के परिपथ में उस पूंजी का एक रूप वनकर नहीं, वरन जहां तक उत्पादन साधन किसी दूसरी औद्योगिक पूंजी का उत्पाद हैं, इस दूसरी पूंजी का एक रूप वनकर प्रकट होता है। पहली पूंजी की द्र- मा (अर्थात द्र - उ सा) क्रिया इस दूसरी पूंजी के लिए मा-द्र' होती है। परिचलन क्रिया द्र.-मार में श्र और उ सा के सम्बन्ध एक से होते हैं, क्योंकि वे अपने विक्रेताओं के हाथ में पण्य वस्तुएं हैं - एक ओर श्रमिक हैं, जो अपनी श्रम शक्ति बेचते हैं, दूसरी ओर उत्पादन साधनों का मालिक है, जो इन्हें वेचता है। ग्राहक के लिए , जिसका धन यहां द्रव्य पूंजी का कार्य करता है, श्र और उ सा केवल तब तक माल का कार्य करते हैं, जब तक कि वह उन्हें खरीद नहीं लेता, अर्थात जव तक वे द्रव्य रूप में विद्यमान उसकी पूंजी के सामने दूसरों के माल. की हैसियत से रहते हैं। यहां उ सा और . , श्र उसा .