पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/८३

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पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपय . उसकी नन्तान वेशी मूल्य के बीच सम्बन्ध के रूप में स्थिर होते हैं, यह सम्बन्ध दोनों में- पहले तो द्रव्य रूप में और दूसरे, माल रूप में- प्रकट हो जाता है। इससे स्थिति में जरा भी अन्तर नहीं पाता। फलतः इस सम्बन्ध का मूल द्रव्य में उसके द्रव्य होने के कारण या माल में उसके माल होने के कारण निहित किन्हीं गुणधर्मों या कार्यों में नहीं होता। दोनों ही स्थितियों में पूंजी का अपना विशेप गुण, यह गुण कि वह मूल्य उत्पन्न करनेवाला मूल्य है, केवल परिणाम के रूप में व्यंजित होता है। मा’ सदा ही उ के कार्य का उत्पाद होता है, और द्र' सदा ही मा' का मात्र प्रौद्योगिक पूंजी के परिपथ में बदला हुअा रूप होता है। इसलिए जैसे ही सिद्धिकृत द्रव्य पूंजी अपना द्रव्य पूंजी का विशेष कार्य फिर अपनाती है , वैसे ही वह द्र=द्र+द्र में समाहित पूंजी सम्बन्ध की व्यंजना करना बन्द कर देती है। द्र द्र' का दौर जब पार हो चुकता है और द्र' नये सिरे से परिपथ प्रारम्भ करता है, तब वह द्र' रूप में नहीं, वरन द्र रूप में सामने आता है, फिर चाहे द्र' में समाहित समस्त वेशी मूल्य पूंजीकृत हो चुका हो। हमारे उदाहरण में पहले परिपथ की ४२२ पाउंड द्रव्य पूंजी के बदले दूसरा परिपय ५०० पाउंड की द्रव्य पूंजी से शुरू होता है। जिस द्रव्य पूंजी से परिपथ शुरू होता है, वह पहले की अपेक्षा ७८ पाउंड अधिक है। यह अन्तर तब अस्तित्व में प्राता है, जब एक परिपथ से दूसरे की तुलना की जाती है, किन्तु ऐसी तुलना प्रत्येक परिपथ विशेष के भीतर नहीं की जा सकती। द्रव्य पूंजी के रूप में पेशगी दिये गये ५०० पाउंड , जिनमें ७८ पाउंड पहले वेशी मूल्य के रूप में विद्यमान थे, उनको उसके अलावा और कोई भूमिका नहीं होती कि जैसी किन्हीं अन्य ५०० पाउंड की होगी, जिनसे कोई दूसरा पूंजीपति अपने पहले परिपथ की गुरूयात करता है। यही वात उत्पादक पूंजी के परिपथ में घटित होती है। संवर्धित उ फिर से काम शुरू करने पर उ की हैसियत से वैसे ही क्रियाशील होता है, जैसे साधारण पुनरुत्पादन उ उ में उ हुआ था। द्र' - मा< की मंजिल में संवर्धित परिमाण केवल मा द्वारा ही मूचित होता है , श्र' द्वारा अथवा उ सा द्वारा नहीं। चूंकि मा श्र और उ सा का जोड़ है , इसलिए मा' इस बात को अच्छी तरह प्रकट कर देता है कि उसमें समाहित श्र और उ सा का जोड़ मूल उ से अधिक है। दूसरे, श्र' और उ सा' पदों का प्रयोग ग़लत होगा, क्योंकि हम जानते हैं कि पूंजी की वृद्धि का अर्थ होता है उसके मूल्य की संरचना में परिवर्तन , और जैसे-जैसे यह परिवर्तन प्रगति करता है, वैसे-वैसे उ सा के मूल्य में वृद्धि होती है, और श्र के मूल्य में, सापेक्ष रूप में और वहुधा निरपेक्ष रूप में भी ह्रास होता है। उसा . ३. द्रव्य का संचय 1 जो द्रव्य रूप में परिवर्तित वेशी मूल्य है, तुरंत ही उस पूंजी मूल्य में , जो प्रक्रिया के अन्तर्गत है, जोड़ा जाता है कि नहीं, और इस प्रकार पूंजी द्र के साथ , जिसका परिमाण प्रवद्र' है, परिपथ में प्रवेश पा सकता है या नहीं, यह उन परिस्थितियों पर निर्भर है, जो