पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/८२

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उत्पादक पूंजी .का. परिपथ ८१ 1 2 - 1 उ में उ इसका द्योतक नहीं है कि वेशी मूल्य उत्पन्न किया जा चुका है , वरन इसका है कि उत्पन्न किये हुए वेशी मूल्य का पूंजीकरण हो गया है। अतः वह इसका द्योतक है कि पूंजी संचित हो चुकी है और इसलिए उ के विपरीत उ में मूल पूंजी मूल्य तथा पूंजी मूल्य की गति के कारण पूंजी का संचित मूल्य समाहित हैं। यदि हम द्र' को द्र द्र' की सादी समाप्ति के रूप में और मा को भी, जैसा वह इन सभी परिपथों में प्रकट होता है, अलग से देखें , तो हम पायेंगे कि वे गति नहीं, उसका परिणाम - माल या द्रव्य के रूप में सिद्धिकृत पूंजी मूल्य के स्वप्रसार को और इसलिए पूंजी मूल्य को द्र+द्र अथवा मा+मा के रूप में, पूंजी मूल्य को उसके वेशी मूल्य के सम्बन्ध रूप में, उसकी सन्तान के रूप में व्यंजित करते हैं। वे यह परिणाम स्वप्रसारित पूंजी मूल्य के विभिन्न परिचलन रूपों की हैसियत से प्रकट करते हैं। किन्तु जो स्वप्रसार हो चुका है, वह न तो मा' के रूप में और न ही द्र' के रूप में स्वयं द्रव्य पूंजी अथवा माल पूंजी का कार्य होता है। प्रौद्योगिक पूंजी के विशेष कार्यों के अनुरूप विशेष, विभेदित रूपों, अस्तित्व के रूपों की हैसियत से द्रव्य पूंजी केवल द्रव्य कार्यों और माल पूंजी केवल माल कार्यों को सम्पन्न कर सकती है। इन दोनों में जो अन्तर है, वह केवल द्रव्य और माल का अन्तर है। इसी प्रकार उत्पादक पूंजी के रूप में औद्योगिक पूंजी उन्हीं तत्वों को अपने भीतर समाहित कर सकती है, जो उत्पादों का सृजन करनेवाली अन्य किसी भी श्रम प्रक्रिया में समाहित होते हैं : एक अोर श्रम की वस्तुगत परिस्थितियां ( उत्पादन साधन ), दूसरी ओर उत्पादक ( उद्देश्यनिष्ठ ) ढंग से कार्यशील श्रम शक्ति। जैसे. उत्पादन क्षेत्र में प्रौद्योगिक पूंजी केवल ऐसे संयोग में ही विद्यमान रह सकती है, जो आम तौर से उत्पादन प्रक्रिया की, और इस प्रकार गैरपूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया की आवश्यकताएं पूरा करता हो, वैसे ही. परिचलन क्षेत्र में वह उसके अनुरूप केवल दो रूपों में विद्यमान रह सकती है, माल के रूप में और द्रव्य के रूप में। लेकिन चूंकि उत्पादन के तत्वों की समग्रता आरम्भ में ही अपने को उत्पादक पूंजी के रूप में प्रकट कर देती है, क्योंकि श्रम शक्ति ऐसी श्रम शक्ति है, जो दूसरों की है, और उसके मालिकों से पूंजीपति ने उसे वैसे ही ख़रीदा है, जैसे दूसरे माल स्वामियों से उसने उत्पादन साधन ख़रीदे हैं, इसलिए स्वयं उत्पादन प्रक्रिया यों प्रकट होती है, मानो वह प्रौद्योगिक 'पूंजी का उत्पादक कार्य हो। वैसे ही द्रव्य और माल उसी प्रौद्योगिक पूंजी के परिचलन रूपों की हैसियत से प्रकट होते हैं। इसलिए द्रव्य और माल के कार्य. इस पूंजी के परिचलन के कार्यों की तरह प्रकट होते हैं। परिचलन के ये कार्य या तो उत्पादक पूंजी के कार्यों को शुरू करते हैं या फिर खुद उनसे उत्पन्न होते हैं। यहां द्रव्य कार्य और माल कार्य साथ-साथ द्रव्य पूंजी और माल पूंजी के कार्य भी हैं। ऐसा केवल इसलिए होता है कि वे उन कार्यों के रूपों की हैसियत से परस्पर सम्बद्ध हैं, जिन्हें अपने परिपथ की विभिन्न मंजिलों में औद्योगिक पूंजी को सम्पन्न करना पड़ता है। इसलिए द्रव्य रूपों में द्रव्य के , और माल रूपों में माल के जो अपने गुणधर्म और कार्य होते हैं, उन्हें पूंजी रूप में उनके गुण से निकालने की कोशिश करना ग़लत है और इसके विपरीत उत्पादक पूंजी के गुणधर्मो को उत्पादन साधनों में उसके अस्तित्व की पद्धति से निकालना भी उतना ही ग़लत है। जैसे ही द्र' अथवा मा द्र+द्र अथवा मा+मा के रूप में , अर्थात पूंजी मूल्य और NISO