७० पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपय 1 . 1 . मा' का कल्पित अनुरूप अंश) उसे केवल रूपान्तरित ही करता है- पहले द्रव्य में और द्रव्य से फिर कुछ अन्य मालों में, जो वैयक्तिक उपभोग में काम आते हैं। लेकिन यहां हमें एक छोटी सी बात नजरन्दाज़ न कर देनी चाहिए कि मा माल मूल्य है, जिसके लिए पूंजीपति को कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ा, वह वेशी श्रम का साकार रूप है, और इसी कारण वह मूलतः माल पूंजी मा के संघटक अंश के रूप में मंच पर प्रकट हुअा था। यह मा अपने अस्तित्व के स्वरूप से ही प्रक्रियाधीन पूंजी मूल्य के परिपथ से बंधा रहता है। यदि यह परिपथ अवरुद्ध होने लगे या उसमें कोई विघ्न आ जाये, तो मा का उपभोग ही नहीं, वरन मा का स्थान लेनेवाले मालों की शृंखला का निपटान भी सीमित या पूर्णतः समाप्त हो जाता है। यही स्थिति तव भी उत्पन्न होती है, जब मा'-द्र' की परिणति विफलता में होती है अथवा जव मा' का केवल एक भाग बेचा जा सकता है। हम देख चुके हैं कि पूंजीपति की आय के परिचलन को प्रकट करनेवाला मा-द्र - मा क्रम तभी तक पूंजी के परिचलन में प्रवेश करता है कि जब तक मा मा' के मूल्य का, माल पूंजी के कार्यशील रूप में पूंजी का एक भाग होता है। किन्तु जैसे ही वह द्र - मा के माध्यम से, और इस लिए मा-द्र - मा रूप के समूचे दौर में स्वतंत्रता प्राप्त करता है, उस प्राय के परिचलन का पूंजीपति द्वारा पेशगी पूंजी की गति में प्रवेश बंद हो जाता है, यद्यपि उसका उद्भव वहीं से होता है। यह परिचलन पेशगी पूंजी की गति से सम्बन्धित है, क्योंकि इसके पहले कि पूंजी हो, पूंजीपति का अस्तित्व ज़रूरी है, और उसका अस्तित्व उसके द्वारा वेशी मूल्य के उपभोग पर निर्भर है। सामान्य परिचलन के अन्तर्गत मा', उदाहरण के लिए, सूत केवल माल की हैसियत से ही कार्य करता है। किन्तु पूंजी के परिचलन के अन्तर्गत एक तत्व की हैसियत से वह माल पूंजी का कार्य करता है, जो एक ऐसा रूप है, जिसे पूंजी मूल्य वारी-बारी से धारण करता और तज देता है। सौदागर के हाथ विक जाने पर वह सूत पूंजी की उस वृत्तीय गति से निकाल दिया जाता है, जिसका वह उत्पाद है। फिर भी एक माल की हैसियत से वह सदैव सामान्य परिचलन की परिधि में गतिशील रहता है। मालों की उसी एक मात्रा का परिचलन जारी रहता है, बावजूद इस तथ्य के कि कातनेवाले की पूंजी के स्वतंत्र परिपथ में अव यह एक दौर की हैसियत से नहीं रह गयी है। अतः पूंजीपति मालों की जिस मात्रा को परिचलन में डालता है, उनका वस्तुतः निश्चायक रूपान्तरण , मा-द्र, उपभोग में उनकी आखिरी निकासी, देश-काल के विचार से उस रूपान्तरण से पूर्णतः विच्छिन्न हो सकती है, जिसके अन्तर्गत मालों की यह माना उसकी माल पूंजी की हैसियत से कार्य करती है। पूंजी के परिचलन में जो रूपान्तरण सम्पन्न हो चुका है, उसी को सामान्य परिचलन के क्षेत्र में सम्पन्न करना अभी शेष रहता है। यदि यह सूत किसी अन्य प्रौद्योगिक पूंजी के परिपथ में प्रवेश करे, तो इस स्थिति में तनिक भी अन्तर न आयेगा। सामान्य परिचलन में सामाजिक पूंजी के विभिन्न स्वाधीन अंशों के परिपथ आपस में वैसे ही गुंथे हुए होते हैं, अर्थात इस परिचलन में अलग-अलग पूंजियों की समग्रता वैसे ही होती है, जैसे उन मूल्यों के परिचलन में, जो वाज़ार में पूंजी की हैसियत से नहीं डाले जाते, वरन व्यक्तिगत उपभोग में प्रवेश करते हैं। 1
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