१५ अध्याय २ उत्पादक पूंजी का परिपथ . उत्पादक पूंजी के परिपथ का सामान्य सूत्र उ मा'-द्र'-मा उ है। यह उत्पादक पूंजी की कार्यशीलता के नियतकालिक नवीकरण का, अतः उसके पुनरुत्पादन अथवा पुनरुत्पादन प्रक्रिया के रूप में उसकी मूल्य के स्वविस्तार की ओर लक्षित उत्पादन प्रक्रिया का द्योतक है। यह वेशी मूल्य के न सिर्फ उत्पादन , बल्कि नियतकालिक पुनरुत्पादन का भी द्योतक है। यह औद्योगिक पूंजी के उसके उत्पादक रूप में कार्य का द्योतक है और यह कार्य एक बार ही सम्पन्न नहीं होता, वरन उसकी नियतकालिक आवृत्ति होती है जिससे नवीकरण का निर्धारण प्रारम्भ विन्दु द्वारा होता है। मा' का एक अंश ( कुछ मामलों में औद्योगिक पूंजी के निवेश की विभिन्न शाखाओं में ) उत्पादन साधनों की हैसियत से उसी श्रम प्रक्रिया में सीधे प्रवेश कर सकता है, जिससे वह माल के रूप में वाहर निकला था। इससे केवल इस अंश के मूल्य का वास्तविक द्रव्य में अथवा प्रतीक द्रव्य में रूपान्तरण बच जाता है, अन्यथा माल अपनी स्वतंत्र अभिव्यंजना केवल लेखा द्रव्य के रूप में पाता है। मूल्य का यह अंश परिचलन में प्रवेश नहीं करता। इस प्रकार उत्पादन प्रक्रिया में वे मूल्य प्रवेश करते हैं, जिनका प्रवेश परिचलन प्रक्रिया में नहीं होता। यही बात मा' के उस अंश के लिए सही है, जिसका उपभोग वेशी उत्पाद के अंश की हैसियत से वस्तुरूप में पूंजीपति करता है। किन्तु पूंजीवादी उत्पादन के लिए इसका कुछ भी महत्व नहीं है। यदि वह कहीं विचारणीय है, तो केवल कृषि में ही। इस रूप में दो बातें एकदम अत्यंत स्पष्ट उभरकर सामने आती हैं। पहली यह कि प्रथम रूप द्र द्र' में उत्पादन प्रक्रिया, उ का कार्य द्रव्य पूंजी के परिचलन में अंतरायण या व्याघात उत्पन्न करता है और उसके द्र-मा और मा'-द्र' के दोनों दौरों के बीच केवल मध्यस्थ का काम करता है, यहां प्रौद्योगिक पूंजी की समस्त परिचलन प्रक्रिया, परिचलन के दौर में उसकी समग्र गति एक अंतरायण मात्र है। फलतः वह उस उत्पादक पूंजी के, जो पहले छोर की हैसियत से परिपथ का आरंभ और उस उत्पादक पूंजी के बीच मान संयोजक कड़ी है, जो दूसरे छोर की हैसियत से उसी रूप में, अर्थात जिस रूप में वह फिर चलना शुरू करती है, इस परिपथ का अंत करती है। स्वयं परिचलन नियत अवधि पर नवीकृत पुनरुत्पादन को प्रेरित करनेवाले साधन के रूप में प्रकट होता है, जो नवीकरण द्वारा निरन्तर बन जाता है। ... 5-1150
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