द्रव्य पूंजी का परिपथ 7 सिद्धिकृत रूप में , द्रव्य के उस रूप में, जिसने द्रव्य का सृजन किया है, द्रव्य पूंजी ही है। किन्तु यह पहली मंजिल में द्रव्य पूंजी के कार्य द्र - मा <3 से भिन्न है। इस पहली मंजिल में द्र का द्रव्य की हैसियत से परिचलन होता है। वह द्रव्य पूंजी के कार्य ग्रहण कर लेता है, क्योंकि अपनी द्रव्य अवस्था में ही वह द्रव्य कार्य सम्पन्न कर सकता है, अपने को उ के तत्वों में,श्र और उ सा में , परिवर्तित कर सकता है, जो मालों की हैसियत से उसके सामने होते हैं। इस परिचलन क्रिया में वह केवल द्रव्य की हैसियत से कार्य करता है। किन्तु चूंकि यह क्रिया पूंजी मूल्य की प्रक्रिया में पहली मंज़िल है, इसलिए ख़रीदे गये मालों श्र और उ सा के विशिष्ट उपयोग रूप के कारण वह साथ ही द्रव्य पूंजी का कार्य भी करती है। दूसरी ओर द्र', जिसके संघटक हैं पूंजी मूल्य द्र उसके द्वारा सृजित वेशी मूल्य द्र, स्वविस्तारित पूंजी मूल्य को, पूंजी के सम्पूर्ण परिपथ के उद्देश्य और परिणाम , उसके कार्य को प्रकट करता है। वह इस परिणाम को द्रव्य रूप में, सिद्धिकृत द्रव्य पूंजी के रूप में, इसलिए नहीं प्रकट करता कि वह पूंजी का द्रव्य रूप है, द्रव्य पूंजी है ; इसके विपरीत, वह उसे इसलिए प्रकट करता है कि वह द्रव्य पूंजी है, द्रव्य के रूप में पूंजी है, इसलिए कि पूंजी ने इस रूप में प्रक्रिया की शुरूआत कर दी है, इसलिए कि वह द्रव्य रूप में पेशगी दी गई थी। जैसा कि हम देख चुके हैं , द्रव्य रूप में उसका पुनःपरिवर्तन माल पूंजी मा' का कार्य है, द्रव्य पूंजी का नहीं। जहां तक द्र और द्र' के बीच अन्तर का सम्बन्ध है., वह (द्र) केवल मा का द्रव्य रूप है, मा की वृद्धि है। द्र' द्र+द्र के इसलिए वरावर है कि मा' मा + मा के बराबर था। इस- लिए मा' में यह अन्तर' और पूंजी मूल्य का उसके द्वारा जनित वेशी मूल्य दोनों के द्र' में , एक ऐसी धनराशि में परिवर्तित होने के कि जिसमें मूल्य के दोनों अंश स्वतन्त्र रूप में एक दूसरे के सामने आते हैं और इस कारण पृथक तथा भिन्न कार्यों में लगाये जा सकते हैं, पहले से विद्यमान रहते हैं। द्र' मा' के सिद्धिकरण का परिणाम मात्र है। द्र' और मा' दोनों केवल स्वविस्तारित पूंजी मूल्य के विभिन्न रूप हैं, जिनमें एक उसका माल रूप और दूसरा द्रव्य रूप है। दोनों में सामान्य वात यह है कि वे स्वविस्तारित पूंजी मूल्य हैं। दोनों ही मूर्त पूंजी हैं, क्योंकि यहां पूंजी मूल्य स्वयं उसी रूप में वेशी मूल्य के साथ अस्तित्वमान है, जो उसी के माध्यम से प्राप्त किया हुआ फल है और उससे भिन्न भी है, यद्यपि यह सम्बन्ध माल मूल्य के , अथवा धनराशि के दो अंशों के सम्बन्ध के असंगत रूप में ही प्रकट होता है। किन्तु पूंजी द्वारा उत्पादित वेशी मूल्य के सम्बन्ध में और उसके व्यतिरेक में पूंजी की ही और इसलिए स्वप्रसारित मूल्य की भी अभिव्यंजना होने के नाते द्र' और मा' दोनों एक ही हैं और एक ही चीज़ केवल विभिन्न रूपों में प्रकट करते हैं। वे एक दूसरे से द्रव्य पूंजी और माल पूंजी की हैसियत से नहीं, वरन द्रव्य और माल को हैसियत से भिन्न हैं। जहां तक वे स्वप्रसारित मूल्य के, उस पूंजी के अभिव्यंजक हैं, जिसने पूंजी की हैसियत से काम किया है, वहां तक वे केवल उत्पादक पूंजी की कार्यशीलता का परिणाम ही प्रकट करते हैं, जो वह एकमात्र कार्य है, जिसमें पूंजी मूल्य मूल्य का सृजन करता है। इन दोनों में जो चीज़ सामान्य है, वह यह है कि द्रव्य पूंजी और सम्बन्ध इन - .
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/५४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।