पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४४४

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संचय तथा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन २,००० (प+वे ) 1 I. ४,०००स+८७५५+ ८७५३ = ५,७५० योग ८,२५२। सारणी ख) II. १,७५०+ ३७६५+३७६वे = २,५०२ यह सारणी साधारण पुनरुत्पादन के लिए तैयार की गयी प्रतीत होती है, क्योंकि सारा वेशी मूल्य संचित हुए विना आय के रूप में उपभोग में आ जाता है। क ) और ख ) दोनों ही मामलों में हमारे पास उसी मूल्य परिमाण का वार्षिक उत्पाद होता है ; केवल कार्यात्मक दृष्टि से ख ) के अंतर्गत उसके तत्व इस प्रकार समूहित हैं कि उसी पैमाने पर पुनरुत्पादन फिर चालू हो जाता है ; जब कि क ) के अंतर्गत कार्यात्मक समूहन विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन का भौतिक आधार है। ख ) के अंतर्गत (८७५८+ ६७५३ ) I अथवा १,७५० (प+वे ) का विनिमय विना किसी अधिशेष के १,७५० II से होता है, जब कि क) के अंतर्गत के बरावर (१,०००+ १,०००३) I के १,५०० II से विनिमय के फलस्वरूप वर्ग I में संचय के लिए ५०० वे का अधिशेष रह जाता है। आइये , सारणी क) की और गहरी परीक्षा करें। मान लीजिये , 1 और II दोनों अपने वेशी मूल्य का आधा भाग संचित करते हैं, अर्थात उसे आय के रूप में खर्च करने के बदले वे उसे अतिरिक्त पूंजी के तत्व में बदल देते हैं। चूंकि १,००० 11 का आधा हिस्सा या ५०० ही किसी न किसी रूप में संचित करना , अतिरिक्त द्रव्य पूंजी के रूप में निवेशित करना है, यानी अतिरिक्त उत्पादक पूंजी में बदला जाना है, इसलिए केवल ( १,०००५+ ५००३) I आय के रूप में खर्च होते हैं। इसलिए यहां केवल १,५०० II के सामान्य आकार के तौर पर सामने आते हैं। १,५०० (प+वे ) और १,५०० IIस के बीच विनिमय की और ज्यादा छानवीन करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह काम साधारण पुनरुत्पादन प्रक्रिया के अंतर्गत पहले ही किया जा चुका है ; न ४,००० स पर ध्यान देना ज़रूरी है, क्योंकि नये सिरे से शुरू होनेवाले पुनरुत्पादन की पुनर्व्यवस्था का भी साधारण पुनरुत्पादन प्रक्रिया के रूप में विवेचन किया जा चुका है ( जो इस वार विस्तारित पैमाने पर होगा)। अब हमारे लिए जिस अकेली चीज़ की छानवीन करना रह जाता है, वह ५०० वे तथा ( ३७६५+३७६ ) II है, क्योंकि एक ओर तो यह I तथा II दोनों के आंतरिक संबंधों का मामला है, दूसरी ओर उनके बीच की गति का मामला है। चूंकि हमने यह माना है कि II में भी उसी प्रकार वेशी मूल्य के अर्धाश का संचय होगा, इसलिए यहां १६८ पूंजी में तबदील किये जायेंगे और इनका एक चौथाई*, यानी ४७ अथवा उसे पूर्णांक बनाने के लिए ४८ परिवर्ती पूंजी होंगे, जिससे कि स्थिर पूंजी में परिवर्तित होने को १४० शेष रहेंगे। यहां हमारे सामने एक नई समस्या आ जाती है, जिसका होना इस प्रचलित दृष्टिकोण के लिए अजीव लगेगा कि एक प्रकार के मालों का दूसरे प्रकार के मालों से अथवा मालों का द्रव्य से और पुनः उसी द्रव्य का अन्य प्रकार के मालों से विनिमय होता है। १४० II $ यह प्रकटतः चूक है, यह पांचवां हिस्सा होना चाहिए, लेकिन इससे अंतिम निष्कर्ष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।-सं०