पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४३९

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पुन सामाजिक पूंजी का पुनन्त्यादन तथा परिचलन मंत्री का कार्य प्रारंभ करती है, तब उन्हें अपने उत्पाद ( उनके वेशी उत्पाद के अंश ) एक गरे नेगेदना या एक दूसरे को बेचना पड़ सकता है। Pro tanto अलग-अलग ख के पास उनी द्वाग अपने-अपने बेगी उत्पाद के परिचलन के लिए पेशगी दिया द्रव्य उसी अनुपात में लौट प्राता है, जिसमें अपने-अपने मालों के परिचलन के लिए उन्होंने उसे पेशगी दिया था। यदि द्रव्य भुगतान साधन के रूप में परिचलन करता हो, तो जहां तक परस्पर क्रय-विक्रय एक दून के बराबर नहीं होते , वहां केवल संतुलन दुरुस्त करना रह जाता है। किंतु यहां, जैसे कि और गब कहीं , मयते पहले और सर्वोपरि धातु मुद्रा परिचलन की उसके सबसे सादे , सबसे प्रादिन कप में कल्पना करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि तब द्रव्य का प्रवाह और पश्चप्रवाह, संतुलन का दुरस्त होना , संक्षेप में उधार पद्धति के अंतर्गत सचेत रूप से नियमित की हुई प्रक्रियाओं की तरह प्रकट होनेवाले सारे तत्व यहां अपने को उधार पद्धति से स्वतंत्र रूप में प्रस्तुत करते हैं और नारी स्थिति अादिम रूप में प्रकट होती है, न कि वादवाले , प्रतिबिंवित रूप में। . . ३) अतिरिक्त परिवर्ती पूंजी अब तक हम केवल अतिरिक्त स्थिर पूंजी की ही बात करते आये हैं। अब हमें अतिरिक्त परिवर्ती पूंजी के विवेचन की ओर ध्यान देना चाहिए। पहले खंड में हम बहुत विस्तार से इस बात की व्याख्या कर चुके हैं कि पूंजीवादी उत्पा- दन पद्धति के अंतर्गत श्रम शक्ति सदैव सुलभ होती है और आवश्यकता पड़ने पर मजदूरों की संख्या अथवा नियोजित श्रम शक्ति की मात्रा बढ़ाये बिना अधिक श्रम गतिशील किया जा सकता है। इसलिए हम इसकी और अधिक चर्चा नहीं करेंगे, बल्कि यह मान लेंगे कि नवसृजित द्रव्य पूंजी के परिवर्ती पूंजी में परिणत होने योग्य अंश को वह श्रम शक्ति सदैव सुलभ होगी, जिसमें उसे अपने को रूपांतरित करना है। पहले खंड में इसकी व्याख्या भी की जा चुकी है कि दी हुई पूंजी संचय के बिना भी किन्हीं सीमानों के भीतर अपने उत्पादन परिमाण का प्रसार कर सकती है। किंतु यहां हम पूंजी संचय की उसके विशिष्ट अर्थ में चर्चा कर रहे हैं, इसलिए उत्पादन के प्रसार में वेशी मूल्य का अतिरिक्त द्रव्य पूंजी में परिवर्तन और इस प्रकार उस पूंजी का प्रसार भी निहित है, जो उत्पादन का अाधार होती है। स्वर्ण उत्पादक अपने स्वर्णिम बेशी मूल्य के एक अंश का आभासी द्रव्य पूंजी के रूप में संचय कर सकता है। जैसे ही उसकी राशि पर्याप्त हो जाती है, वह उसे पहले अपने वेगी उत्पाद को बेचने की जरूरत के बिना सीधे नई परिवर्ती पूंजी में रूपांतरित कर सकता है। वते ही वह उसे स्थिर पूंजी के तत्वों में भी बदल सकता है। किंतु उस हालत में उसे अपनी स्थिर पूंजी के भौतिक तत्व सुलभ होने चाहिए। इस बात का कोई महत्व नहीं है - जैसा अपने विश्लेषण में अब तक माना गया था -कि प्रत्येक उत्पादक पहले अपना तैयार उत्पाद जमा करता है और तब उसे बाजार ले जाता है अथवा वह आदेशों की पूर्ति करता है। दोनों ही मामलों में उत्पादन के वास्तविक प्रसार की, अर्थात वेणी उत्पाद की कल्पना की जाती है; एक में वह यथार्यत: मुलभ है, दूसरे में वह संभाव्यतः मुलभ है, हस्तांतरित करने योग्य है।