पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४३५

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कुन सामाजिक पंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन होनीमा प्रदिया द्वारा अस्तित्व में प्राती हैं, जिसमें परिचलन की तीन प्रक्रियाएं भी शामिल हैजो पर दूसरे नि स्वतंत्र रूप में होती हैं, लेकिन प्रापत में मिल जाती हैं। यह प्रक्रिया इतनी ज्यादा नीना है कि अनामान्य भटकाव के न जाने कितने अवसर पेश करती है। २) अतिरिक्त स्थिर पूंजी वेगी नल्य के बाहक बेशी उत्पाद के लिए उनके हस्तगतकर्ताओं - पूंजीपति I- को कौड़ी भी गर्न नहीं करनी पड़ती। उसकी प्राप्ति के लिए उन्हें किसी भी प्रकार न तो कोई द्रव्य गगी देना होता है, न माल । प्रकृतितंत्रवादियों तक में पेशगी को उत्पादक पूंजी के तत्वों में मूतं मूल्य का नामान्य रूप माना जाता था। इसलिए पूंजीपति I जो कुछ भी पेशगी देते हैं, वह उनकी स्थिर और परिवर्ती पूंजी के अलावा और कुछ नहीं होता। मजदूर अपनी मेहनत से उनकी स्थिर पूंजी को बनाये ही नहीं रखता है ; वह उनकी परिवर्ती पूंजी मूल्य का मालों की शक्ल में नवसृजित तदनुरूप मूल्यांश द्वारा प्रतिस्थापन ही नहीं करता है ; वह अपने वेशी श्रम द्वारा उन्हें वेशी उत्पाद रूप में विद्यमान वेशी मूल्य की पूर्ति भी करता है। इस वेशी उत्ताद की क्रमिक विक्री द्वारा वे अपसंचय का, अतिरिक्त संभाव्य द्रव्य पूंजी का निर्माण करते हैं। विचाराधीन प्रसंग में इस वेशी उत्पाद में आरंभ से ही उत्पादन साधनों के उत्पादन साधन समाहित होते हैं। केवल ख , ख', ख", इत्यादि (I) के हाथों में पहुंचने पर ही यह वेशी उत्पाद अतिरिक्त स्थिर पूंजी का कार्य करता है। किंतु वह विकने से पहले ही अपसंचय वटोरने- वाले क, क', क" (I) के हाथों में भी यह virtualiter - ग्राभासी - द्रव्य पूंजी होती है। यदि हम केवल I द्वारा पुनरुत्पादन की मूल्य राशि पर भी विचार करते हैं, तब भी हम साधारण पुनन्त्पादन के दायरे में ही घूमते होते हैं, क्योंकि यह आभासी अतिरिक्त स्थिर पूंजी ( बेशी उत्पाद ) पैदा करने के लिए कोई अतिरिक्त पूंजी गतिशील नहीं की गई है और न वेशी श्रम की उससे कोई और बड़ी मात्रा ख़र्च की गयी है, जितनी साधारण पुनरुत्पादन के आधार पर की जाती है। यहां जो अंतर है, वह केवल किये गये वेशी श्रम के रूप में है, उसके विशेप उपयोगी स्वरूप की मूर्त प्रकृति में है। वह IIस के बदले 1स के लिए उत्पादन साधनों पर खर्च किया गया है, उपभोग वस्तुओं के उत्पादन साधनों के बदले उत्पादन साधनों के उत्पादन साधनों पर खर्च किया गया है। साधारण पुनरुत्पादन के प्रसंग में यह माना गया था कि समस्त वेशी मूल्य I प्राय के रूप में अतः माल II पर खर्च किया जाता है। अतः वेशी मूल्य में केवल वे उत्पादन साधन समाहित थे, जिन्हें स्थिर पूंजी II को उसके दैहिक रूप में प्रतिस्यापित करना था। नाधारण पुनरुत्पादन से विस्तारित पुनरुत्पादन में संक्रमण हो सके, इसके लिए आवश्यक है कि क्षेत्र I में उत्पादन इस स्थिति में हो कि वह II के लिए स्थिर पूंजी के कुछ कम तत्व बनाये और I के लिए उतने ही ज्यादा बनाये। यह संक्रमण , जो हमेशा ही कठिनाइयों के बिना नहीं होता, इस तथ्य से सुसाध्य हो जाता है कि I का कुछ उत्पाद दोनों में में किसी भी क्षेत्र में उत्पादन साधनों का काम कर सकता है। इसलिए मामले पर मूल्य परिमाण के दृष्टिकोण से ही विचार करने से नतीजा यह निकलता है कि विस्तारित पुनरुत्पादन के भौतिक आधार की उत्पत्ति साधारण पुनरुत्पादन की परिधि में होती है। यह उत्पादन साधनों के उत्पादन में, ग्राभासी वेशी पूंजी I की रचना में प्रत्यक्षतः वाय हुग्रा मजदूर वर्ग I का वेशी श्रम मात्र है। अतः क, क', क" (I) द्वारा- द्रव्य के . 1 .