पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४३०

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संचय तथा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन ४२६ 2 तक वे अस्तित्व में नहीं आ जाते और कम से कम जहां तक कि उनका संबंध है, जब तक विस्तारित पैमाने पर वास्तविक पुनरुत्पादन , अव तक के सामान्य उत्पादन का प्रसार, नहीं हो जाता। उनका संभाव्य रूप में, अर्थात अपने तत्वों के रूप में होना ज़रूरी था, क्योंकि माल का वास्तव उत्पादन होने के लिए बस आदेश आवेग की ही, अर्थात उसके वस्तुतः अस्तित्व में आने के पहले उसकी खरीद की और उसकी अपेक्षित विक्री की, ज़रूरत होती है। तव एक पक्ष का द्रव्य दूसरे पक्ष के विस्तारित पुनरुत्पादन को प्रेरित करता है, क्योंकि उसकी संभावना द्रव्य के विना भी विद्यमान होती है। कारण यह कि द्रव्य अपने आप वास्तविक पुनरुत्पादन का तत्व नहीं है। उदाहरण के लिए, पूंजीपति क , जो एक साल में या कई सालों में अपने द्वारा क्रमशः उत्पादित मालों की कुछ मात्राएं वेचता है, इस तरह मालों के उस अंश को भी, जो बेशी मूल्य का वाहक - वेशी उत्पाद - है अथवा दूसरे शब्दों में अपने द्वारा माल रूप में उत्पादित बेशी मूल्य को ही द्रव्य रूप में बदल लेता है, उसका क्रमशः संचय करता जाता है और इस प्रकार अपने लिए नई संभाव्य मुद्रा पूंजी का निर्माण कर लेता है - संभाव्य इसलिए कि उत्पादक पूंजी के तत्वों में परिवर्तित हो जाने की उसमें क्षमता है और इसी के लिए वह निर्दिष्ट है। किंतु वास्तव में वह केवल साधारण अपसंचय ही करता है, जो वास्तविक पुनरुत्पादन का तत्व नहीं है। पहले उसकी कार्यवाही सिर्फ यही होती है कि वह परिचलन से परिचालित द्रव्य क्रमशः निकालता रहता है। वेशक यह असंभव नहीं कि जो परिचालित द्रव्य अव वह तिजोरी में बंद कर लेता है, वह ख द परिचलन में पड़ने से पहले किसी अन्य अपसंचय का अंश था। क का यह अपसंचय , जो संभाव्य रूप में नई मुद्रा पूंजी है, वैसे ही अतिरिक्त सामाजिक संपदा नहीं है, जैसे वह तव भी न होता कि अगर उसे उपभोग वस्तुओं पर खर्च कर दिया जाता। किंतु हो सकता है कि परिचलन से निकाला गया और इसलिए परिचलन में पहले से विद्यमान द्रव्य किसी अपसंचय के संघटक अंश रूप में पहले कभी जमा किया गया हो, मजदूरी का द्रव्य रूप रहा हो, उत्पादन साधनों अथवा अन्य मालों को द्रव्य में परिवर्तित कर चुका हो अथवा किसी पूंजीपति की स्थिर पूंजी के कुछ भागों अथवा आय को परिचालित कर चुका हो। वह उसी प्रकार नई संपदा नहीं होता, कि जिस प्रकार - साधारण माल परिचलन के दृष्टिकोण से विचार करने पर - द्रव्य इस आधार पर अपने १० गुने मूल्य का वाहक नहीं बन जाता कि वह दिन में १० बार आवर्तित हुआ था और उसने १० भिन्न माल मूल्यों का सिद्धिकरण किया था, बल्कि केवल अपने वास्तविक मूल्य का वाहक होता है। माल उसके विना विद्यमान रहते हैं , और चाहे एक आवर्त में हो, चाहे १० में, वह स्वयं वैसा ही बना रहता है कि जैसा वह है (अथवा मूल्य ह्रास के कारण और भी घट जाता है)। केवल सोने के उत्पादन में नई संपदा (संभाव्य द्रव्य ) का सृजन होता है, क्योंकि सोने के उत्पाद में वेशी उत्पाद , का निधान है, और यह नई संपदा नवीन संभाव्य मुद्रा पूंजियों की द्रव्य सामग्री को उतना ही वढ़ाती है कि जिस सीमा तक सारा नवीन द्रव्य उत्पाद परिचलन में दाखिल हो जाता है। यद्यपि द्रव्य के रूप में अपसंचित यह वेशी मूल्य अतिरिक्त नवीन सामाजिक संपदा नहीं है, फिर भी जिस कार्य के लिए उसका अपसंचय किया जाता है, उसकी वजह से वह नवीन संभाव्य मुद्रा पूंजी को व्यक्त करता है। (हम आगे चलकर देखेंगे कि नवीन मुद्रा पूंजी के पैदा होने का वेशी मूल्य के द्रव्य में क्रमशः परिवर्तित होने के अलावा एक और भी तरीका है।) - - देशी मूल्य .