द्रव्य पूंजी -का. परिपथ ४१ पर, पहली है द्रव्य पूंजी के अभाव की। उदाहरण के लिए, वे कहते हैं कि फसल बेचने से पहले उजरती मजदूरों को अपेक्षाकृत . बड़ी रकम देनी होती है, और तभी नकद पैसे की, यानी सर्वप्रमुख पूर्वापेक्षा की कमी पड़ जाती है। उत्पादन पूंजीवादी ढंग से चलाया जाये, इसके लिए द्रव्य रूप में पूंजी हमेशा सुलभ होनी चाहिए, खासकर मज़दूरी के भुगतान के लिए। लेकिन ज़मींदार पास लगाये बैठे रह सकते हैं। सन्न का फल मीठा होता है, और वक्त आने प्रौद्योगिक पूंजीपति को न केवल अपना, वरन दूसरों का भी धन उपलब्ध हो जायेगा। दूसरी शिकायत अधिंक लाक्षणिक है। शिकायत यह है कि पास में पैसा हो, तो भी हर वक्त जितने मजदूर चाहिए, नहीं मिल पाते हैं। कारण यह है कि रूसी खेत मजदूर ग्राम- समुदाय में ज़मीन पर सामुदायिक अधिकार होने के कारण अभी अपने उत्पादन साधनों से पूरी तरह अलग नहीं किया गया है, और इसलिए अभी सही मानी में "आजाद उजरती मजदूर" पूरी तरह नहीं बन पाया है। किन्तु सामाजिक पैमाने पर ऐसे मजदूर का अस्तित्व में याना द्रव्य पूंजी के उत्पादक पूंजी में रूपान्तरण को. व्यक्त करने के लिए द्र,- मा क्रम की , माल के रूप में द्रव्य के परिवर्तन की अपरिहार्य पूर्वापेक्षा है। इसलिए यह विल्कुल स्पष्ट है कि द्रव्य पूंजी के परिपथ का सूत्र : द्र मा मा -द्र', विकसित पूंजीवादी उत्पादन के आधार पर ही पूंजी के परिपथ का सहज सामान्य रूप बनता है, क्योंकि वह सामाजिक पैमाने पर उजरती मजदूरों के वर्ग के अस्तित्व की पूर्वकल्पना कर लेता है। हम देख चुके हैं कि पूंजीवादी उत्पादन केवल माल और वेशी मूल्य का सृजन ही नहीं करता, वरन उजरती मजदूरों के वर्ग का अधिकाधिक बड़े पैमाने पर पुनरुत्पादन भी करता जाता है और प्रत्यक्ष उत्पादकों के विशाल बहुसंख्यक भाग को उजरतो मजदूर वनाता जाता है। द्र-मा मा'-द्र' क्रम सिद्ध हो, इसके लिए पहली शर्त यह है कि उजरती मजदूरों का वर्ग स्थायी रूप से अस्तित्व में आ गया हो। इसलिए यह सूत्र उत्पादक पूंजी के रूप में पूंजी की और इस प्रकार उत्पादक पूंजी के परिपथ के रूप की भी पूर्वकल्पना करता है। २. दूसरी मंज़िल। उत्पादक पूंजी का कार्य पूंजी के जिस परिपथ पर हमने यहां विचार किया है, उसकी शुरूआत परिचलन क्रिया द्र मा से, द्रव्य के माल में परिवर्तन से , अर्थात ख़रीदारी से होती है। अत: परिचलन क्रिया के पूरक रूप में एक विरोधी रूपान्तरण मा-द्र, मालों का द्रव्य में रूपान्तरण अर्थात उनकी विक्री होनी चाहिए। किन्तु द्र - मा < का प्रत्यक्ष परिणाम यह होता है कि द्रव्य रूप में जो पूंजी मूल्य पेशगी दिया गया है, उसके परिचलन में वाधा पड़ती है। द्रव्य पूंजी के उत्पादक पूंजी में रूपान्तरित होने से पूंजी मूल्य ऐसा भौतिक रूप प्राप्त कर लेता है, जिसमें उसका परिचलन जारी नहीं रह सकता, वरन उसे उपभोग के क्षेत्र में, अर्थात उत्पादक उपभोग के क्षेत्र में, प्रवेश करना होता है। श्रम शक्ति का उपयोग, श्रम, केवल श्रम प्रक्रिया में ही मूर्त रूप धारण कर सकता है। पूंजीपति विकाऊ माल की तरह मजदूर को 'उ सा
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