पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४००

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साधारण पुनरुत्पादन ३६६ . का ८०० २०°स में डालता है। विनिमय पूरा हो जाने पर 1 के पास १,०००५ द्रव्य रूप में होते हैं, ८०°वे II ( उपभोग वस्तुओं) से विनिमय हो जाता है और ४०० पाउंड द्रव्य रूप में होते हैं। II मालों ( उपभोग वस्तुओं) के रूप में १,८००स तथा द्रव्य रूप में ४०० पाउंड परिचलन में डालता है। विनिमय पूरा होने पर उसके पास I मालों ( उत्पादन साधनों) के रूप में १,८०० और द्रव्य रूप में ४०० पाउंड होते हैं। अव भी I की तरफ़ २००वे ( उत्पादन साधनों में ) और II की तरफ़ २०°स ( छ ) ( उपभोग वस्तुओं में ) शेप रहते हैं। हमारी कल्पना के अनुसार I २०० पाउंड से २०० को उपभोग वस्तुएं स (छ) खरीदता है। किंतु II ये २०० पाउंड अपने पास रखे रहता है, क्योंकि २०० 'स (छ) छीजन के हैं और उन्हें तुरंत उत्पादन साधनों में परिवर्तन नहीं करना होता। अतः २०० 11 की विक्री नहीं हो सकती। बेशी मूल्य I के प्रतिस्थापित किये जानेवाले पांचवें हिस्से का सिद्धिकरण नहीं किया जा सकता , अथवा उसे उत्पादन साधनों के अपने दैहिक रूप से उपभोग वस्तुओं के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इससे साधारण पुनरुत्पादन की हमारी कल्पना का ही खंडन नहीं होता ; वह अपने में कोई ऐसी प्राक्कल्पना है भी नहीं कि जो द्रव्य (छ) के रूपांतरण की व्याख्या कर सके। बल्कि इसका मतलब यह निकलता है कि उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। चूंकि यह नहीं दिखाया जा सकता कि २०°स (छ) को किस तरह द्रव्य रूप में परिवर्तित किया जा सकता है, इसलिए यह मान लिया जाता है कि I सौजन्यतावश ही, इसी लिए परिवर्तन कर देगा कि वह अपने ही २००वे के शेप भाग को द्रव्य में नहीं बदल पाता। इसे विनिमय क्रियाविधि का सामान्य कार्य मानना वैसा ही है, जैसा यह सोचना कि (छ) को नियमित रूप से द्रव्य में परिवर्तित करने के लिए हर साल २०० पाउंड आसमान से बरस पड़ेंगे। लेकिन अगर वे अपने आदिम अस्तित्व रूप में, अर्थात उत्पादन साधनों के मूल्य के संघटक अंश के रूप में, अतः मालों के मूल्य के संघटक अंश के रूप में, जिन्हें उनके पूंजीपति उत्पादकों को विक्रय द्वारा द्रव्य में बदलना होता है, प्रकट होने के बजाय, जैसा कि इस मामले में होता है, पूंजीपतियों के साझियों के हाथ में, जैसे जमींदारों के हाथ में किराया ज़मीन की शक्ल में या साहूकारों के हाथ में व्याज की शक्ल में प्रकट हो, तो ऐसी प्राक्कल्पना का बेतुकापन एकदम सामने नहीं आता। किंतु यदि मालों के. वेशी मूल्य का वह अंश , जो औद्योगिक पूंजीपति को किराया ज़मीन या व्याज के रूप में वेशी मूल्य के सहस्वामियों को देना होता है, मालों की विक्री द्वारा बहुत समय तक सिद्धिकृत नहीं होता है, तो किराये और व्याज की अदायगी भी ठप हो जायेगी और इसलिए ज़मींदार या व्याज पानेवाले किराया और व्याज खर्च करके वार्षिक पुनरुत्पादन के निश्चित अंशों को इच्छानुसार द्रव्य में परिवर्तित करने के dei ex machina [ईश्वरदत्त साधन] नहीं बन सकते। यही वात उन सव तथाकथित अनुत्पादक भ्रमिकों-सरकारी अफ़सरों, डाक्टरों, वकीलों, आदि, और अन्य सभी लोगों के व्ययों पर भी २०°स