पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३९७

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कुल नामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन इसी तरह वगं I के सिलसिले में उन वर्ग के स्थिर पूंजी मूल्य के विनिमय से जिस चौत का भी संबंध हो, वह ४,००० I- के विवेचन की सीमाओं के भीतर होगी। १) मूल्य के छोजांश का द्रव्य रूप में प्रतिस्थापन यदि शुरुयात के लिए हम निम्नलिखित लें: । ४,००० १,०००+ १,००० II २,०००+५००+५०°वे। समग्र तो २,००० 11- मालों का उसी मूल्य के 1 ( १,००० प+१,०००३) मालों से विनिमय यह पूर्वकल्पना करेगा कि २,००० II I द्वारा उत्पादित II की स्थिर पूंजी के नैसर्गिक तत्वों में वस्तुरूप में पुनःपरिवर्तित होते हैं। किंतु २,००० के माल मूल्य में, जिसमें अंतोक्त है, एक ऐसे तत्व का समावेश है, जो स्थायी .पूंजी मूल्य हास की क्षतिपूर्ति कर देता है। इस स्थायी पूंजी का तुरंत वस्तुरूप में प्रतिस्थापन नहीं करना होता, वरन द्रव्य में परिवर्तित करना होता है, जो स्थायी पूंजी के अपने दैहिक रूप में नवीकरण का समय पाने तक धीरे-धीरे एक राशि में संचित होता जाता है। प्रत्येक वर्ष स्थायी पूंजी का अवसान होता जाता है, जिसका इस या उस वैयक्तिक व्यवसाय में अथवा उद्योग की इस या उस शाखा में प्रतिस्थापन करना होता है। एक ही वैयक्तिक पूंजी के मामले में स्थायी पूंजी के इस या उस अंश का प्रतिस्थापन जरूरी होता है, क्योंकि उसके विभिन्न भागों का टिकाऊपन अलग-अलग होता है। साधारण पैमाने पर, यानी सभी तरह के संचय की उपेक्षा करते हुए भी वार्पिक पुनरुत्पादन की परीक्षा करने पर हम शुरुयात ab ovo [ आदितः नहीं करते। जिस वर्ष का हम अध्ययन कर रहे होते हैं, वह बीते अनेक वर्षों में से एक है ; वह पूंजीवादी उत्पादन के उद्भव के बाद का पहला साल नहीं है। अतः वर्ग II की विविध उत्पादन शाखाओं में निवेशित विभिन्न पूंजियों की उम्र में अंतर होता है। जिस तरह उत्पादन की इन शाखाओं में काम करनेवाले लोग हर साल मरते हैं, उसी तरह ढेरों स्थायी पूंजियां भी हर साल ख़त्म होती जाती हैं और संचित द्रव्य निधि से उनका वस्तुरूप में नवीकरण करना होता है। इसलिए २,००० (प+वे ) से २,००० स के विनिमय में २,००० II का अपने माल रूप ( उपभोग वस्तुओं) से नैसर्गिक तत्वों में परिवर्तन शामिल है। इन नैसर्गिक तत्वों में केवल कच्ची और सहायक सामग्री ही नहीं होती , वरन स्थायी पूंजी के नैसर्गिक तत्व भी होते हैं, जैसे मशीनें , उपकरण, इमारतें, वगैरह । इसलिए जिस छीजन का प्रतिस्थापन २,००० II मूल्य में द्रव्य में करना होता है, वह कैसे भी कार्यशील स्यायी पूंजी की राशि के अनुरूप नहीं होती, क्योंकि इसके एक अंश का प्रति वर्ष इसके वस्तुरूप में प्रतिस्थापन करना होता है। किंतु यह इसकी कल्पना करता है कि वर्ग II के पूंजीपतियों द्वारा इस प्रतिस्थापन के लिए आवश्यक द्रव्य पूर्ववर्ती वर्षों में संचित कर लिया गया था। फिर भी जो शर्त पिछले वर्षों पर लागू होती है, वही चालू वर्प पर भी उतना ही लागू होती है।