पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३८६

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साधारण पुनरुत्पादन ३८५ . . अव मजदूर के हाथ में उसकी मजदूरी के द्रव्य रूप की तरह , जिसका वह निर्वाह साधनों से विनिमय करता है, अर्थात उसकी श्रम शक्ति के निरंतर पुनरावृत्त विक्रय से प्राप्त आय के द्रव्य रूप की तरह कार्य करता है। यहां हमारे सामने यह सीधा सा तथ्य है कि ग्राहक का द्रव्य , इस प्रसंग में पूंजीपति का, उसके हाथ से निकलकर विक्रेता के पास , इस प्रसंग में श्रम शक्ति के विक्रेता, मजदूर के पास पहुंचता है। यह परिवर्ती पूंजी के दोहरा कार्य-पूंजीपति के लिए पूंजी का और मजदूर के लिए प्राय का- करने का मामला नहीं है। यह वही द्रव्य है, जो पहले पूंजीपति के हाथ में उसकी परिवर्ती पूंजी के द्रव्य रूप की तरह , अतः संभाव्य परिवर्ती पूंजी की तरह होता है और जो, जैसे ही पूंजीपति उसे श्रम शक्ति में बदलता है, मजदूर के हाथ में विकी हुई श्रम शक्ति के समतुल्य का काम करता है। किंतु यह तथ्य 'कि वही धन विक्रेता के हाथ में एक उपयोगी कार्य करता है और ग्राहक के हाथ में दूसरा, एक ऐसी परिघटना है कि जो मालों के सभी क्रय-विक्रय की विशेषता है। वितंडावादी अर्थशास्त्री इस मामले को ग़लत दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, जैसा कि तब अच्छी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि अगर हम आगेवाली बातों की तरफ़ फ़िलहाल ध्यान न देकर अपनी दृष्टि को केवल परिचलन क्रिया द्र-श्र (द्र - मा के बरावर), पूंजीपति ग्राहक द्वारा द्रव्य का श्रम शक्ति में परिवर्तन , जो श्र-द्र (मा-द्र के वरावर) है, विक्रेता-श्रमिक - द्वारा माल श्रम शक्ति का द्रव्य में परिवर्तन पर जमाये रखें। वे कहते हैं : यहां एक ही द्रव्य दो पूंजियों का सिद्धिकरण करता है ; ग्राहक - पूंजीपति - अपनी द्रव्य पूंजी को सजीव श्रम शक्ति में बदलता है, जिसे वह अपनी उत्पादक पूंजी में समाविष्ट कर लेता है; दूसरी ओर विक्रेता श्रमिक - अपना माल-श्रम शक्ति-द्रव्य में बदलता है, जिसे वह आय के रूप में खर्च करता है, और इसकी बदौलत वह अपनी श्रम शक्ति वार-बार बेच पाता है और इस तरह उसे बनाये रख पाता है। इसलिए उसकी श्रम शक्ति माल रूप में उसकी पूंजी है, जो उसे निरंतर प्राय प्रदान करती है। श्रम शक्ति सचमुच उसकी संपत्ति है (निरंतर स्वनवीकृत और पुनरुत्पादित ), उसकी पूंजी नहीं। यही एकमात्र माल है, जिसे जिंदा रहने लिए वह बार-बार वेच सकता है और वेचना पड़ता है और जो पूंजी (परि- वर्ती ) का कार्य केवल ग्राहक - पूंजीपति- के हाथ में करती है। यह तथ्य कि एक आदमी को अपनी श्रम शक्ति , यानी खुद अपने को दूसरे आदमी के हाथ वार-बार वेचना पड़ता है, इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह सिद्ध करता है कि वह पूंजीपति है, क्योंकि उसके पास विक्री के लिए निरंतर "माल" ( वह स्वयं ) रहता है। इस अर्थ में गुलाम भी पूंजीपति है, हालांकि वह दूसरे आदमी द्वारा सदा-सर्वदा के लिए माल की तरह वेच दिया गया है, क्योंकि यह इस माल- कमेरे गुलाम- की प्रकृति में है कि उसका खरीदार हर रोज़ नये सिरे से उससे काम ही नहीं कराता, बल्कि उसके लिए निर्वाह साधन भी जुटाता है, जिससे कि वह निरंतर नये सिरे से काम कर सके ( इस बात को लेकर माल्थस को सीसमांडी और सेय के पन्नों से तुलना कीजिये ). 1 , . . 7

  • मास के दिमाग में जे० वो० सेय के Lettres a M. Malthus sur.differents: sujets

d'économie politique, notamment sur les causes de la stagnation générale du com- merce, Paris, 1820 की बात है।-सं० 25-1180