पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३७४

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३७३ साधारण पुनरुत्पादन निकाल लेता है। यदि उत्पादन पूंजीवादी होने के बदले समाजीकृत होता, तो क्षेत्र 1 का यह उत्पाद , स्पष्ट ही उतने ही नियमित रूप में इस क्षेत्र की विविध शाखाओं के बीच उत्पादन साधनों के रूप में पुनरुत्पादन के लिए पुनः वितरित किया जाता ; एक अंश उस उत्पादन क्षेत्र में सीधे बना रहता, जहां से वह उत्पाद के रूप में बाहर आया था, दूसरा अन्य उत्पादन स्थानों में पहुंच जाता और इस तरह इस क्षेत्र में विभिन्न उत्पादन स्थानों के बीच निरंतर पावागमन बना रहता। का प दोनों क्षेत्रों में परिवर्ती पूंजी तथा बेशी मूल्य इस प्रकार प्रति वर्ष उत्पादित उपभोग वस्तुओं का समग्र मूल्य वर्ष भर में पुनरुत्पादित परिवर्ती पूंजी मूल्य II तथा नवोत्पादित वेशी मूल्य II ( अर्थात साल में II द्वारा उत्पादित मूल्य के वरावर ) तथा वर्ष भर में पुनरुत्पादित परिवर्ती पूंजी मूल्य I तथा नवोत्पादित बेशी मूल्य I (अर्थात वर्ष भर में I द्वारा निर्मित मूल्य ) के योग के वरावर होता है। अतः साधारण पुनरुत्पादन की कल्पना के आधार पर वर्ष भर में उत्पादित उपभोग वस्तुओं का समग्र मूल्य वार्पिक मूल्य उत्पाद के वरावर , अर्थात सामाजिक श्रम द्वारा वर्ष भर में उत्पादित समग्र मूल्य के वरावर होता है और ऐसा होना लाज़मी भी है, क्योंकि साधारण पुनरुत्पादन में इस समूचे मूल्य की खपत हो जाती है। समग्र सामाजिक कार्य दिवस दो भागों में विभाजित होता है : १) आवश्यक श्रम , जो साल के दौरान १,५०० का मूल्य निर्मित करता है ; २) बेशी श्रम , जो १,५०० वे अतिरिक्त मूल्य अथवा वेशी मूल्य निर्मित करता है। इन मूल्यों का योग , ३,०००, वर्ष में उत्पादित उपभोग वस्तुओं के मूल्य (३,०००) के वरावर होता है। अतः वर्ष भर में उत्पादित उपभोग वस्तुओं का कुल मूल्य वर्ष भर में समग्र सामाजिक कार्य दिवस द्वारा उत्पादित सकल मूल्य के बरावर , सामाजिक परिवर्ती पूंजी तथा सामाजिक वेशी मूल्य के योग के बरावर, वर्ष के कुल नये उत्पाद के बरावर होता है। किंतु हम जानते हैं कि यद्यपि मूल्य के ये दोनों परिमाण वरावर हैं, फिर भी माल II, उपभोग वस्तुओं का कुल मूल्य सामाजिक उत्पादन के इस क्षेत्र में उत्पादित नहीं होता। ये परिमाण बरावर इसलिए हैं कि II में पुनः प्रकट होनेवाला स्थिर पूंजी मूल्य I द्वारा नवो- त्पादित मूल्य (परिवर्ती पूंजी मूल्य तथा बेशी मूल्य के योग ) के वरावर होता है ; अतः (प-+-व) II के उत्पाद का वह भाग ख़रीदा जाता है, जो उसके ( II क्षेत्र के ) उत्पादकों के लिए स्थिर पूंजी मूल्य है। इस तरह इससे जाहिर होता है कि सारे समाज के दृष्टिकोण से II के पूंजीपतियों के उत्पाद का मूल्य प+वे में क्यों वियोजित हो सकता है, यद्यपि इन पूंजीपतियों के लिए वह स+प+वे में विभाजित होता । ऐसा केवल इसलिए होता है कि IIस यहां (प+वे) के बराबर है और सामाजिक उत्पाद के ये दोनों घटक विनिमय द्वारा अपने दैहिक रूप आपस में बदल लेते हैं, जिससे कि इस रूपांतरण के वाद IIस फिर उत्पादन साधनों में और (प+वे) उपभोग वस्तुओं में अस्तित्वमान होते हैं। यही वह परिस्थिति है, जिसने ऐडम स्मिथ को यह धारणा बनाने के लिए प्रेरित किया कि वार्षिक उत्पाद का मूल्य अपने को प+दे में वियोजित कर लेता है। यह १) वार्पिक