द्रव्य पूंजी का परिपथ ३५ . , जिससे पता चलता है कि एक निश्चित धनराशि, मान लीजिये ४२२ पाउंड उसी के अनुरूप श्रम शक्ति और उत्पादन साधनों के लिए विनिमय में दी गयी है, बल्कि यह सूत्र उस परिमाणात्मक सम्बन्ध को भी जाहिर करता है, जो श्र , अर्थात श्रम शक्ति के लिए खर्च किये हुए द्रव्य के अंश और उ सा , अर्थात उत्पादन साधनों के लिए खर्च किये हुए द्रव्य के अंश के बीच पाया जाता है। यह सम्बन्ध प्रारम्भ से ही मजदूरों की एक निश्चित संख्या द्वारा व्यय किये जानेवाले फालतू श्रम के , वेशी श्रम के परिमाण द्वारा निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी कताई मिल में उसके ५० मजदूरों की साप्ताहिक मजदूरी ५० पाउंड हो, तो उत्पादन साधनों पर ३७२ पाउंड खर्च करने होंगे, अगर उत्पादन साधनों का यही मूल्य हो, जिन्हें ३, ००० घंटे का साप्ताहिक श्रम , जिनमें १,५०० घंटे वेशी श्रम के हैं, सूत में तवदील करता हो। यहां यह वात विलकुल महत्वपूर्ण नहीं है कि अतिरिक्त श्रम का उपयोग करने से विभिन्न उद्योग धंधों में उत्पादन साधनों के रूप में कितने अतिरिक्त मूल्य की आवश्यकता होगी। यहां वात केवल यह है कि द्र- उ सा के दौरान जो उत्पादन साधन खरीदे गये हैं, उनके लिए द्रव्य का जो अंश खर्च किया गया है, वह पूर्णतया पर्याप्त होना चाहिए, अर्थात प्रारम्भ में ही इनके दृष्टिगत प्रांक लिया जाना चाहिए और तदनुसार हासिल किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में उत्पादन साधनों का परिमाण इतना होना चाहिए कि वह श्रम की उस मात्रा को खपा सके, जो उन उत्पादन साधनों द्वारा उत्पाद में परिवर्तित की जायेगी। अगर उपलब्ध उत्पादन साधन नाकाफ़ी हुए, तो खरीदार के पास जो अतिरिक्त श्रम मौजूद है, उसका उपयोग न हो पायेगा ; उसका उपयोग करने का जो अधिकार उसके पास है, वह निरर्थक रहेगा। अगर उपलब्ध श्रम की तुलना में उत्पादन साधन अधिक हैं, तो उन पर पूरा श्रम न लगाया जा सकेगा, उन्हें उत्पाद में परिवर्तित न किया जा सकेगा। द्र -- मा<सा पूरा होने के साथ खरीदार को किसी उपयोगी वस्तु मात्र के उत्पादन के लिए आवश्यक उत्पादन साधन और श्रम शक्ति ही नहीं उपलब्ध होते। उसके पास श्रम शक्ति को गतिमान करने के लिए अधिक क्षमता होती है अथवा इस श्रम शक्ति के मूल्य के प्रतिस्थापन के लिए श्रम की जो मात्रा आवश्यक है, उससे ज्यादा श्रम की मात्रा होती है। इसके साथ ही उसके पास श्रम की इस माता के सिद्धिकरण अथवा मूर्तीकरण के लिए प्राव- श्यक उत्पादन साधन भी हैं। दूसरे शब्दों में उसके पास ऐसी चीज़ों का उत्पादन कर सकने के उपादान हैं, जिनका मूल्य उत्पादन के तत्वों के मूल्य से अधिक हो ; उसके पास मालों की ऐसी राशि के उत्पादन के उपादान मौजूद हैं, जिनमें वेशी मूल्य भी समाहित हो। जो मूल्य उसने द्रव्य रूप में पेशगी दिया था, उसने अव भौतिक रूप ग्रहण कर लिया है, जिसमें वह वेशी मूल्य ( माल के रूप में ) का सृजन करनेवाला मूल्य बनकर अवतरित हो सकता है। संक्षेप में मूल्य यहां उत्पादक पूंजी के रूप या अवस्था में विद्यमान है, जो मूल्य तथा बेशी मूल्य का सृजन कर सकता है। इस रूप में पूंजी को हम यहां उ कहेंगे। अब उ का मूल्य वरावर है श्र+उसा के, यानी श्र और उ सा के विनिमय में दिये जानेवाले द्र के बराबर है। द्र वही पूंजी मूल्य है, जो उ है। अन्तर इतना है कि वह श्र 1
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