३४ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपय १. पहली मंज़िल। 1-मा द्र-मा से आशय यह है कि द्रव्य को एक मात्रा माल की एक मात्रा में परिवर्तित हुई है। खरीदार अपना द्रव्यं माल में रूपांतरित करता है, वेचनेवाला अपना माल द्रव्य में रूपांतरित करता है। जिस चीज़ से मालों का यह सामान्य परिचलन साथ ही कार्यतः किसी वैयक्तिक पूंजी के स्वतंत्र परिपथ का विशेष अनुभाग बन . जाता है , वह परिचलन क्रिया का रूप नहीं, वरन उसकी भौतिक अंतर्वस्तु है, मालों का विशेष उपयोग लक्षण है, जो द्रव्य से स्थानांतरण करते हैं। ये माल एक अोर तो उत्पादन साधन हैं, दूसरी ओर श्रम शक्ति , माल उत्पादन के भौतिक और व्यक्तिगत उपादान हैं, जिनकी विशिष्ट प्रकृति निस्संदेह बनायी जानेवाली वस्तुओं के अनुरूप होनी चाहिए। यदि श्रम शक्ति को हम श्र, उत्पादन साधन को उ सा कहें, तव मालों की जो मात्रा ख़रीदनी है, वह मा वरावर होगी श्र+उसा के अथवा और संक्षेप में : मा< । अतः जब हम द्र- मा के प्रांतरिक सारतत्व पर उ सा विचार करते हैं, तब हम उसे यों प्रकट करते हैं : द्र- मा. श्र 'उसा अर्थात द्र- मा में , -- .. द्र श्र तथा द्र उ सा समाहित हैं। द्रव्य की मात्रा द्र दो हिस्सों में बंट जाती है। एक हिस्सा श्रम शक्ति खरीदने लिए होता है, दूसरा हिस्सा उत्पादन साधन खरीदने के लिए। खरीदारी की इन दो शृंखलाओं का सम्बन्ध दो विलकुल भिन्न बाजारों से है। एक का सम्बन्ध वास्तविक पण्य बाज़ार से है, और दूसरे का श्रम वाज़ार से है। द्र मालों की जिस मात्रा में रूपांतरित होता है, उसके इस गुणात्मक विभाजन के अलावा श्र द्र-मा.< असा सूत्र एक अत्यंत विशिष्ट परिमाणात्मक सम्बन्ध का भी द्योतक है। हम जानते हैं कि जिस श्रम शक्ति को माल रूप में वेचने के लिए पेश किया जाता है, उसका मूल्य या कीमत मजदूरी के रूप में उसके मालिक को दी जाती है, यानी श्रम की एक मात्रा की कीमत के रूप में दी जाती है, जिसमें वेशी श्रम भी निहित है। उदाहरण के लिए, यदि श्रम शक्ति का दैनिक मूल्य पांच घण्टे की मेहनत के उत्पाद के वरावर है, जो तीन शिलिंग का है, तो खरीदार और विक्रेता के वीच इक़रार में यह धन - मान लीजिये - दस घंटे के श्रम की क़ीमत या मजदूरी के रूप प्रकट होता है। उदाहरण के लिए, यदि ऐसा इक़रार ५० मजदूरों के साथ होता है, तो माना जाता है कि ख़रीदार के लिए वे प्रतिदिन कुल मिलाकर ५०० घंटे काम करेंगे। इसका आधा समय , यानी २५० घंटे, जो १० घंटे प्रतिदिन के हिसाब से काम के २५ दिन के बरावर हैं, वेशी श्रम के अलावा और कुछ नहीं हैं। उत्पादन साधनों की जो माना और उनका जो परिमाण ख़रीदना है, वह इस श्रम के उपयोग के लिए. पर्याप्त होना चाहिए। इस प्रकार द्र- मा< सा सून गुणात्मक सम्बन्ध ही नहीं ज़ाहिर · करता है, 2 पाण्डुलिपि ७ की शुरुयात , जिसका प्रारम्भ २ जुलाई, १८७८ को हुअा था।- फे० एं०
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