पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण ३४१ यह मूल्य उत्पादन प्रक्रिया से पहले , उससे स्वतंत्र उत्पादन साधनों में समाविष्ट था ; उन्होंने इस मूल्य के वाहक बनकर इस प्रक्रिया में प्रवेश किया था। उसके प्रकट होने के रूप का ही नवीकरण और परिवर्तन हुआ है। पूंजीपति के लिए माल के मूल्य का यह अंश स्थिर पूंजी मूल्य के माल के उत्पादन में पेशगी दिये और उपभुक्त अंश का समतुल्य है। इससे पहले वह उत्पादन साधनों के रूप में विद्यमान था ; अव वह नवोत्पादित माल के मूल्य के संघटक अंश के रूप में विद्यमान है। जैसे ही यह माल द्रव्य में परिवर्तित किया जाता है, वैसे ही जो मूल्य अभी द्रव्य रूप में विद्यमान है, उसे उत्पादन साधनों के रूप में उत्पादन प्रक्रिया द्वारा और इस प्रक्रिया में उसके कार्य द्वारा निर्धारित उसके मूल रूप में पुनःपरिवर्तित करना होता है। इस मूल्य के पूंजी की तरह कार्य करने से माल मूल्य के स्वरूप में कोई अंतर नहीं आता। माल के मूल्य का दूसरा अंश श्रम शक्ति का वह मूल्य है, जो उजरती मजदूर पूंजीपति को वेचता है। उत्पादन साधनों के मूल्य की ही तरह इसे उस उत्पादन प्रक्रिया से स्वतंत्र निर्धारित किया जाता है, जिसमें श्रम शक्ति को प्रवेश करना होता है, और श्रम शक्ति के इस उत्पादन प्रक्रिया में प्रवेश करने के पहले इसे परिचलन क्रिया-श्रम शक्ति के क्रय-विक्रय में स्थापित किया जाता है। अपने कार्य - श्रम शक्ति के व्यय - द्वारा उजरती मजदूर उस मूल्य के वरावर माल मूल्य का उत्पादन करता है, जो पूंजीपति को उसकी श्रम शक्ति के उपयोग के लिए उसे देना होता है। पूंजीपति को यह मूल्य वह माल के रूप में देता है, और पूंजीपति उसे इसकी अदायगी द्रव्य रूप में करता है। इस बात से कि माल मूल्य का यह अंश पूंजीपति के लिए उस परिवर्ती पूंजी का समतुल्य मात्र होता है, जो उसे मजदूरी के रूप में पेशगी देनी होती है, यह तथ्य किसी प्रकार बदल नहीं जाता कि वह उत्पादन प्रक्रिया के दौरान नवोत्पादित माल मूल्य मात्र है, उसमें उसके अतिरिक्त और कुछ समाहित नहीं है, जो वेशी मूल्य में समाहित है, अर्थात श्रम शक्ति का पहले किया हुअा व्यय । न इस सत्य पर इस तथ्य का ही कोई प्रभाव पड़ता है कि पूंजीपति द्वारा मजदूर को उसकी श्रम शक्ति का मज़दूरी के रूप में दिया गया मूल्य श्रमिक के लिए आय का रूप धारण कर लेता है और इससे न केवल श्रम शक्ति का, वरन स्वयं उजरती मजदूरों के वर्ग का और इस प्रकार समूचे पूंजीवादी उत्पादन के आधार का भी निरंतर पुनरुत्पादन होता है। फिर भी मूल्य के इन दोनों अंशों का योग पूरे माल मूल्य के बरावर नहीं होता। उन दोनों ही के ऊपर कुछ अतिरिक्त वचा रहता है और वह है वेशी मूल्य। मजदूरी के रूप में पेशगी परिवर्ती पूंजी को जो मूल्यांश प्रतिस्थापित करता है, उसी के समान यह उत्पादन प्रक्रिया के दौरान श्रमिक द्वारा नवसृजित मूल्य - घनीभूत श्रम - है। किंतु सारे उत्पाद के मालिक , पूंजीपति को इसके लिए कुछ भी नहीं देना पड़ता। इस परिस्थिति से वस्तुतः पूंजीपति के लिए वेशी मूल्य का पूर्णतया उपभोग करना संभव हो जाता है, वशर्ते कि उसे उसके कुछ हिस्से दूसरे भागीदारों को न देने पड़ें, जैसे भूस्वामी को किराया ज़मीन , जब ऐसे मामले में ये हिस्से इस तरह के अन्य व्यक्तियों की आय बन जाते हैं। यही वह प्रेरक हेतु था, जिसने हमारे पूंजीपति को मालों के उत्पादन में हाथ भी लगाने को प्रेरित किया। किंतु न तो उसकी वेशी मूल्य को हथिया लेने की मूल शुभ अभिलाषा और न वाद में उसके अथवा अन्य लोगों द्वारा उसका आय के रूप में व्यय स्वयं वेशी मूल्य पर कोई असर डालता है। वे न इस तथ्य को कि यह घनीभूत निर्वतन श्रम है, और न इस वेशी मूल्य के नितांत भिन्न परिस्थितियों द्वारा निर्धारित होनेवाले परिमाण को ही विकृत करते हैं। 1 -