पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३४१

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन - प्रतिस्थापित नहीं करता, यह पृथक्करण स्वयं मूल्य के सारतत्व को अयवा मूल्य के उत्पादन की प्रकृति को किसी भी प्रकार नहीं बदलता। मूल्य का सारतत्व व्ययित श्रम शक्ति के अलावा और कुछ नहीं होता और ऐसा ही बना रहता है- इस श्रम के विशिष्ट, उपयोगी स्वरूप से स्वतंत्र श्रम - और मूल्य का उत्पादन इस व्यय की प्रक्रिया के अलावा और कुछ नहीं है। उदाहरण के लिए, एक भूदास छः दिन अपनी श्रम शक्ति व्यय करता है, छ: दिन श्रम करता है और अपने में इस व्यय का तथ्य इस परिस्थिति से नहीं बदल जाता कि वह संभवतः तीन दिन अपने लिए खुद अपने खेत पर काम करता है और तीन दिन अपने मालिक के लिए उसके खेत पर काम करता है। जो श्रम वह अपने लिए स्वेच्छा से करता है और जो वेगार अपने मालिक के लिए करता है, दोनों समान रूप से श्रम हैं ; जहां तक इस श्रम पर मूल्यों के संदर्भ में अथवा उसके द्वारा रचे हुए उपयोगी पदार्थों के संदर्भ में विचार किया जाता है, उसके श्रम के छः दिनों में कोई अंतर नहीं है। जो अंतर है, वह केवल उन भिन्न परिस्थितियों से संबंधित है, जिनमें उसके छः दिन के श्रम काल के दोनों अर्धाशों के दौरान उसकी श्रम शक्ति व्यय होती है। यही वात उजरती मजदूर के आवश्यक और वेशी श्रम पर भी लागू होती है। उत्पादन प्रक्रिया की समाप्ति माल में होती है। उसके निर्माण में श्रम शक्ति व्यय की गई थी, यह तथ्य अव माल का एक भौतिक गुण वनकर, मूल्य धारण करने का गुण वनकर प्रकट होता है। इस मूल्य का परिमाण व्ययित श्रम की मात्रा से मापा जाता है ; माल का मूल्य इसके सिवा और किसी में स्वयं को वियोजित नहीं करता और न उसमें और कोई चीज़ ही समाहित होती है। यदि मैंने निश्चित लंबाई की सरल रेखा खींची है, तो मैंने पहले तो आरेखन कला के सहारे एक सरल रेखा " उत्पन्न" की है (वेशक केवल प्रतीक रूप में, जो मुझे पहले से मालूम है), जिसका प्रयोग किन्हीं नियमों ( सिद्धांतों) के अनुसार किया जाता है, जो मुझसे स्वतंत्र हैं। यदि इस रेखा को (किसी समस्या के अनुरूप ) मैं तीन भागों में विभाजित करूं, तो इनमें से प्रत्येक भाग सरल रेखा बना रहता है और जिसके वे भाग हैं, वह सारी रेखा इस विभाजन के कारण स्वयं को सरल रेखा से भिन्न किसी और चीज़ में, यथा किसी प्रकार की वक्र रेखा में वियोजित नहीं कर लेती। और न मैं दी हुई लंवाई की किसी रेखा को इस ढंग से विभाजित कर सकता हूं कि उसके भागों का योग स्वयं अविभाजित रेखा से अधिक हो; अतः अविभाजित रेखा की लंबाई, उसके भागों की लंबाई को मनमाने ढंग से निश्चित कर देने से निर्धारित नहीं होती। इसके विपरीत इन भागों की सापेक्ष लंवाई प्रारंभ से ही उस रेखा के आकार द्वारा परिसीमित रहती है, जिसके वे भाग हैं। इस मामले में पूंजीपति जो माल उत्पादित करता है, वह उस माल से किसी तरह भिन्न नहीं होता, जिसे स्वतंत्र मजदूर अथवा श्रमिकों के समुदाय, अथवा दास पैदा करते हैं। किंतु प्रस्तुत संदर्भ में श्रम का संपूर्ण उत्पाद तथा उसका समूचा मूल्य भी पूंजीपति का है। अन्य किसी भी उत्पादक की तरह उसे भी अपने माल को उससे और कोई काम निकालने के पहले वेचकर द्रव्य में बदलना होता है; उसे सार्विक समतुल्य के रूप में बदलना होता है। आइये, पण्य उत्पाद की उसके द्रव्य के बदले जाने से पहले परीक्षा करें। वह पूर्णतः पूंजीपति का होता है। दूसरी ओर श्रम के उपयोगी उत्पाद, उपयोग मूल्य की हैसियत से वह पूर्णतः पिछली श्रम प्रक्रिया का उत्पाद है। किंतु उसके मूल्य के साथ ऐसा नहीं है। इस मूल्य का एक अंश माल के उत्पादन पर व्ययित और नये रूप में प्रकट होनेवाले उत्पादन साधनों का मूल्य भर है। यह मूल्य इस माल की उत्पादन प्रक्रिया के दौरान उत्पादित नहीं हुआ है, क्योंकि