पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३३३

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कुन सामाजिक पूजी का पुनरमान तथा परिनलन .. 7. निमोति प्रजोनि कम मूल को उसका कुछ भी समतुल्ल दिये बिना हति गा। मानल मूल की मजदर बारा उगो उत्सादन में व्ययित श्रम राशि निर्धारित करती - मन मला भाग इस तव्य द्वारा निर्धारित होता है कि यह मजदूरी के मूल्य मोना, नान गरा ममतुल्य होता है। अतः उसका दूसरा भाग , बेशी मूल्य , भी को प्रगार नियनः उपार के गुल मूल विद्युत मजदूरी के समतुल्य भाग के मूल्य के बराबर निगगि ; प्रतः माल के मूल्य के उन भाग में, जिसमें उसकी मजदूरी का समतुल्य मनिनिकोला, अधिा के निर्माण में उत्पादित मूल्य के प्राधिक्य के बराबर होता है। २) नो बान हिलो अलग प्रोद्योगिक प्रतिष्ठान में किसी अलग श्रमिक द्वारा उत्पादित मान के बारे में नहीं है, यह नमूने तौर पर व्यवनाय की सभी शाखाओं के वार्षिक उत्पाद रे बारे में भी नही है। जो बात फिनी अलग उत्पादक श्रमिक दिन भर के काम के बारे में मही है, वह पूरे वर्ष के उस काम के बारे में भी सही है, जिसे उत्पादक श्रमिकों का पूग वगं नालू करता है। इनमे वार्षिक उलाद में व्ययित वार्पिक श्रम की मात्रा द्वारा निर्धारित कुल मुल्ल " स्यापिल" (पेटम स्मिथ की शब्दावली ) हो जाता है। और यह कुल मूल्य अपने को दो अंगों में वियोगित कर लेता है - वार्षिक श्रम के उस भाग द्वारा, जिससे श्रमिक वर्ग अपनी वार्षिक मजदूरी के गमतुल्य का, वस्तुतः स्वयं इस मजदूरी का ही सृजन करता है, निर्धारित पंग पोर उग अतिरिक्त वापिंक श्रम द्वारा निर्धारित दूसरा अंश , जिससे मजदूर पूंजीपति वर्ग के लिए वेगी मूल्य का मृजन करता है। अतः वार्षिक उत्पाद में समाहित वार्पिक मूल्य उत्पाद में केवल दो तत्व होते हैं : अर्यान मजदूर वर्ग द्वारा प्राप्त वापिंक मजदूरी का समतुल्य और पूंजीपति वर्ग के लिए प्रति वर्ष दिया जानेवाला वेगी मूल्य । चूंकि वार्पिक मजदूरी मजदूर वर्ग की और वेगी मूल्य की वार्पिक मात्रा पूंजीपति वर्ग की आय है, इसलिए ये दोनों वार्षिक अभोग निधि में मापेक्ष भाग व्यक्त करती हैं (माधारण पुनरुत्पादन का वर्णन करने में यह दृष्टिकोण गही है) और उसी में निद्धिकृत होती हैं। इसलिए स्थिर पूंजी मूल्य के लिए , उत्पादन गाधनों के रूप में कार्यरत पूंजी के पुनरुत्पादन के लिए कहीं कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। पर अपनी कृति को भूमिका में ऐटम स्मिथ स्पष्टत: कहते हैं कि माल के मूल्य के वे सभी ग्रंग , जो प्राय के रूप में कार्य करते हैं, सामाजिक उपभोग निधि के लिए उद्दिष्ट श्रम के वार्षिक उत्पाद के अनुरूप होते हैं : "इन पहले चार खंडों का उद्देश्य इसकी व्याख्या करना है कि महान मानव ममवाय की प्राय में क्या-क्या होता है अथवा उन निधियों का स्वरूप क्या रहा है, जो भिन्न-भिन्न युगों और राष्ट्रों में उनके वार्पिक उपभोग को पूर्ति करती आई हैं।" (पृष्ठ १२।) और भूमिका के पहले ही वाक्य में पढ़ने को मिलता है : "प्रत्येक राष्ट्र का वार्षिक श्रन यह निधि है, जो मूलतः उसके द्वारा माल में उपमुक्त सभी जीवनावश्यक वस्तुनों और मुविधामों की पूर्ति करता है और जो सदा या तो उस श्रम के प्रत्यक्ष उत्पाद में या उस उमाद में दूसरे राष्ट्रों में जो कुछ खरीदा जाता है, उसमें समाहित होता है।' (पृष्ठ ११।) अब ऐडम स्मिय की पहली ग़लती वार्षिक उत्पाद के मूल्य को नवोत्पादित वार्षिक मूल्य के गमीयत करना है। प्रतीक्त मूल्य पिछले साल के श्रम का उत्पाद मात्र है, प्रथमोक्त में वार्षिक उत्साद के निर्माण में उपमुक्त किंतु पिछले और अंशतः उससे पहले के भी वर्षों में उत्पादित मूल्य के सभी तत्वों के अलावा वे उत्पादन माधन भी शामिल होते हैं, जिनका मूल्य केबल पुनःप्रकट होता है, किंतु जो, जहां तक उनके मूल्य का गंबंध है, गत वर्ष में व्यायन 1 17