पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३२६

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विपय के पूर्व प्रस्तुतीकरण ३२५ . ) और अनुरक्षण के लिए आवश्यक प्रचल पूंजी हर अलग पूंजीपति की शुद्ध प्राय से पूर्णतः बाहर रहती है, जो केवल उसका लाभ ही हो सकती है, उसी प्रकार उपभोग वस्तुओं के उत्पादन में नियोजित प्रचल पूंजी भी उससे बाहर रहती है। अतः उसके माल उत्पाद का जो भाग उसकी पूंजी को प्रतिस्थापित करता है, वह मूल्य के उन घटकों में वियोजित नहीं हो सकता, जो उसकी कोई आय होते हैं। २) हर अलग पूंजीपति की प्रचल पूंजी उसी प्रकार समाज की प्रचल पूंजी का अंश होती है, जैसे हर वैयक्तिक स्थायी पूंजी होती है। ३) यद्यपि समाज की प्रचल पूंजी वैयक्तिक प्रचल पूंजियों का योगः ही होती है, फिर भी उसका स्वरूप हर अलग पूंजीपति की प्रचल पूंजी से भिन्न होता है। अलग पूंजीपति की प्रचल पूंजी उसकी अपनी प्राय का अंग कभी नहीं हो सकती ; फिर भी समाज की प्रचल पूंजी (यानी उपभोज्य वस्तुओंवाली पूंजी ) का एक भाग साथ ही समाज की आय का अंग बन सकता है अथवा जैसा उन्होंने पहले कहा था, उसे समाज की शुद्ध आय में अनिवार्यतः वार्पिक उत्पाद के एक हिस्से के वरावर कमी नहीं करना चाहिए। वस्तुतः ऐडम स्मिथ जिसे यहां प्रचल पूंजी कहते हैं, वह प्रति वर्ष उत्पादित माल पूंजी है, जिसे उपभोग वस्तुएं पैदा करनेवाले पूंजीपति प्रति वर्प परिचलन में डालते हैं। उनका यह सारा वार्षिक पण्य उत्पाद उपभोज्य वस्तुएं होती हैं और इसलिए उस निधि का निर्माण करता है, जिसमें समाज की शुद्ध प्राय ( मजदूरी समेत ) का सिद्धिकरण या व्यय होता है। ऐडम स्मिथ को व्यापारी की दूकान में माल की मिसाल लेने के बजाय प्रौद्योगिक पूंजीपतियों के गोदामों में जमा सामान की मिसाल को लेना चाहिए था। इसलिए ऐडम स्मिथ ने अगर विचार के उन क्षणिक आवेगों को सूत्रबद्ध कर लिया होता , जिन्होंने पहले उसके पुनरुत्पादन के, जिसे वह स्थायी पूंजी कहते हैं और अब उसके , जिसे वह प्रचल पूंजी कहते हैं , अध्ययन में अपने आपको उन पर हावी किया था, तो निम्नलिखित नतीजे पर पहुंचते : १) समाज के वार्षिक उत्पाद में दो क्षेत्र होते हैं। उनमें से एक में उत्पादन साधन होते हैं, दूसरे में उपभोग वस्तुएं। दोनों में प्रत्येक का विवेचन अलग-अलग किया जाना चाहिए । २) वार्षिक उत्पाद के जिस भाग में उत्पादन साधन समाहित होते हैं, उसका कुल मूल्य इस प्रकार विभक्त होता है : मूल्य का एक अंश उत्पादन साधनों के मूल्य का केवल इन उत्पादन साधनों के निर्माण उपभुक्त भाग होता है ; वह केवल नवीकृत रूप में पुनः प्रकट हुअा पूंजी मूल्य ही होता है ; एक और अंश श्रम शक्ति पर लगाई गई पूंजी के मूल्य के वरावर अथवा उत्पादन के इस क्षेत्र में पूंजीपतियों द्वारा अदा की गई कुल मजदूरी के बराबर होता है। और अन्त में मूल्य का तीसरा अंश किराया जमीन समेत प्रौद्योगिक पूंजीपतियों के मुनाफ़ों का स्रोत होता है। ऐडम स्मिथ के अनुसार प्रथम संघटक अंश इस पहले क्षेत्र में नियोजित तमाम वैयक्तिक पूंजियों की स्थायी पूंजी का पुनरुत्पादित अंश पृथक पूंजीपति की अथवा समाज की “शुद्ध आय का कोई भी भाग बनने से पूर्णतः अलग रहता है"। वह सदैव पूंजी की तरह कार्य करता है, प्राय की तरह कभी भी नहीं। उस सीमा तक हर पृथक पूंजीपति की "स्थायी पूंजी" किसी भी तरह समाज की स्थायी पूंजी से भिन्न नहीं होती। किंतु उत्पादन साधनों में समाविष्ट समाज के वार्पिक उत्पाद के मूल्य के अन्य अंश , अतः मूल्य के वे अंश , जो उत्पादन साधनों , -