पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३१०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वेशी मूल्य का परिचलन ३०९ 1 इस क गुना रकम से मजदूर वर्ग कभी भी उत्पाद का वह भाग नहीं खरीद पायेगा जो स्थिर पूंजी है, उसका तो जिक्र ही क्या कि जो पूंजीपति वर्ग का वेशी मूल्य है। इन १०० पाउंड के क गुने से मजदूर कभी भी सामाजिक उत्पाद के मूल्य के उस भाग से कुछ ज्यादा नहीं खरीद सकते , जो पेशगी परिवर्ती पूंजी के मूल्य को व्यक्त करनेवाले मूल्यांश के बराबर होता है। उस प्रसंग के सिवा , जिसमें द्रव्य का यह सार्विक संचय विभिन्न अलग-अलग पूंजीपतियों में, किसी भी परिमाण में अतिरिक्त रूप में जोड़ी बहुमूल्य धातुओं के वितरण के अलावा और कुछ व्यक्त नहीं करता , भला समूचा पूंजीपति वर्ग. किस तरह द्रव्य संचय कर सकता है ? सभी पूंजीपतियों को बदले में कुछ भी ख़रीदे विना अपने उत्पाद का एक हिस्सा बेचना होगा। यह तथ्य कोई रहस्य नहीं है कि उन सबके पास एक द्रव्य निधि है, जिसे वे अपने उपभोग के परिचलन माध्यम के रूप में परिचलन में डालते हैं, जिसका एक भाग उनमें से हरेक के पास परिचलन से लौट आता है। किंतु उस हालत में यह द्रव्य निधि वेशी मूल्य के द्रव्य में रूपांतरण के फलस्वरूप विल्कुल परिचलन निधि के रूप में रहती है और किसी भी तरह अंतर्हित द्रव्य पूंजी के रूप में नहीं होती। यथार्थ में जैसा होता है, उसे देखते हुए मामले पर विचार करें, तो हम देखते हैं कि भावी उपयोग के लिए जिस अंतर्हित द्रव्य पूंजी का संचय किया जाता है, उसमें निम्नलिखित का समावेश होता है: १) बैंकों में जमा धन ; और बैंकों के अधिकार में जो रकम वस्तुतः होती है, वह अपेक्षाकृत अत्यल्प ही होती है। यहां द्रव्य पूंजी का संचय नाममात्र को ही होता है। दरअसल जिस चीज़ का संचय होता है, वह बक़ाया दावे हैं, जिन्हें द्रव्य में परिवर्तित किया जा सकता है ( यदि कभी किया जाये, तो); यह केवल इसलिए कि निकाले हुए धन और जमा किये धन में एक संतुलन पैदा हो जाता है। बैंक के पास द्रव्य रूप में जो रक़म होती है, वह अपेक्षाकृत अल्प ही होती है। २) सरकारी प्रतिभूतियां । ये पूंजी होती ही नहीं, बल्कि राष्ट्र के वार्षिक उत्पाद पर वक़ाया दावे ही होती हैं। ३) स्टॉक [या शेयर । जो शेयर जाली नहीं होते , वे किसी निगमित वास्तविक पूंजी के सत्वाधिकार पत्र और उससे प्रति वर्ष प्राप्त बेशी मूल्य के धनादेश होते हैं। इन प्रसंगों में कहीं भी द्रव्य संचय नहीं है। जो कुछ एक ओर द्रव्य पूंजी के संचय की तरह प्रकट होता है, वह दूसरी ओर द्रव्य का निरंतर वास्तविक व्यय बनकर प्रकट होता है। यह महत्वहीन है कि द्रव्य को उसका मालिक ख़र्च करता है या दूसरे लोग, जो उसके क़र्ज़- दार हैं। पूंजीवादी उत्पादन के आधार पर अपसंचय का निर्माण अपने आप में कभी लक्ष्य नहीं होता, बल्कि या तो परिचलन में गतिरोध का नतीजा होता है- सामान्यतः जैसा होता है, उसके विपरीत द्रव्य की ज्यादा बड़ी राशियां अपसंचय का रूप धारण कर लेती हैं- अथवा आवर्त के कारण अावश्यक हुए संचयों का परिणाम होता है; अथवा अंततः अपसंचय केवल अस्थायी तौर पर अंतर्हित रूप में विद्यमान और उत्पादक पूंजी का कार्य करने के लिए अभीष्ट द्रव्य पूंजी का निर्माण होता है। हैं इसलिए यदि एक ओर द्रव्य रूप में सिद्धिकृत वेशी मूल्य का एक भाग परिचलन से हटा लिया जाये और अपसंचय के रूप में संचित कर लिया जाये , तो इसके साथ ही वेशी मूल्य का . -