पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३००

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वेशी मूल्य का परिचलन २६६ उसे द्रव्य में परिवर्तित करना होगा। जहां तक एक अकेले पूंजीपति का संबंध है, यह स्पष्ट ही मनमानी कल्पना है। किंतु यदि साधारण पुनरुत्पादन को कल्पित किया जाये, तो समूचे पूंजीपति वर्ग पर लागू किये जाने पर यह अवश्य सही होगी। यह वही वात प्रकट करती है, जो यह कल्पना किरती है, अर्थात समूचे वेशी मूल्य का, और इस मूल्य का- अतः मूल पूंजी स्टॉक के किसी भी अंश का नहीं - अनुत्पादक ढंग से ही उपभोग होता है। पहले यह माना गया था कि बहुमूल्य धातुओं का कुल उत्पादन (जो ५०० पाउंड के वरावर माना गया था) केवल द्रव्य की छीजन के प्रतिस्थापन के लिए पर्याप्त होता है। सोने का उत्पादन करनेवाले पूंजीपतियों के पास उनका सारा उत्पाद सोने के रूप में होता है- उसका वह भाग, जो स्थिर तथा परिवर्ती पूंजी को प्रतिस्थापित करता है, और वह भाग भी, जिसमें वेशी मूल्य समाविष्ट होता है। अतः सामाजिक वेशी मूल्य का एक भाग सोना होता है, ऐसा उत्पाद नहीं, जिसे परिचलन प्रक्रिया द्वारा ही सोने में परिवर्तित किया जाये। वह शुरू से ही सोना होता है और परिचलन में इसलिए डाला जाता है कि उससे उत्पाद निकाला जाये। यही वात यहां मजदूरी पर, परिवर्ती पूंजी पर और पेशगी स्थिर पूंजी के प्रतिस्थापन पर भी लागू होती है। अतः जहां पूंजीपति वर्ग का एक भाग अपने द्वारा पेशगी द्रव्य पूंजी से अधिक मूल्य का माल (वेशी मूल्य की मात्रा जितना अधिक ) परिचलन में डालता है, वहां पूंजीपतियों का दूसरा भाग परिचलन में उस माल के मूल्य से अधिक मूल्य का द्रव्य ( वेशी मूल्य की मात्रा जितना अधिक ) डालता है, जिसे वह सोने के उत्पादन के लिए परि- चलन से निरंतर निकालता रहता है। जहां पूंजीपतियों का एक भाग परिचलन से उसमें डाले गये द्रव्य से निरंतर अधिक द्रव्य निकालता है, वहां उनका वह भाग, जो सोना पैदा करता है, उत्पादन साधनों में निकाले हुए द्रव्य की अपेक्षा उसमें निरंतर अधिक द्रव्य डालता है। यद्यपि ५०० पाउंड के इस स्वर्ण उत्पाद का एक भाग स्वर्ण उत्पादकों का वेशी मूल्य होता है, फिर भी सारी राशि केवल माल परिचलन के लिए आवश्यक द्रव्य के प्रतिस्थापन के लिए ही उद्दिष्ट होती है। इस उद्देश्य के लिए यह वात निरर्थक है कि इस सोने का कितना हिस्सा मालों में समाविष्ट वेशी मूल्य को द्रव्य में परिवर्तित करता है, और उसका कितना हिस्सा अन्य मूल्य घटकों को द्रव्य में परिवर्तित करता है। सोने के उत्पादन का एक देश से दूसरे देश को स्थानांतरण करने से स्थिति में कोई भी परिवर्तन नहीं आता। क देश की सामाजिक श्रम शक्ति और सामाजिक उत्पादन साधनों का एक भाग ५०० पाउंड मूल्य के उत्पाद में, मसलन, लिनन में परिवर्तित कर दिया जाता है, जिसे ख देश को निर्यात कर दिया जाता है, जिससे कि वहां सोना खरीदा जा सके। इस प्रकार क देश में नियोजित उत्पादक पूंजी क देश के वाज़ार में- द्रव्य से भिन्न- उससे ज्यादा पण्य वस्तुएं नहीं डालती, जितनी वह तव डालती कि अगर उसे सीधे स्वर्ण उत्पादन में नियो- जित किया जाता। क का यह उत्पाद स्वर्ण के रूप में ५०० पाउंड व्यक्त करता है और देश के परिचलन में केवल द्रव्य रूप में प्रविष्ट होता है। सामाजिक वेशी मूल्य का जो भाग इस उत्पाद में समाविष्ट होता है, वह क देश के लिए केवल प्रत्यक्ष द्रव्य रूप में अस्तित्वमान होता है, कभी भी अन्य किसी रूप में नहीं। यद्यपि स्वर्ण उत्पादक पूंजीपतियों के लिए उत्पाद का सिर्फ़ एक अंश ही बेगी मूल्य को और दूसरा अंश पूंजी प्रतिस्थानिक को व्यक्त करता है, फिर भी यह प्रश्न कि प्रचल स्थिर पूंजी को छोड़कर इस स्वर्ण की कितनी मात्रा परिवर्ती पूंजी को .