पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९३

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पूंजी का प्रावतं . गरीदनी । श्रन गति और उत्पादन साधनों में उपमुक्त प्रचल पूंजी के द्रव्य रूप का उत्पाद को चिनी बारा नहीं, बन्न स्वयं उत्पाद के भौतिक रूप द्वारा प्रतिस्थापन होता है ; अतः परिनलन में द्रव्य रूप में उनके मूल्य को फिर से निकालकर नहीं, वरन अतिरिक्त नवोत्पादित द्रव्य दाग होता है। मान लें, यह प्रचल पूंजी ५०० पाउंड है, आवर्त अवधि ५ सप्ताह है, कार्य अवधि ४ मनाह और परिचलन अवधि केवल १ सप्ताह है। प्रारंभ से ही, कुछ द्रव्य ५ सप्ताह के लिए उसादा पूर्ति के हेतु पेगगी देना होगा और कुछ मजदूरी पर क्रमशः ख़र्च करने के लिए हाय में रखना होगा। छठे सप्ताह के शुरू में ४०० पाउंड वापस आ जायेंगे और १०० पाउंड मुक्त हो जायेंगे। इसकी निरंतर प्रावृत्ति होती रहती है। पूर्व प्रसंगों की तरह यहां भी १०० पाउंड प्रावतं के किसी निश्चित समय में सदैव मुक्त रूप में होंगे। लेकिन इनमें अतिरिक्त नवोत्पादित द्रव्य है, जैसे वह अन्य ४०० पाउंड में भी है। इस मामले में वार्पिक आवर्त संख्या १० है, और वार्षिक उत्पाद सोने के रूप में ५,००० पाउंड है। ( इस मामले में परिचलन अवधि में वह समय नहीं है, जो माल को द्रव्य में बदलने के लिए आवश्यक होता है, वरन वह समय है, जो द्रव्य को उत्पादन तत्वों में बदलने के लिए आवश्यक होता है।) ५.०० पाउंट की उन्हीं परिस्थितियों में प्रावर्तित प्रत्येक अन्य पूंजी के प्रसंग में निरंतर नवीकृत द्रव्य रूप हर ४ सप्ताह पर उत्पादित परिचलन में डाली जानेवाली माल पूंजी का परिवर्तित रूप है, जो अपनी विक्री से - अर्यात द्रव्य की उस मात्रा के नियतकालिक प्रत्याहार द्वारा, जिसे प्रक्रिया में मूलतः प्रवेश करते समय वह व्यक्त करती थी- इस द्रव्य रूप को वार- बार फिर धारण करती है। इसके विपरीत यहां हर पावर्त अवधि में ५०० पाउंड का नया अतिरिक्त द्रव्य स्वयं उत्पादन प्रक्रिया से परिचलन में डाल दिया जाता है, ताकि उससे श्रम शक्ति और उत्पादन सामग्री को निरंतर निकाला जा सके। परिचलन में डाला गया यह द्रव्य इन पूंजी के संपन्न किये परिपय द्वारा नहीं निकाला जाता है, बल्कि वह निरंतर उत्पादित सोने की रागियों से बढ़ता ही रहता है। आइये , प्रचल पूंजी के परिवर्ती भाग पर विचार करें और पहले की तरह मान लें कि वह १०० पाउंड है। तब सामान्य माल उत्पादन में ये १०० पाउंड १० श्रावों में श्रम शक्ति की लगातार अदायगी करते रहने के लिए पर्याप्त होंगे। यहां सोने के उत्पादन में उतनी ही राशि पर्याप्त है। किंतु पश्चप्रवाह के १०० पाउंड , जिनसे हर ५ सप्ताह पर श्रम शक्ति की अदा- यगी की जाती है, इस श्रम शक्ति के उत्पाद का परिवर्तित रूप नहीं हैं, वरन स्वयं इस नित नवीकृत उत्पाद का अंश हैं। सोने का उत्पादक अपने मजदूरों की अदायगी सीधे उस सोने के ही एक भाग से करता है, जिसका उत्पादन उन्होंने स्वयं किया है। अतः श्रम शक्ति पर सालाना गचं किये और श्रमिकों द्वारा परिचलन में डाले जानेवाले ये १,००० पाउंड अपने प्रारंभ बिंदु पर इस परिचलन के जरिये नहीं लौटते । फिर, जहां तक स्थायी पूंजी का संबंध है, व्यवसाय की मूल स्थापना के समय अपक्षाकृत बड़ी द्रव्य पूंजी लगाना जरूरी होता है और इस प्रकार यह पूंजी परिचलन में डाल दी जाती है। सभी स्थायी पूंजी की तरह वह वर्षों के दौर में थोड़ी-थोड़ी करके ही वापस आती है। किंतु वह उत्पाद के, सोने के, प्रत्यक्ष भाग के रूप में वापस आती है, उत्पाद की विक्री से और तत्पश्चात द्रव्य में उसके परिवर्तन से नहीं। दूसरे शब्दों में वह परिचलन से द्रव्य हटाकर नहीं, वरन उत्पाद के उतने ही भाग के संचय द्वारा धीरे-धीरे अपना द्रव्य रूप धारण करती . .