२६ भूमिका " 11 पर लागू जिसे उनके पूर्ववर्तियों में कोई भी संपन्न नहीं कर पाया था। उन्होंने स्वयं पूंजी के अन्दर विभेद स्थापित किया, जिसके साथ क्या करें, इसकी न तो रॉदवेर्टस और न बूर्जुया अर्थशास्त्रियों को ही कुछ भी समझ थी। लेकिन अर्यशास्त्र की सबसे पेचीदा समस्याओं की कुंजी यही है, जैसा कि 'पूंजी' के खंड २ से बड़े उजागर ढंग से सावित होता है तथा खंड ३ से और भी सावित हो जायेगा। उन्होंने वेशी मूल्य का और आगे विश्लेषण किया और उसके दो रूपों, निरपेक्ष और सापेक्ष वेशी मूल्य, का पता लगाया। उन्होंने यह भी दिखाया कि पूंजीवादी उत्पादन ऐतिहासिक विकास में इन दोनों रूपों ने अलग-अलग और हर वार निर्णायक भूमिकाएं अदा की थीं। बेशी मूल्य के आधार पर उन्होंने मजदूरी का वह प्रथम वुद्धिसंगत सिद्धान्त विकसित किया, जो हमें सुलभ है और पहली बार उन्होंने पूंजीवादी संचय के इतिहास और उसकी ऐतिहासिक प्रवृत्तियों की रूपरेखा तैयार की। और रॉदवेर्टस? इतना पढ़ने के बाद सदा से एक पूर्वाग्रहग्रस्त अर्थशास्त्री होने के नाते वह इसे "समाज पर आक्रमण"* समझते हैं और समझते हैं कि वेशी मूल्य का उद्गम कहां से होता है, इसे वह स्वयं कहीं अधिक स्पष्टता से और संक्षेप में कह चुके हैं और अन्त में घोपित करते हैं कि यह सब “पूंजी के वर्तमान रूप पर तो ज़रूर लागू होता है, अर्थात उस पूंजी पर कि जो ऐतिहासिक रूप से अस्तित्वमान है, लेकिन “पूंजी की अवधारणा नहीं होता, यानी पूंजी के बारे में उस यूटोपियाई अवधारणा पर लागू नहीं होता, जो श्री रॉदवेर्टस के मन में है। विलकुल बूढ़े प्रोस्टले की तरह ही, जो आखिरी दम तक फ़्लोजिस्टन पर विश्वाय करते रहे और आक्सीजन से कोई वास्ता रखने से इन्कार करते रहे। अकेली बात यह है कि प्रीस्टले ने सबसे पहले वास्तव में आक्सीजन प्राप्त किया था, जव कि रॉदवेर्टस ने तो अपने वेशी मूल्य में, ठीक से कहें, तो अपने “किराये" में महज़ एक ग्राम बात का ही फिर से पता लगाया था और लावोइजिए के विपरीत मार्क्स ने यह दावा करना तिरस्करणीय समझा कि वेशी मूल्य के अस्तित्व सम्बन्धी तथ्य का पता सबसे पहले उन्होंने लगाया। रॉदवेर्टस के दूसरे अर्यशास्त्रीय कारनामे भी लगभग इसी स्तर के हैं। वेशी मूल्य से उन्होंने जो यूटोपिया रचा था , उसकी आलोचना अनचाहे ही मार्क्स ने Poverty of Philosophy में कर दी है। उसके बारे में और जो कुछ कहा जा सकता था, वह उस ग्रन्थ के जर्मन संस्करण की भूमिका में मैं कह चुका हूं।" रॉदवेर्टस की वाणिज्यिक संकटों की यह व्याख्या कि वे मजदूर वर्ग के अल्पोपभोग के परिणाम होते हैं, सीसमांडी की पुस्तक Nouveaux Principes de "Economie Politique, खण्ड ४ , अध्याय ४ में पहले ही की जा चुकी है। किन्तु सीसमांडी का ध्यान हमेशा विश्व बाजार पर था , रॉदवेर्टस का विचार-क्षितिज प्रशा की सीमानों के पार नहीं फैल पाता। मजदूरी का स्रोत पूंजी है या प्राय , इस बारे में उनकी अटकलें वितंडावादियों जैसी . s
- K. Rodbertus-Jagetzow, Briefe und sozialpolitische Aufsätze. Herausge-
geben von Dr. R. Meyer. Berlin, 1881, Bd. 1, S. 111.-
- K. Marx, The Poverty of Philosophy, Moscow, 1962. - #
3 " इस प्रकार मुट्ठी भर मालिकों के हाथ में सम्पत्ति के इकट्ठा हो जाने से घरेलू वाज़ार अधिकाधिक संकुचित होता जाता है और अपने माल को ठिकाने लगाने के लिए उद्योग को अधिकाधिक विदेशी बाजारों को तलाशना पड़ता है, जहां उसे जवरदस्त उथलपुथलों का ख़तरा है" (अर्थात १८१७ का संकट, जिसका वर्णन इसके तुरंत बाद ही किया गया है)। Nouveaux Principes, १८१६, १, पृष्ठ ३३६ ।