पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२६४

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परिवर्ती पूंजी का प्रावर्त २६३ के बराबर है ) की पावर्त अवधियों के छोटे-बड़े चक्र के दौरान उत्पादन प्रक्रिया में कार्य करती रहती है, जब कि प्रत्येक प्रावर्त उत्पादन क्षेत्र से - माल पूंजी के रूप में- परिचलन क्षेत्र में जानेवाली समग्र प्रचल पूंजी के प्रतिस्थापन पर निर्भर होता है। स्थिर प्रचल पूंजी तथा परिवर्ती प्रचल पूंजी के लिए परिचलन का पहला दौर मा' - द्रा सामान्य होता है। दूसरे दौर में वे जुदा हो जाती हैं। माल जिस द्रव्य में पुनःपरिवर्तित होता है, वह अंशतः उत्पादक पूर्ति ( स्थिर प्रचल पूंजी) में रूपांतरित हो जाता है। द्रव्य के संघटक अंशों के क्रय की अलग-अलग शों के अनुसार उसका कोई भाग कुछ पहले , तो कोई कुछ वाद में , उत्पादन सामग्री में परिणत हो सकता है, लेकिन आखिरकार उसकी पूरी-पूरी खपत उसी तरह होती है। माल की विक्री से प्राप्त द्रव्य का एक अन्य भाग द्रव्य पूर्ति के रूप में उत्पादन प्रक्रिया में समाविष्ट श्रम शक्ति की अदायगी में शनैः शनैः खर्च किये जाने के लिए सुरक्षित रहता है। यह भाग परिवर्ती प्रचल पूंजी होता है। फिर भी दोनों में से किसी भी भाग के समूचे प्रतिस्थापन की शुरूयात हमेशा पूंजी के आवर्त से उसके पूंजी में, उत्पाद से माल में, माल से द्रव्य में रूपांतरण से होती है। यही कारण है कि पिछले अध्याय में प्रचल - स्थिर और परिवर्ती - पूंजी के प्रावर्त का विवेचन स्थायी पूंजी की ओर ज़रा भी ध्यान दिये विना एकसाथ और अलग-अलग किया गया था। अव हम जो समस्या लेंगे, उसमें हमें एक क़दम और आगे जाना होगा और यह मानकर चलना होगा, मानो प्रचल पूंजी का परिवर्ती भाग ही अकेले प्रचल पूंजी है। दूसरे शब्दों में हम उस स्थिर प्रचल पूंजी का विवेचन यहां नहीं करेंगे, जो उसके साथ प्रावर्तित होती है। २,५०० पाउंड की रक़म पेशगी दी गई है और वार्पिक उत्पाद का मूल्य २५,००० पाउंड है। किंतु प्रचल पूंजी का परिवर्ती भाग ५०० पाउंड है ; इसलिए २५,००० पाउंड में प्रचल पूंजी हुई ५ से विभाजित २५,०००, यानी ५,००० पाउंड। यदि हम इन ५,००० पाउंड को ५०० पाउंड से विभाजित करें, तो पाते हैं कि आवर्तों की संख्या १० है, जैसे २,५०० पाउंड की कुल पूंजी के प्रसंग में भी थी। जहां प्रश्न केवल वेशी मूल्य के उत्पादन का होता है, वहां यह औसत परिकलन करना पूर्णतः सही है, जिसके अनुसार वार्षिक उत्पाद के मूल्य को पेशगी पूंजी के मूल्य से विभाजित किया जाता है, इस पूंजी के उस भाग के मूल्य से नहीं, जो एक कार्य अवधि में लगातार काम में लाया जाता है (जैसे वर्तमान प्रसंग में ४०० से नहीं, ५०० से , पूंजी १ से नहीं, पूंजी १ और पूंजी २ के योग से )। हम आगे देखेंगे कि एक और दृष्टिकोण से यह परिकलन पूर्णतः सही नहीं है, जैसे यह अौसत परिकलन भी समूचे तौर पर पूर्णतः सही नहीं है। दूसरे शब्दों में पूंजीपति के व्यावहारिक प्रयोजनों के लिए तो यह काफ़ी ठीक है, किंतु यह आवर्त की सभी वास्तविक परिस्थितियां यथार्थतः या उचित ढंग से प्रकट नहीं करता। हमने अभी तक माल पूंजी के उस मूल्यांश की, अर्थात उसमें निहित वेशी मूल्य की उपेक्षा की है, जो उत्पादन प्रक्रिया के दौरान पैदा हुअा और उत्पाद में समाविष्ट हुअा था। इसकी ओर हम अव ध्यान देंगे। मान लीजिये , प्रति सप्ताह निवेशित १०० पाउंड परिवर्ती पूंजी १००% वेशी मूल्य या १०० पाउंड पैदा करती है। तव ५ हफ्ते की आवर्त अवधि में निवेशित ५०० पाउंड परिवर्ती पूंजी ५०० पाउंड वेशी मूल्य पैदा करेगी, अर्थात प्राधे कार्य दिवस में वेशी श्रम समाविष्ट होगा। यदि ५०० पाउंड परिवर्ती पूंजी ५०० पाउंड वेशी मूल्य पैदा करती है, तो . .