पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२४३

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२४२ पूंजी का यावर्त ही गठित हो, इस उत्पादन क्षेत्र के भीतर की सामाजिक पूंजी केवल पूंजी १ तथा २ तो इस क्षेत्र में सामाजिक पूंजी के आवर्त का परिकलन भी वैसे ही होगा, जैसे यहां एक ही निजी पूंजी के १ और २ घटकों का होता है। और आगे जाने पर किसी भी ख़ास उत्पादन क्षेत्र में निवेशित कुल सामाजिक पूंजी के प्रत्येक भाग का परिकलन इसी तरह किया जा सकता है। किंतु अंतिम विश्लेपण में कुल सामाजिक पूंजी के प्रावों की संख्या विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में पेशगी पूंजियों के योग द्वारा विभाजित उन क्षेत्रों में प्रावर्तित पूंजियों के योग के बराबर होती है। इसके अलावा इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि जैसे यहां सही अर्थों में उसी निजी व्यवसाय में १ और २ पूंजियों के आवर्त वर्ष भिन्न-भिन्न होते हैं (पूंजी २ का आवर्त चक्र पूंजी १ के प्रावतं चक्र के मुकावले ४ १/२ हफ्ते बाद शुरू होता है, जिससे कि पूंजी १ का वर्ष पूंजी २ की अपेक्षा ४ १/२ हफ्ते पहले समाप्त होता है), वैसे ही उत्पादन के उसी क्षेत्र में विभिन्न निजी पूंजियां अपने काम नितांत भिन्न अवधियों में शुरू करती हैं और इसलिए अपने प्रावर्त वर्ष भी वर्ष के भिन्न-भिन्न समय पर पूरे करती हैं। प्रीसतों का वही परिकलन, जिसका हमने ऊपर १ और २ पूंजी के लिए उपयोग किया था, यहां भी सामाजिक पूंजी के विभिन्न स्वतंत्र भागों के प्रावर्त वर्षों को एक ही समरूप आवर्त वर्ष पर लाने के लिए पर्याप्त है। , २. परिचलन अवधि से बड़ी कार्य अवधि १ और २ पूंजियों की कार्य तया आवर्त अवधियां एक दूसरे की एवज़ी करने के बदले एक दूसरे को काटती हैं। इसके साथ ही कुछ पूंजी मुक्त हो जाती है। पहले विवेचित मामले में ऐसा नहीं था। किंतु इससे यह तथ्य नहीं बदल जाता कि पहले की तरह , १) कुल पेशगी पूंजी की कार्य अवधियों की संख्या कुल पेशगी पूंजी द्वारा विभाजित पूंजी के दोनों पेशगी भागों के वार्पिक उत्पाद के मूल्य के योग के बरावर होती है, और २) कुल पूंजी द्वारा संपन्न किये प्रावों की संख्या दोनों पेशगी पूंजियों के योग द्वारा विभाजित दोनों प्रावर्तित राशियों के योग के वरावर होती है। यहां भी हमें पूंजी के दोनों भागों पर इस तरह विचार करना चाहिए, मानो उन्होंने एक दूसरे से पूर्णतः स्वतंत्र रहकर अपनी आवर्त गति पूरी की हो। इस प्रकार हम एक बार फिर मान लेते हैं कि श्रम प्रक्रिया के लिए प्रति सप्ताह १०० पाउंड पेशगी देने होंगे। मान लीजिये कि कार्य अवधि ६: हफ़्ते की है, इसलिए हर वार ६०० पाउंड (पूंजी १) की पेशगी दरकार होगी। मान लीजिये कि परिचलन काल ३ हफ़्ते का है, जिससे कि आवर्त अवधि पहले की ही तरह ६ हफ़्ते की होगी। मान लीजिये कि अव पूंजी १ की ३ हफ़्ते की परिचलन अवधि के दौरान ३०० पाउंड की पूंजी २ पदार्पण करती है। दोनों पूंजियों को परस्पर स्वतंत्र मानने पर हम देखते हैं कि वार्षिक पावर्त का कार्यक्रम इस प्रकार रहता है: