२२ भूमिका . 1 नाम का वह 'अद्भुत मोची चर्चा का विषय बनने लगा था। यह पुस्तिका रिकार्डो से आगे की वास्तविक प्रगति को मूचक है। उसमें वेशी मूल्य को या रिकार्डों की भाषा में 'लाभ' (अक्सर वेशी उत्पाद भी) या पुस्तिका के लेखक के शब्दों में सूद को सीधे-सीधे वेशी श्रम, वह श्रम कहा गया है, जिसे मजदूर पारिश्रमिक पाये बिना ही करता है, जिसे वह श्रम की उस माना के अतिरिक्त करता है, जिससे उसको श्रम शक्ति के मूल्य की प्रतिस्थापना होती है, अर्थात उसकी मजदूरी का समतुल्य पैदा होता है। मूल्य को श्रम के समानीत करना जितना महत्वपूर्ण था, वेशी उत्पाद के रूप में प्रकट होनेवाले वेशी मूल्य को वेशी श्रम के समानोत करना भी उतना ही महत्वपूर्ण था। यह ऐडम स्मिय पहले ही बता चुके थे और यह रिकार्डो के विवेचन में एक प्रधान तत्व है। पर उन्होंने ऐसा कहा नहीं था, न उसे निरपेक्ष रूप से कहीं स्थापित ही किया था।"* इसके आगे पाण्डुलिपि के पृष्ठ ८५६ पर हम पढ़ते हैं : “इसके अलावा लेखक पहले से चले आते अर्थशास्त्रीय संवर्गों में कैद है। वेशी मूल्य को मुनाफ़े से उलझा देने के कारण जैसे रिकार्डो अवांछित अन्तर्विरोधों में फंस जाते हैं, वैसे ही यह लेखक वेशी मूल्य को पूंजी के सूद की संज्ञा देकर उसी चक्कर में आ जाता है। यह सही है कि सारे वेशी मूल्य को वेशी श्रम के समानीत करनेवाला पहला व्यक्ति होने के नाते वह रिकार्डो से आगे जाता है, इसके अलावा वेशी मूल्य को पूंजी का सूद कहने के साथ ही वह इस पर जोर देता है कि इस शब्दावली से उसका आशय है वेशी श्रम का सामान्य रूप, जो उसके विशेप रूपों से पृथक है, जैसे किराया, धन पर व्याज और कारोबार का मुनाफ़ा। इस पर भी उसने सामान्य रूप के लिए इन्हीं विशेष रूपों में से एक का नाम - सूद - चुन लिया है। और यही उसे अर्यशास्त्रीय शब्दजाल में फंसाने के लिए काफ़ी सावित हुआ। यह आखिरी हिस्सा रॉदवेर्टस पर विलकुल फ़िट बैठता है। वह भी पहले से चले आते श्रर्यशास्त्रीय संवर्गों के, बन्दी हैं। वह भी वेशो मूल्य को उसी के एक परिवर्तित उपरूप - -किराये- की संज्ञा देते हैं और उसे भी विल्कुल] अनिश्चित बना देते हैं। इन दो ग़लतियों का नतीजा यह होता है कि वह अर्थशास्त्रीय शब्दजाल में पड़ जाते हैं और रिकार्डो से पागे अपनी प्रगति को आलोचनात्मक परिणति तक नहीं ले जा पाते और इसके वजाय वह उनके अधूरे सिद्धान्त को ही, जो भ्रूणरूप में ही है, अपने यूटोपिया का प्राधार वनाने लगते हैं। लेकिन पीर हमेशा की तरह यहां भी वह बहुत पिछड़ जाते हैं। उपर्युक्त पुस्तिका १८२१ में प्रकाशित हो गयी थी और उसने रॉदबेर्टस के १८४२ के “किराये" को पूरी तरह से पूर्वकल्पना कर ली थी। हमारी यह पुस्तिका उस समूचे साहित्य को केवल दूरतम चौकी की तरह है, जिसने तीसरे दशक में रिकार्डो के मूल्य तथा वेशी मूल्य के सिद्धान्त को पूंजीवादी उत्पादन के ख़िलाफ़ सर्वहारा के हित में मोड़ दिया था और पूंजीपतियों का सामना उनके ही अस्त्रों से किया था। प्रोवेन का सारा कम्युनिज्म , जहां तक वह अर्यशास्त्रीय वहस में पड़ता है, रिकार्डो पर आधारित है। उनके अलावा और भी न जाने कितने लेखक हैं, जिनमें कुछ को मार्क्स ने १८४७ में 11 ***
- Some Illustrations of Mr. M'Culloch's Principles of Political Economy
नामक पुस्तिका के लेखक द्वारा मैक-कुलोच को दिया उपनाम। यह पुस्तिका १८२६ में एडिनवरा में प्रकाशित हुई थी। लेखक का नाम एम० मुलियन दिया गया है, जो जॉन विल्सन का साहित्यिक उपनाम है। -सं०
- K. Marx, Theorien über den Mehrwert (Vierter Band des Kapitals), 3.
Teil, Berlin, 1962, SS. 236-237. - o 'वही, पृष्ठ २५२-२५३ । -सं०