भूमिका १६ .. " ** 11 11 *** 1 हिस्सों में बंट जाता है, जिनमें से एक हिस्से से उनकी मजदूरी मिलती और दूसरा हिस्सा उनके मा- लिक को सामान और मजदूरी पर दिये सारे धन पर मुनाफ़ा देता है।"* थोड़ा और आगे चलकर वह कहते हैं : “जैसे ही किसी देश की सारी ज़मीन निजी सम्पत्ति बन जाती है, वैसे ही और सभी इन्सानों की तरह भूस्वामी भी चाहते हैं कि जहां उन्होंने कभी कुछ वोया नहीं, वहां भी फ़सल काटें और भूमि की प्राकृतिक उपज के लिए भी वे लगान मांगते हैं . श्रमिक अपनी मेहनत से जो चीजें इकट्ठा करता या पैदा करता है, उनका एक हिस्सा उसे भूस्वामी को देना पड़ेगा। यह हिस्सा या उसकी कीमत , किराया जमीन वन जाता है। Zur Kritik, etc. नाम की उक्त पाण्डुलिपि में इस कथन पर मार्क्स यह टिप्पणी (पृष्ठ २५३ ) करते हैं: इस प्रकार ऐडम स्मिथ बेशी मूल्य - अर्थात वेशी श्रम , सवेतन श्रम से अलग और उसके अलावा किये गये तथा माल में मूर्त अतिरिक्त श्रम , वह श्रम , जो मजदूरी में अपना समतुल्य प्राप्त कर चुका है- को सामान्य संवर्ग मानते हैं, अपने निश्चित अर्थ में लाभ और किराया ज़मीन जिसकी प्रशाखाएं मात्र हैं। ऐडम स्मिथ आगे कहते हैं (खंड १, अध्याय ८ :) : “जैसे ही ज़मीन निजी सम्पत्ति वन जाती है, श्रमिक उससे जो कुछ भी पैदा कर सकता है या इकट्ठा कर सकता है, लगभग उस सारी उपज में से भूस्वामी हिस्सा मांगता है। उसका किराया जमीन पर जो श्रम किया जाता है, उसकी उपज से पहली कटौती होता है। ऐसा बहुत कम होता है कि जो आदमी खेत जोतता है, उसके पास फ़सल काटने के समय तक के लिए निर्वाह साधन हों। आम तौर से जो मालिक या फ़ार्मर उसे काम में लगाता है, उसके धन से ही उसे निर्वाह साधन पेशगी दिये जाते हैं। उसके श्रम की उपज में उसे हिस्सा न मिले या दिया हुआ सामान मुनाफ़े समेत उसमें वापस न भरा जाये, तो श्रमिक को काम देने में उसे कोई दिलचस्पी न होगी। ज़मीन पर जो श्रम कराया जाता है, उसकी उपज लाभ के रूप में यह दूसरी कटौती होती है। श्रम की लगभग अन्य सभी उपज से इसी तरह मुनाफ़े के लिए कटौती की जा सकती है। कला-कौशल और हस्तउद्योग के सभी धन्धों में अधिकांश मजदूरों को ऐसे ही मालिक की ज़रूरत होती है, जो उनके काम के लिए सामान , मजदूरी और गुज़र का खर्च पूरा होने तक पेशगी दे सके। उसे उनके श्रम की उपज में हिस्सा मिलता है , या उस मूल्य में हिस्सा मिलता है , जो उस दिये हुए सामान में जोड़ा गया है, जिस पर श्रम किया गया है और यह हिस्सा ही उसका लाभ है। मार्क्स की टिप्पणी (पाण्डुलिपि, पृष्ठ २५६ ) : “यहां ऐडम स्मिथ ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि किराया ज़मीन और पूंजी पर लाभ श्रमिक की उपज से अथवा उसकी उपज के मूल्य से कटौती मात्र हैं, जो कच्चे माल में उसके जोड़े श्रम के बरावर होता है। लेकिन . 1 "*** .. 2
- A. Smith, An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations,
London, 1843, Vol. 1, pp. 131-132.- To वही, पृष्ठ १३४।-सं०
- Karl Marx, Theories of Surplus-Value (Volume IV of Capital), Moscow,
1963, Part I, pp. 80–81. - #
- A. Smith, An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Na-
tions, London, 1843, Vol. 1, pp. 172-173. - o