पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१९३

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११२ पूंजी का प्रावतं की जाती हैं, जो उसी में जीती हैं और मरती हैं और जो उसमें एक बार दाखिल होने पर उसने फिर कभी जुदा नहीं होती, वे उत्पादक पूंजी के प्रचल घटक होती हैं। उदाहरण के लिए, उत्पादन प्रक्रिया में मशीन चलाने में प्रयुक्त कोयला, कारखाने में रोशनी के लिए प्रयुक्त गैस , आदि ऐसी ही चीजें हैं। ये चीजें प्रत्रल पूंजी इसलिए नहीं हैं कि उत्पाद के साथ- साथ वे उत्पादन प्रक्रिया से भौतिक रूप में जुदा होती हैं और माल रूप में परिचालित होती हैं, वरन इसलिए हैं कि उनका मूल्य उस उत्पाद के मूल्य में पूर्णतः प्रवेश कर जाता है, जिसके उत्पादन में उनका योग होता है, अतः जिसे माल की विक्री से पूर्णतः प्रतिस्थापित करना होगा। ऐडम स्मिथ के पूर्वोद्धृत अंश में इस वाक्य पर भी ध्यान देना चाहिए : “प्रचल पूंजी ... जो उन मजदूरों का भरण-पोपण जुटाती है, जो इनका निर्माण करते हैं" ( मशीनों, अादि का)। प्रकृतितंत्रवादियों के यहां पूंजी का वह भाग, जो मजदूरी के लिए पेशगी दिया जाता है, सही तौर पर avances primitives [आद्य पेशगी ] से भिन्न avances annuelles [ वार्षिकं पेशगी ] के अन्तर्गत रखा जाता है। दूसरी ओर उनके यहां फ़ार्म द्वारा उपयुक्त उत्पादक पूंजी का घटक स्वयं श्रम शक्ति को नहीं, वरन खेत मजदूरों को दिये जानेवाले निर्वाह साधनों ( ऐडम स्मिथ की शब्दावली में मजदूरों के भरण-पोपण ) को माना जाता है। यह उनके वि- शिष्ट सिद्धान्त के साथ पूर्णतः संगत है। कारण यह कि उनके अनुसार श्रम द्वारा उत्पाद में जोड़ा गया मूल्यांश (बहुत कुछ उस मूल्यांश की ही तरह , जो कच्चे माल , श्रम उपकरणों, आदि द्वारा, संक्षेप में स्थिर पूंजी के सभी भौतिक घटकों द्वारा उत्पाद में जोड़ा जाता है), निर्वाह साधनों के उस मूल्य के ही वरावर होता है, जो मजदूरों को दिया जाता है और जो श्रम शक्ति के नाते अपनी कार्य क्षमता बनाये रखने के लिए अनिवार्यतः खप जाता है। उनका आन्त ही स्थिर और परिवर्ती पूंजी के भेद का पता लगाने में वाधक होता है। यदि श्रम (खद अपनी कीमत के पुनरूत्पादन के अलावा ) वेशी मूल्य का उत्पादन करता है, तो वह ऐसा उद्योग और कृपि दोनों में करता है। किन्तु चूंकि उनकी पद्धति के अनुसार श्रम केवल उत्पादन की एक शाखा , अर्थात कृपि में ही वेशी मूल्य का सृजन करता है, अतः वह श्रम से उत्पन्न नहीं होता, वरन इस शाखा में प्रकृति की विशेष क्रियाशीलता (सहायता) से उत्पन्न होता है। और केवल इसी कारण उनके लिए श्रम के अन्य प्रकारों से भिन्न कृपि श्रम उत्पादक श्रम है। ऐडम स्मिथ श्रमिकों के निर्वाह साधनों को स्थायी पूंजी के विरुद्ध प्रचल पूंजी कहते हैं : १) कारण यह कि वह स्थायी पूंजी से भिन्न प्रचल पूंजी को पूंजी के परिचलन क्षेत्र से सम्बद्ध रूपों से , परिचलन पूंजी से उलझा देते हैं। इस उलझन को विना सोचे-समझे मंजूर कर लिया गया है। इसलिए वह माल पूंजी को तथा उत्पादक पूंजी के प्रचल घटक को मिला देते हैं और उस स्थिति में यह स्वाभाविक ही है कि जब भी सामाजिक उत्पाद माल रूप धारण करता है, श्रमिकों और गैरश्रमिकों, दोनों के ही निर्वाह साधनों, सामग्री तथा स्वयं श्रम उपकरण को माल पूंजी में से ही जुटाना होगा। २) किन्तु स्मिथ के विश्लेपण में प्रकृतितंत्रवादी धारणा भी कहीं अपनी झलक दिखाती है, यद्यपि वह उनके विवेचन के अंतरंग- वस्तुतः वैज्ञानिक - अंश का खंडन करती है। सामान्यतः पेशगी पूंजी उत्पादक पूंजी में परिवर्तित हो जाती है, अर्थात वह उत्पादन के - .