पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१९१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२० पूंजी का प्रावतं . उसादक नहीं, केवल वैयक्तिक उपभोग साधनों के रूप में काम आता है। सारा उत्पाद माल के रूप में बाजार में डाला जाता है; अतः सभी उत्पादन अथवा उपभोग साधनों, उत्पादक और वैयक्तिक उपभोग के सभी तत्वों को बाजार से माल रूप में खरीदकर निकालना होता है। यह सामान्य उक्ति बेशक सही है। इसी कारण वह उत्पादक पूंजी के स्थायी और प्रचल दोनों तत्वों पर, श्रम उपकरण तथा सभी रूपों में धम सामग्री पर लागू होती है। (इसके अलावा इसमें इस तथ्य को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है कि उत्पादक पूंजी के ऐसे तत्व भी होते हैं, जिन्हें प्रकृति उपलब्ध कराती है, जो उत्पाद नहीं होते।) बाजार में मशीन खरीदी जाती है, जैसे कपास ख़रीदी जाती है। किन्तु इससे यह कतई सावित नहीं होता कि प्रत्येक स्थायी पूंजी का मूल स्रोत कोई प्रचल पूंजी होती है, यह सिर्फ़ परिचलन पूंजी के प्रचल अथवा अस्थिर पूंजी , अर्थात अस्थायी पूंजी के साथ स्मिथी उलझाव से ही पैदा होता है। इसके अलावा स्मिथ वस्तुतः स्वयं अपना खंडन करते हैं। स्वयं उनके अनुसार माल रूप में मशीनें प्रचल पूंजी के चौथे भाग का अंग होती । इसलिए यह कहने का कि वे प्रचल पूंजी से आती हैं, अर्थ यही होता है कि मशीनों के रूप में कार्य करने से पहले उन्होंने माल पूंजी का कार्य किया था, किन्तु भौतिक रूप में उन्हें स्वयं उन्हीं से प्राप्त किया जाता है, जैसे किसी कताई करनेवाले की पूंजी के प्रचल तत्व के रूप में कपास, वाज़ार के कपास से प्राप्त होती है। किन्तु यदि ऐडम स्मिथ अपने आगे के विवेचन में स्थायी पूंजी को इस कारण प्रचल पूंजी से निकालते हैं कि मशीनें बनाने के लिए श्रम और कच्चे माल की ज़रूरत होती है, तो यह याद रखना चाहिए कि एक तो मशीनें बनाने लिए श्रम उपकरण , अतः स्थायी पूंजी भी आवश्यक होती हैं, और दूसरे इसी तरह कच्चा माल वनाने के लिए स्थायी पूंजी, जैसे मशीनें , वगैरह की आवश्यकता होती है, क्योंकि उत्पादक पूंजी में श्रम उपकरण तो हमेशा शामिल होते हैं, किन्तु श्रम सामग्री हमेशा शामिल नहीं होती। वह खुद ही फ़ौरन वाद कहते हैं : " ज़मीन , खानें और मत्स्य क्षेत्र इन सभी से पैदा करने के लिए स्थायी और प्रचल पूंजी, दोनों की जरूरत होती है; ( इस प्रकार वह स्वीकार करते हैं कि कच्चा माल पैदा करने के लिए प्रचल पूंजी ही नहीं, स्थायी पूंजी भी दरकार होती है ) " तथा" ( यहां एक नई ग़लती है ) "उनकी उपज उन्हीं पूंजियों को नहीं, वरन समाज को सभी अन्य पूंजियों को भी मुनाफ़े सहित प्रतिस्थापित करती है" (पृष्ट १८८) । यह विल्कुल ग़लत है। उनकी उपज उद्योग की सभी अन्य शाखाओं के लिए कच्चा माल , सहायक सामग्री, वगैरह मुहैया करती है। किन्तु उनका मूल्य सभी अन्य सामाजिक पूंजियों के मूल्य को प्रतिस्थापित नहीं करता ; वह केवल उनके अपने पूंजी मूल्य (वेशी मूल्य सहित ) को प्रतिस्थापित करता है। यहां ऐडम स्मिथ अपनी प्रकृतितांत्रिक यादों की जकड़ में फिर आ जाते हैं। सामाजिक दृष्टि से यह सही है कि माल पूंजी का एक भाग, जिसमें वह उत्पाद होता है, जो श्रम उपकरणों के ही काम आ सकता है, देरसवेर श्रम उपकरणों की तरह ही काम कर सकेगा, बशर्ते कि उसका उत्पादन उद्देश्यहीन न हो और वह वेचा न जाये , अर्थात उसका याधार पूंजीवादी उत्पादन होने के कारण जब यह उत्पाद माल नहीं रहता है, तो उसे सामाजिक उत्पादक पूंजी के स्थायी भाग का वास्तविक तत्व वन जाना होगा, जैसे वह पहले उसका संभाव्य 31 2 तत्व था। किन्तु यहां एक भेद है, जो उत्पाद के भौतिक रूप से उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, कताई मशीन का कोई उपयोग मूल्य नहीं होता, वशतें कि कताई