पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१४९

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१४८ पूंजी का प्रावर्त पूर्णतः घिस जाने तक वरावर घटता जाता है, उसका मूल्य न्यूनाधिक काल में निरन्तर दोहराई जानेवाली श्रम प्रक्रियाओं की शृंखला से पैदा होनेवाले उत्पादों की राशि में वितरित होता है। किन्तु जब तक वे श्रम उपकरण की हैसियत से काम लायक़ बने रहते हैं, और उनकी उसी तरह के नये उपकरणों से प्रतिस्थापना करना ज़रूरी नहीं होता, तव तक स्थिर पूंजी मूल्य की एक राशि उनमें नियत रहती है, जब कि मूल्य का दूसरा भाग , जो मूलतः उनमें नियत किया गया था , उत्पाद में स्थानान्तरित हो जाता है और इसलिए माल पूर्ति के संघटक अंश के रूप में परिचालित होता है। श्रम उपकरण जितना अधिक चलते , जितना धीरे-धीरे छीजते हैं, उतना ही उनका स्थिर पूंजी मूल्य इस उपयोग रूप में नियत रहेगा। किन्तु उनकी मीयाद जो भी हो, उनके मूल्य उत्पन्न करने का अनुपात सदा उसके कार्यशील रहने के समग्र काल का प्रतिलोम होता है। यदि समान मूल्य की दो मशीनों में एक पांच साल में और दूसरी दस साल में छीजती है, तो उतने ही काल में दूसरी की अपेक्षा पहली दुगना मूल्य उत्पन्न करेगी। श्रम उपकरणों में नियत पूंजी मूल्य का यह भाग उसके किसी भी अन्य भाग की तरह ही परिचलन करता है। हम सामान्यरूपेण देख चुके हैं कि सारा पूंजी मूल्य निरन्तर परिचलन में रहता है और इस दृष्टि से सभी पूंजी प्रचल पूंजी होती है। किन्तु पूंजी के जिस भाग के परि- चलन का अध्ययन हम यहां कर रहे हैं, वह विशिष्ट है। पहली बात यह कि वह अपने उपयोग रूप में परिचलन नहीं करती, बल्कि केवल उसका मूल्य परिचलन करता है और यह सब क्रमशः, थोड़ा-थोड़ा करके और उस अनुपात में होता है, जिसमें वह उससे उत्पाद में पहुंचता है, जो माल के रूप में परिचलन करता है। उसकी कार्यशीलता की समग्र अवधि में उसके मूल्य का एक भाग उन मालों से निरपेक्ष रूप में उसमें सदैव नियत रहता है, जिनके निर्माण में वह सहायता देता है। यही वह विशेषता है, जो स्थिर पूंजी के इस भाग को स्थायी पूंजी का रूप देती है। पूंजी के अन्य सभी भौतिक अंश , जो उत्पादन प्रक्रिया में पेशगी दिये जाते हैं, इसकी तुलना में प्रचल अथवा अस्थिर पूंजी होते हैं। उत्पादन के कुछ साधन भौतिक रूप में उत्पाद में दाखिल नहीं होते। श्रम उपकरणों द्वारा अपने कार्य के निप्पादन में उपभुक्त सहायक सामग्रियां, जैसे वाप्प इंजन द्वारा उपमुक्त कोयला या मात्र क्रिया में सहायता देनेवाली सहायक सामग्रियां, जैसे रोशनी करने के लिए गैस , आदि इसी तरह के साधन हैं। केवल उनका मूल्य ही उत्पाद के मूल्य का अंश बनता है। उत्पाद स्वयं अपने परिचलन में इन उत्पादन साधनों के मूल्य को भी परिचालित करता है। उनमें और स्थायी पूंजी में यह लक्षण सामान्य है। किन्तु वे जिस भी श्रम प्रक्रिया में दाखिल होते हैं, उसमें पूरी तरह खप जाते हैं और इसलिए प्रत्येक नई श्रम प्रक्रिया में उनकी उसी प्रकार के नये उत्पादन साधनों से प्रतिस्थापना करना ज़रूरी होता है। अपना कार्य करते हुए वे अपना स्वतंत्र उपयोग रूप नहीं बनाये रखते। इसलिए जब तक वे कार्यरत रहते हैं, तब तक उनके पुराने उपयोग रूप में, उनके भौतिक रूप में पूंजी मूल्य का कोई अंश भी नियत नहीं रहता। . इस परिस्थिति ने कि सहायक सामग्री का यह अंश भौतिक रूप में उत्पाद में नहीं बदलता, वरन उत्पाद के मूल्य में स्वयं अपने मूल्य के अनुसार ही उस मूल्य के एक अंश की हैसियत से दाखिल होता है और इसी के साथ-साथ इस वात ने भी कि इन पदार्यों का कार्य केवल उत्पादन क्षेत्र तक ही सीमित रहता है, रैमजे जैसे अर्थशास्त्रियों को उन्हें स्थायी पूंजी 7 1