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१४६ पूंजी का प्रावत लिए, अगर आवर्त काल का तीन महीने है, तो सं वरावर है १२/३ अयवा ४ के। पूंजी प्रति वर्ष चार वार आवर्त करती है । यदि का=१८ महीने , तो सं= १२/१८=२/३ अथवा पूंजी वर्ष में अपना केवल दो तिहाई आवर्त पूरा करती है। यदि उसका आवर्त काल कई वर्ष हो, तो उसका अभिकलन वर्ष के गुणजों में किया जाता है। पूंजीपति के दृष्टिकोण से उसकी पूंजी का आवर्त काल वह समय है, जिसके लिए वह अपनी पूंजी द्वारा वेशी मूल्य सृजन हेतु अपनी पूंजी पेशगी देता है, और उसे मूल रूप में वापस पाता है। उत्पादन और स्वप्रसार की प्रक्रियाओं पर आवर्त के प्रभाव की अधिक ध्यानपूर्वक छानवीन करने से पहले हमें दो नये रूपों की जांच करनी चाहिए, जो परिचलन प्रक्रिया से पूंजी को प्राप्त होते हैं और उसके आवर्त के रूप को प्रभावित करते हैं।