पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१४६

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यावर्त काल तथा पावर्त संख्या १४५ 1 टॉमस चामर्स अपनी पुस्तक On Political Economy, दूसरा संस्करण, ग्लासगो, १८३२, पृष्ठ ८५ तथा आगे, में कहते हैं, "व्यापार जगत की उसमें घूमते रहने की कल्पना की जा सकती है, जिसे हम अार्थिक चक्र कहेंगे, जो व्यवसाय द्वारा एक घूर्णन पूरा करता है और अपनी क्रमिक कार्यवाहियों द्वारा वह वहीं लौट आता है, जहां उसने चलना शुरू किया था। उसकी शुरूयात उस विंदु से मानी जा सकती है, जिस पर पूंजीपति को वह प्रतिफल मिल चुका होता है, जिसके द्वारा उसकी पूंजी की उसे प्रतिस्थापना हो जाती है, जिसके बाद वह अपने मजदूरों को फिर से काम में लगाना, उनमें मजदूरी के रूप में जीविका का अथवा यों कहें कि उसे पाने की शक्ति का वितरण करना ; वह जिन चीज़ों का विशेषकर लेन-देन करता है, उन्हें तैयार माल के रूप में उनसे प्राप्त करना; इन चीज़ों को बाज़ार में लाना और विक्रय संपन्न करके और उसकी आय में इस अवधि के समूचे परिव्यय का प्रतिफल प्राप्त करके गति शृंखला के एक चक्र को ख़त्म करना शुरू करता है।" उत्पादन की किसी भी शाखा में किसी वैयक्तिक पूंजीपति द्वारा लगाया हुआ समन पूंजी मूल्य अपना परिपथ पूरा करने के साथ स्वयं को एक बार फिर अपने प्रारम्भिक रूप में पाता है और अब वह उसी प्रक्रिया को दोहरा सकता है। यदि मूल्य को पूंजी मूल्य के रूप में स्वयं को कायम रखना है और वेशी मूल्य का सृजन करना है, तो उसे प्रक्रिया दोहरानी ही होगी। पृथक परिपथ पूंजी के जीवन में लगातार दोहराया जानेवाला भाग मात्र और इसलिए एक नियत कालावधि होता है। द्र द्र' अवधि के अन्त में पूंजी एक बार फिर द्रव्य पूंजी के रूप में आ जाती है। यह द्रव्य पूंजी नये सिरे से उन रूप परिवर्तनों की श्रृंखला से गुज़रती है, जिनमें उसकी पुनरुत्पादन अथवा स्वप्रसार की प्रक्रिया शामिल है। उ ... उ अवधि के अन्त में पूंजी उन उत्पादन तत्वों के रूप में फिर आ जाती है, जो उसके परिपथ के नवीकरण की पूर्वावश्यकताएं हैं। पूंजी द्वारा सम्पन्न परिपथ को, जो किसी पृथक क्रिया नहीं, बल्कि एक नियतकालिक प्रक्रिया है, आवर्त कहते हैं। इस आवर्त की मीयाद उसके उत्पादन काल तथा उसके परिचलन काल के योग द्वारा निर्धारित होती है। समय का यह योग पूंजी का प्रावर्त काल होता है। यह समग्र पूंजी मूल्य के एक परिपथ की अवधि से अगले परिपथ की अवधि तक के अन्तराल को, पूंजी की जीवन प्रक्रिया की आवर्तिता को, या, कह लीजिये , उस एक ही पूंजी मूल्य के स्वप्रसार अथवा उत्पादन प्रक्रिया के नवीकरण का, उसकी आवृत्ति का समय मापता है। वैयक्तिक सट्टेबाजियों के अलावा, जो कुछ पूंजियों के आवर्त काल को बढ़ा या घटा सकती हैं, भिन्न-भिन्न निवेश क्षेत्रों में यह कालावधि अलग-अलग होती है। जिस प्रकार श्रम शक्ति के कार्य को मापने की स्वाभाविक इकाई कार्य दिवस है, इसी प्रकार वर्ष कार्यशील पूंजी के प्रावर्तो को मापने की स्वाभाविक इकाई है। इस इकाई का नैसर्गिक आधार यह तथ्य है कि शीतोष्ण कटिबंध की, जो पूंजीवादी उत्पादन की मातृभूमि है , सबसे महत्वपूर्ण फ़सलें वार्षिक उपज ही हैं। आवर्त काल मापने की इकाई वर्ष को यदि हम का, किसी दत्त पूंजी के प्रावर्त काल का को का और उसके आवतों की संख्या को सं की संज्ञा दें, तो सं=. । उदाहरण के का . 10-1150