पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१४२

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परिचलन की लागत १४१ लिए मृत और सजीव श्रम की आवश्यक माना जितना ही कम होती है, उतना ही श्रम की उत्पादक शक्ति अधिक होती है। 18 परिवहन माल में मूल्य के जिस निरपेक्ष परिमाण की वृद्धि करता है, वह अन्य परि- स्थितियां यथावत रहने पर परिवहन उद्योग की उत्पादक शक्ति के व्युत्क्रमानुपात में और तय किये गये फासले के अनुक्रमानुपात में होता है। परिवहन लागत से मालों की कीमत में जिस मूल्यांश की वृद्धि होती है, वह अन्य परिस्थितियों के यथावत रहने पर उनकी घनीय अन्तर्वस्तु और वज़न के अनुक्रमानुपात में तथा उनके मूल्य के व्युत्क्रमानुपात में होता है। किन्तु कई रूपांतरक घटक भी हैं। उदाह- रणतः, परिवहन न्यूनाधिक महत्वपूर्ण पूर्वोपायों की और इसलिए इस बात के अनुसार कि चीजें कितनी भंगुर, नाशवान , विस्फोटक , आदि हैं, श्रम तथा श्रम उपकरणों के न्यूनाधिक व्यय की भी अपेक्षा करता है। यहां रेल सम्राट विलक्षण जातों का आविष्कार करने में अपनी चतुराई से प्राणिशास्त्रियों और वनस्पतिशास्त्रियों को भी मात करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश रेलवे पर मालों के वर्गीकरण से पोथे के पोथे भरे हुए हैं और वह सिद्धान्ततः इस सामान्य प्रवृत्ति पर आधारित है कि माल के विविध नैसर्गिक गुणों को उतने ही परिवहन दोषों में, धोखाधड़ी से भाड़ा वसूल करने के रोज़मर्रा के बहानों में बदल दिया जाये। “कांच के निर्माण में आये सुधारों के बाद और उस पर से महसूल हटा लेने के बाद , जो कांच पहले ११ पाउंड फ़ी क्रेट था, वह अब केवल २ पाउंड है, किन्तु परिवहन भाड़ा पहले जैसा ही है और जब उसे नहर के ज़रिये ले जाते थे, तब से वह और ऊंचा है। कारखानेदारों ने मुझे वताया है कि बर्मिघम के ५० मील के दायरे में पहले उन्हें नलसाजों के काम के लिए १० शिलिंग फ़ी टन के हिसाब से कांच और कांच के सामान की ढुलाई देनी होती थी। इस समय ल की टूट-फूट की जोखिम के हरजाने की दर, जो हमें कदाचित ही दिया जाता पहले से तीन गुना ज्यादा है। माल की टूट-फूट के हरजाने के हर दावे का रेल कम्पनियां हमेशा विरोध करती हैं। " 10 इसके अलावा, यह तथ्य कि परिवहन लागत से वस्तु में जिस मूल्यांश की वृद्धि होती है, वह उसके मूल्य के व्युत्क्रमानुपात में होता है, रेल सम्राटों को वस्तु पर - 1 18 रिकार्डो सेय को उद्धृत करते हैं , जिनके अनुसार यह तिजारत की एक नियामत यह है कि वह परिवहन लागत के ज़रिये उत्पादों की कीमत या उनका मूल्य वढ़ा देती है। सेय लिखते हैं : " वाणिज्य हमारे लिए माल जिस जगह प्राप्य है, वहां से प्राप्त करना और दूसरी जगह , जहां वह उपयोज्य है, पहुंचाना संभव बना देता है। इसलिए वह पहली जगह उसकी जो कीमत है और दूसरी जगह जो क़ीमत है, इन दोनों के समूचे अन्तर द्वारा हमें माल मूल्य में वृद्धि tient at sifat a ant." (J. B. Say, Traité d'économie politique, Troisième édition, Paris, 1817, Tome II, p. 433. --सं०] रिकार्डो इसके प्रसंग में कहते हैं, 'सही है, लेकिन यह अतिरिक्त मूल्य उसे दिया कैसे जाता है ? उत्पादन लागत में एक परिवहन का खर्च, दूसरे व्यापारी द्वारा पेशगी दी हुई पूंजी पर मुनाफ़े को जोड़ने से। माल केवल इसी कारण से अधिक मूल्यवान हो जाता है, जिससे कोई भी माल अधिक मूल्यवान हो सकता है, और वह यह कि उसके उत्पादन और परिवहन पर उपभोक्ता द्वारा उसके खरीदे जाने के पहले अधिक श्रम खर्च किया जाता है। उसे वाणिज्य का एक लाभ नहीं कहना TIET" (Ricardo, Principles of Political Economy, 3rd ed., London, 1821, Pp. 309, 310) Royal Commission on Railways, p. 31, No. 630. 10