पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१४०

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परिचलन की लागत १३६ उत्पन्न होती है, अतः जिस सीमा तक यह आभासी गतिहीनता स्वयं गति का एक रूप होती है, विल्कुल जैसे द्रव्य निधि का निर्माण द्रव्य परिचलन का पूर्वाधार होता है। किन्तु जैसे ही परिचलन अागारों में पड़े हुए माल उत्पादन की तेजी से प्राती दूसरी लहर के लिए जगह खाली करना बंद कर देते हैं, जिससे प्रागारों में अतिसंचय हो जाता है, तव गतिहीनता के परिणामस्वरूप माल पूर्ति बढ़ जाती है , ठीक जैसे द्रव्य परिचलन के अवरुद्ध होने पर अपसंचय बढ़ जाते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह अवरोध प्रौद्योगिक पूंजीपति की कोठियों में होता है या व्यापारी के गोदामों में । उस स्थिति में माल पूर्ति अविछिन्न विक्रय की पूर्वा- पेक्षा नहीं है, वरन माल को बेचने की असंभाव्यता का परिणाम है। लागत वही है किन्तु चूंकि अब वह केवल रूप से ही , अर्थात मालों को द्रव्य में परिवर्तित करने की ज़रूरत से और इस रूपान्तरण से गुज़रने की कठिनाई से उत्पन्न होती है, इसलिए वह मालों के मूल्य में दाख़िल नहीं होती, वरन कटौती बन जाती है, मूल्य के सिद्धिकरण में मूल्य ह्रास बन जाती है। चूंकि पूर्ति के सामान्य और असामान्य रूपों में रूप का भेद नहीं होता और दोनों ही परिचलन को अवरुद्ध करते हैं, इसलिए इन परिघटनाओं को ग़लत समझा जा सकता है, और वे स्वयं उत्पादन के अभिकर्ता को धोखे में डाल सकती हैं, इसलिए और भी कि उत्पादक के लिए उसकी पूंजी की परिचलन प्रक्रिया चालू रह सकती है, जबकि उसके मालों की, जो एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुंच गये हैं और अव व्यापारियों के हैं , परिचलन प्रक्रिया रुद्ध हो सकती है। यदि उत्पादन और उपभोग बढ़ते जायें, तो शेष परिस्थितियां समान होने पर माल पूर्ति में भी इस प्रकार वृद्धि होगी। उसका नवीकरण और नियोजन उतनी ही जल्दी होता है , किन्तु उसका आकार और बड़ा होता है। इसलिए माल पूर्ति के विस्फरित आकार को, जिसके लिए अवरुद्ध परिचलन जिम्मेदार है, भ्रमवश पुनरुत्पादन प्रक्रिया के प्रसार का लक्षण माना जा सकता है, ख़ास पौर से तब , जव उधार पद्धति का विकास वास्तविक गति को रहस्यावरण में छिपाना संभव बना देता है। पूर्ति निर्माण की लागत में इनका समावेश होता है : १) उत्पाद की राशि में (उदाहरण के लिए, आटे की पूर्ति के प्रसंग में) परिमाणात्मक ह्रास ; २) गुणता का अपकर्प ; ३) पूर्ति के परिरक्षण के लिए आवश्यक मूर्त और सजीव श्रम । - - - ३. परिवहन लागत यहां परिचलन लागत की सभी तफ़सीलों, जैसे छंटाई , पैकिंग , अादि , में जाना ज़रूरी नहीं है। सामान्य नियम यह है कि परिचलन को वह सारी लागत , जो मालों के रूप परिवर्तन से उत्पन्न होती है, उनको मूल्य वृद्धि नहीं करती है। वह केवल मूल्य के सिद्धिकरण के लिए अथवा उसे एक रूप से दूसरे में बदलने के लिए किया जानेवाला ख़र्च है । इस लागत को पूरा करने के लिए ख़र्च की जानेवाली पूंजी (जिसमें उसके अधीन किया हुअा श्रम भी शामिल है) पूंजीवादी उत्पादन के faux frais के अन्तर्गत आती है। उसे वेशी उत्पाद से प्रतिस्थापित करना होता है और जहां तक समूचे पूंजीपति वर्ग का सम्बन्ध है, वह वेशी मूल्य से अथवा वेशी उत्पाद से कटौती होती है, ठीक जैसे मजदूर को अपने निर्वाह साधन खरीदने पर जो समय खर्च करना होता है, वह नष्ट समय होता है। किन्तु परिवहन लागत की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि उस पर संक्षेप में कुछ कहे विना आगे नहीं जाया जा सकता।