पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२५

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१२४ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ 1 करता, मूल्य का सृजन नहीं करता, जैसे अदालती कार्रवाई के दौरान जो कुछ किया जाता है, उससे मुक़दमे के विषय का मूल्य नहीं बढ़ जाता। इस श्रम की, जो समूचे तौर पर पूंजीवादी उत्पादन का आवश्यक तत्व होता है, जिसमें परिचलन भी सम्मिलित होता है, अथवा वह स्वयं उसमें समाविष्ट होता है, स्थिति वैसी ही होती है, जैसे ऊष्मा उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त किसी पदार्थ के दहन के कार्य की होती है। दहन का यह कार्य कोई ऊष्मा उत्पन्न नहीं यद्यपि दहन की प्रक्रिया में वह एक आवश्यक तत्व है। यथा ईधन के रूप में कोयले का उपयोग करने के लिए मुझे उसका आक्सीजन से संयोग कराना होगा और इसके लिए ठोस अवस्था से गैस अवस्था में उसे बदलना होगा ( क्योंकि कार्वोनिक अम्ल गैस में, जो दहन का परिणाम कोयला गैसीय अवस्था में होता है )। फलतः मुझे उसके अस्तित्व के रूप में अथवा उसके अस्तित्व की अवस्था में भौतिक परिवर्तन लाना होगा। नये संयोग से पहले ठोस संहति में संयुक्त कार्वन अणुओं का वियोजन और इन अणुओं का उनके पृथक परमाणुओं में विदारण होना आवश्यक है और इसके लिए ऊर्जा का एक निश्चित व्यय आवश्यक है, जो इस प्रकार ऊष्मा में परिवर्तित नहीं होती, वरन उससे ली जाती है। इसलिए यदि मालों के मालिक पूंजीपति न हों, वरन स्वतंत्र प्रत्यक्ष उत्पादक हों, तो क्रय-विक्रय में जो वक़्त ख़र्च होता है, वह उनके श्रम काल का ह्रास है और इस कारण (प्राचीन तथा मध्यकाल में भी.) ऐसे लेन-देन छुट्टियों में करने के लिए मुल्तवी कर दिये जाते थे। निस्संदेह पूंजीपतियों के हाथों में माल परिवर्तन द्वारा गृहीत पायाम इस श्रम को-जो किसी मूल्य का सृजन नहीं करता, वरन मूल्य के रूप परिवर्तन का साधन मान है - मूल्य उत्पादक श्रम में नहीं बदल सकता। तत्वांतरण का यह चमत्कार स्थानान्तरण द्वारा, यानी इस बात से भी नहीं हो सकता कि प्रौद्योगिक पूंजीपति अपने इस “दहन कार्य को खुद करने के बदले उसे पूर्णतः अन्य व्यक्तियों का व्यवसाय बना दें, जिन्हें वे इसके लिए पैसा देते हैं। वेशक ये अन्य व्यक्ति पूंजीपतियों से केवल प्रेम होने के कारण उन्हें अपनी श्रम शक्ति अर्पित न कर देंगे। स्थावर संपदा. के मालिक के किराया वसूलनेवाले अथवा बैंक के हरकारे के लिए यह बात. कतई दिलचस्पी की नहीं है कि उसके श्रम से किराये में अथवा दूसरे बैंक को थैलों में भर ले. जाये जानेवाले सोने के टुकड़ों में रत्ती भर भी वृद्धि नहीं होती है ।]10 पूंजीपति के लिए, जो दूसरों से काम कराता है, क्रय-विक्रय प्राथमिक कार्य बन जाता है। चूंकि वह बड़े सामाजिक पैमाने पर बहुतों के उत्पाद को हस्तगत करता है, इसलिए उसके वास्ते उसे उसी पैमाने पर वेचना और फिर द्रव्य से उत्पादन तत्वों में पुनःपरिवर्तित करना जरूरी होता है। पहले की तरह यहां भी न तो क्रय काल से किसी मूल्य का निर्माण होता है, न विक्रय काल से । व्यापारी की पूंजी के कार्य से एक भ्रांति पैदा हो जाती है। किंतु यहां इस पर विस्तार से विचार किये बिना इतना तो शुरू से स्पष्ट है : यदि श्रम विभाजन से कोई कार्य, जो स्वयं में अनुत्पादक है, यद्यपि पुनरुत्पादन का आवश्यक तत्व है, इस तरह बदल जाता है कि वह वहुतों का प्रासंगिक व्यवसाय न रहकर कुछ लोगों का विशिष्ट व्यवसाय , उनका अपना विशेष कारोवार बन जाये, तो इससे स्वयं उस कार्य की प्रकृति नहीं बदल जाती। एक व्यापारी (जिसे यहां अभिकर्ता मात्र माना गया है, जो मालों का रूप परिवर्तन 13 . .. 10 कोष्ठकों के भीतर का भाग एक टिप्पणी से लिया गया है, जो पाण्डुलिपि ८ के अन्त में है। -फे० एं०