पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२२

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परिचलन काल १२१ - अदायगी उत्पादन अभिकर्तानों को ही करनी होगी, किंतु यदि पूंजीपति , जो एक दूसरे से खरीद-बिक्री करते हैं, इन क्रियाओं से न तो मूल्यों का , और न उत्पाद का सृजन करें, तो यह स्थिति तव नहीं बदल जायेगी कि अगर अपने व्यवसाय के परिमाण के कारण वे इस कार्य को दूसरों पर डालने के लिए समर्थ अथवा विवंश हो जायें। कुछ व्यवसायों में ग्राहकों और विक्रेताओं को मुनाफ़ों पर सैकड़ेवारी भुगतान किया जाता है। इस तरह की बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि भुगतान उपभोक्ता करता है। उपभोक्ता केवल इस हद तक अदायगी कर सकते हैं कि वे उत्पादन के अभिकर्ताओं की हैसियत से अपने लिए माल के रूप में समतुल्य उत्पादित करते हैं अथवा उत्पादन अभिकर्ताओं से किसी कानूनी अधिकार द्वारा (जैसे कि उनके सहभागीदार , आदि होने से ) या व्यक्तिगत सेवाओं द्वारा वह समतुल्य प्राप्त कर लेते हैं। मा-द्र और द्र - मा में एक अंतर है, जिसका माल और द्रव्य के रूपों के भेद से कोई संबंध नहीं है, वरन जो उत्पादन के पूंजीवादी स्वरूप से उत्पन्न होता है। तात्विक दृष्टि से मा -द्र तथा द्र मा दोनों ही प्रदत्त मूल्यों का एक रूप से दूसरे में परिवर्तन मात्र हैं। किंतु मा'-द्र' साथ ही उस वंशी मूल्य का सिद्धिकरण भी है, जो मा' में निहित है। लेकिन द्र-मा यह नहीं है। इसलिए खरीदने से वेचना ज्यादा महत्वपूर्ण है। सामान्य परिस्थितियों में द्र मा ऐसी क्रिया है, जो द्र में व्यंजित मूल्य के स्वप्रसार के लिए आवश्यक है, किंतु वह वेशी मूल्य का सिद्धिकरण नहीं है ; वह उसके उत्पादन की भूमिका है, उसका उपसंहार नहीं है। माल जिस रूप में अस्तित्वमान होते हैं, उपयोग मूल्य की हैसियत से उनका अस्तित्व माल पूंजी के परिचलन मा' द्र' को निश्चित सीमाओं में बांध देता है। उपयोग मूल्य स्वभाव से ही नश्वर होते हैं। इस कारण एक निश्चित अवधि में यदि उनका उत्पादक अथवा व्यक्तिगत ढंग से उपयोग न कर लिया जाये - और यह इस पर निर्भर है कि वे किसके लिए उद्दिष्ट हैं, - दूसरे शब्दों में एक निश्चित समय के भीतर यदि उन्हें वेच न दिया जाये, तो वे क्षीण हो जाते हैं और उनके उपयोग मूल्य के साथ उनकी विनिमय मूल्य के वाहक बनने की क्षमता भी नष्ट हो जाती है। उनमें समाहित पूंजी मूल्य की, अतः उसमें परिवर्धित वेशी मूल्य की भी क्षति होती है। उपयोग मूल्य निरंतर स्वप्रसारवान पूंजी मूल्य के वाहक तब तक नहीं होते , जब तक उनका निरंतर नवीकरण और पुनरुत्पादन न हो, उनकी उसी अथवा किसी अन्य कोटि के नये उपयोग मूल्यों द्वारा प्रतिस्थापना न हो। किंतु तैयार माल के रूप में उपयोग मूल्यों की विक्री और इस प्रकार इस विक्री द्वारा संपन्न उत्पादक अथवा व्यक्तिगत उपयोग में उनका प्रवेश उनके पुनरुत्पादन की नित्य प्रत्यावर्ती शर्त है। नये उपयोग रूप में अपना अस्तित्व चालू रखने के लिए उन्हें निश्चित समय के भीतर अपना पुराना उपयोग रूप बदलना होगा। विनिमय मूल्य अपने ढांचे के इस निरंतर नवीकरण द्वारा ही अपने को बनाये रखता है। विभिन्न मालों के उपयोग मूल्य देर सवेर क्षीण हो जाते हैं, इसलिए उनके उत्पादन और उपभोग का अंतराल अपेक्षाकृत अल्प अथवा दीर्घ हो सकता है; इसलिए वे क्षीण हुए विना परिचलन की अवस्था मा-द्र में अल्पाधिक अवधि तक माल पूंजी के रूप में बने रह सकते हैं, मालों की हैसियत से परिचलन के अल्पाधिक काल को झेल सकते हैं। माल के ढांचे के क्षीण होने से माल पूंजी के परिचलन काल पर लगनेवाली सीमा परिचलन काल के इस भाग की अथवा