पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२०

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परिचलन काल ११६ उत्पादन तत्वों के रूप में परिवर्तन अथवा पुनःपरिवर्तन है, इस में ज़रा भी अंतर नहीं पाता कि ये प्रक्रियाएं परिचलन प्रक्रियाओं की हैसियत से मालों के साधारण रूपांतरण की प्रक्रियाएं हैं। परिचलन काल और उत्पादन काल के दायरे एक दूसरे से अलग होते हैं। अपने परिचलन काल में पूंजी उत्पादक पूंजो के कार्य नहीं करती और इसलिए न माल निर्मित करती है और न ही वेशी मूल्य । यदि हम इस परिपथ का सबसे साधारण रूप लेकर उसका अध्ययन करें, यथा जब कि समग्र पूंजी मूल्य एकसाथ एक अवस्था से दूसरी में संक्रमण करता है, तो यह बात बहुत स्पष्ट दिखाई देने लगती है कि उत्पादन प्रक्रिया और इसलिए पूंजी मूल्य का स्व- प्रसार भो तव तक विच्छिन्न रहता है, जब तक उसका परिचलन काल जारी रहता है, और यह भी कि उत्पादन प्रक्रिया के नवीकरण की गति परिचलन काल की अवधि के अनुसार तीव्र अथवा मंद होगी। किंतु इसके विपरीत , यदि पूंजी के विभिन्न अंश एक के बाद एक परिपथ से गुज़रते हैं, जिससे कि समग्र पूंजी मूल्य का परिपथं उसके विभिन्न संघटक अंशों के परिपथों में क्रमशः होता है, तो यह स्पष्ट है कि उसके अशेपभाजक अंश ( संखंड) जितना ही देर तक परिचलन क्षेत्र में बने रहेंगे, उतना ही उत्पादन क्षेत्र में कार्यरत भाग छोटा होगा। अतः परिचलन काल का प्रसार और संकुचन वे नकारात्मक सीमाएं हैं, जो उत्पादन काल के संकुचन अथवा उस सीमा को निर्धारित करती हैं, जिस तक किसी नियत परिमाण की पूंजी उत्पादक हैसियत से कार्य करती है। किसी पूंजी के परिचलन के रूपांतरण जितना ही अधिक केवल अधिकल्पित होते हैं , अर्थात परिचलन काल जितना ही अधिक शून्य के वरावर अथवा शून्य के निकट होता है, उतना ही पूंजी अधिक कार्यशील होती है, उतना ही उसकी उत्पादिता और उसके मूल्य के स्वप्रसार में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई पूंजीपति ऐसा आर्डर पूरा करता है, जिसकी शर्तों के अनुसार उत्पादित माल देने पर भुगतान उसी के उत्पादन साधनों के रूप में होता है, तो परिचलन काल शून्य के निकट पहुंच जाता है। अतः सामान्य रूप से कह सकते हैं कि पंजी का परिचलन काल उसके उत्पादन काल को और इसलिए वेशी मूल्य उत्पन्न करने की प्रक्रिया को भी सीमित करता है। और वह इस प्रक्रिया को स्वयं अपनी अवधि के अनुपात में सीमित करता है। यह अवधि काफ़ी हदं तक घट-बढ़ सकती है, इसलिए वह पूंजी के उत्पादन काल को अत्यंत विभिन्न अंशों में प्रतिबंधित कर सकती है। पर राजनीतिक अर्थशास्त्र उसी चीज़ को देखता है, जो आभासी है, अर्थात पूंजी को सामान्यतः वेशी मूल्य का सृजन करने वाली प्रक्रिया पर परिचलन काल का प्रभाव । वह इस नकारात्मक प्रभाव को सकारात्मक मानता है, क्योंकि उसके परिणाम सकारात्मक होते हैं। वह इस आभास को इसलिए और भी मजबूती से जकड़ लेता है कि वह इसका प्रमाण प्रदान करता प्रतीत होता है कि पूंजी के पास स्वप्रसार का एक रहस्यमय स्रोत होता है, जो उसको उत्पादन प्रक्रिया से और इसलिए श्रम के शोषण से भी स्वतंत्र होता है। वह ऐसा स्रोत है, जो परिचलन क्षेत्र से प्रवाहित होकर उस तक आता है। हम आगे चलकर देखेंगे कि वैज्ञानिक राजनीतिक अर्थशास्त्र भो घटनाओं के इस आभासी स्वरूप से धोखे में आतां रहा है। पता चलेगा कि तरह-तरह की परिघटनाएं इस आभास की पुष्टि सी करती हैं : १) लाम के प्राकलन का पूंजीवादी तरीक़ा, जिसमें नकारात्मक कारण सकारात्मक वनकर आता है, क्योंकि पूंजियों के विभिन्न निवेश क्षेत्रों में होने से; जिसमें केवल परिचलन काल भिन्न-भिन्न