भूमिका १३ . कालक्रमानुसार दूसरी पाण्डुलिपि तीसरे खंड की है। कम से कम उसका अधिकतर भाग १८६४ और १८६५ में लिखा गया था। इस पाण्डुलिपि में मूल वातों का विवेचन पूरा कर लेने के बाद ही मार्क्स ने पहले खंड को विस्तार देना शुरू किया था, जो १८६७ में प्रकाशित हुआ। इस समय इस तीसरे खंड की पाण्डुलिपि को मैं प्रकाशन के लिए तैयार कर रहा हूं। इसके वादवाले-पहले खंड के प्रकाशन के वाद के- समय की दूसरे खंड की फ़ोलियो आकार की चार पाण्डुलिपियां हैं, जिन्हें १ से ४ तक की संख्या स्वयं मार्क्स ने दी है। इनमें से पाण्डुलिपि १ (१५० पृष्ठ ) सम्भवतः १८६५ या १८६७ में तैयार की गयी थी और दूसरे खंड में जो सामग्री अव व्यवस्थित की गयी है, उसे इसमें अलग से, किन्तु बहुत कुछ अपूर्ण रूप से पहली बार विस्तार दिया गया था। इससे भी किसी सामग्री का उपयोग नहीं किया जा सका। पाण्डुलिपि ३ में बहुत से उद्धरण इकट्ठ किये गये हैं ; मार्क्स जिन कापियों में सामग्री संकलित करते थे, उनके संदर्भ भी यहां दिये गये हैं। इनमें अधिकांश का सम्बन्ध दूसरे खंड के पहले भाग से है। इसके अलावा इस पाण्डुलिपि में कुछ विशेष बातों को विस्तार दिया गया है। ख़ास तौर से स्थायी और प्रचल' पूंजी तथा लाभ के उद्गम के बारे में ऐडम स्मिथ की धारणाओं की आलोचना की गयी है। इसके सिवा यहां वेशी मूल्य की दर और लाभ की दर के सम्बन्ध की व्याख्या की गई है, जो तीसरे खंड का विषय है। संदर्भो से नयी सामग्री प्रायः कुछ नहीं मिली और दूसरे तथा तीसरे खंडों के लिए जो विस्तरण किये गये थे, वे भी मार्क्स द्वारा वाद में किये संशोधनों के कारण वेकार हो गये थे और उनको भी अधिकांशतः छोड़ना पड़ा। पाण्डुलिपि ४ में दूसरे खंड के पहले भाग और दूसरे भाग के प्रारम्भिक अध्यायों की सामग्री को विस्तार दिया गया है। यह सामग्री प्रेस भेजने के लिए तैयार कर दी गयी थी और जहां वह उपयुक्त थी, उसका उपयोग किया गया है। यद्यपि यह पता चला कि इसकी रचना पाण्डुलिपि २ से पहले हुई थी, फिर भी रूप के लिहाज से यह कहीं अधिक पूर्ण थी, इस कारण वर्तमान पुस्तक के तदनुरूप अंशों में उसका उपयोग लाभकारी ढंग से हो सका है। आवश्यकता केवल इस बात की थी कि पाण्डुलिपि २ से कुछ वातें लेकर यहां जोड़ दी जायें। इस पाण्डुलिपि में ही दूसरे खंड का किसी हद तक पूर्ण विस्तार दिया हुअा रूप है। इसका रचना काल १८७० है। अन्तिम संपादन की टिप्पणियों में, जिनका उल्लेख मैं अविलंब करूंगा, स्पष्ट लिखा है, "दूसरे परिवर्धित रूप को ही आधार बनाया जाये। १८७० के वाद पुनः एक अन्तराल आया। इसका मुख्य कारण मार्क्स की अस्वस्थता थी। इस समय का उपयोग मार्क्स ने अपनी पुरानी आदत के अनुसार किया, उन्होंने कृषि अर्थशास्त्र . . 97 के साथ यह मार्क्स तथा एंगेल्स 'संकलित रचनाएं' (मास्को, १९६२-६४) के दूसरे रूसी संस्करण का २६ वां खंड (तीन भागों में) था। १९५६-६२ में १९५४-६१ के रूसी संस्करण के नमूने पर जर्मन जनवादी जनतंत्र में इसका जर्मन संस्करण प्रकाशित किया गया। आजकल जर्मन जनवादी जनतंत्र में 'वेशी मूल्य के सिद्धांत' के एक नये संस्करण को का० मार्क्स , फे० एंगेल्स , 'संकलित रचनाएं' के २६ वें खंड के रूप में प्रकाशित करने के सिलसिले में काम हो रहा है। प्रगति प्रकाशन, मास्को द्वारा पुस्तक के पहले भाग का अंग्रेजी संस्करण प्रकाशित किया जा चुका है और दूसरे तथा तीसरे भागों को प्रकाशनार्थ तैयार किया जा रहा है।-सं०
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