पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/११८

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परिचलन काल ११७ अभी तक जिस अंतर पर विचार किया गया है, वह प्रत्येक मामले में उत्पादक पूंजी के उत्पादन क्षेत्र में रहने और उत्पादन प्रक्रिया में रहने की कालावधियों का अंतर है। किंतु उत्पादन प्रक्रिया स्वयं श्रम प्रक्रिया में व्यवधानों का; अतः श्रम काल में व्यवधानों का कारण हो सकती है, जिन अंतरालों में श्रम का विषय मानव श्रम के और हस्तक्षेप के विना भौतिक प्रक्रियाओं की क्रिया के अधीन रहता है। इन मामलों में उत्पादन प्रक्रिया और इस प्रकार उत्पादन साधनों की कार्यशीलता जारी रहती है, यद्यपि श्रम प्रक्रिया और इस प्रकार श्रम उपकरणों की हैसियत से उत्पादन साधनों की कार्यशीलता विच्छिन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए, यह बात वोये जाने के बाद अनाज पर, सुरागार में किण्वित होती शराब पर , बहुत से कारखानों-जैसे चर्मशोधन कारखानों-की श्रम सामग्री पर लागू होती है, जहां यह सामग्री रासायनिक प्रक्रियायों की क्रिया के अधीन रहती है। यहां उत्पादन काल श्रम काल से दीर्घ होता है। दोनों में अंतर श्रम काल की अपेक्षा उत्पादन काल के आधिक्य का होता है। यह प्राधिक्य सदैव उत्पादन क्षेत्र में उत्पादक पूंजी के अंतर्हित अस्तित्व से उत्पन्न होता है, जब वह स्वयं उत्पादन प्रक्रिया में कार्यशील नहीं होती अथवा श्रम प्रक्रिया में भाग लिये बिना उत्पादक प्रक्रिया में कार्यशील होती है। अंतर्हित उत्पादक पूंजी का जो भाग उत्पादक प्रक्रिया की पूर्वावश्यकता के रूप में- जैसे कताई मिल में कपास , कोयला, वगैरह-तैयार रखा जाता है, वह न तो उत्पाद के, और न मूल्य के निर्माता की हैसियत से काम करता है। वह परती पड़ी पूंजी है, यद्यपि उसका यों परती पड़े रहना उत्पादन प्रक्रिया के अविच्छिन्न प्रवाह के लिए अनिवार्य होता है। उत्पादक पूर्ति (अंतर्हित पूंजी) के भंडारण के लिए जरूरी इमारतें, साजसामान , वगैरह उत्पादन प्रक्रिया के लिए आवश्यक परिस्थितियां होती हैं और इसलिए वे पेशगी उत्पादक पूंजी के संघटक अंश होती हैं। प्राथमिक मंजिल में वे अपना कार्य उत्पादक पूंजी संघटक अंशों के संरक्षकों के रूप में करती हैं। चूंकि इस मंजिल में श्रमं प्रक्रियाएं ज़रूरी होती हैं, इसलिए उनसे कच्चे माल , आदि के ख़र्च में इज़ाफ़ा होता है ; किंतु वे उत्पादक श्रम हैं और वेशी मूल्य उत्पादित करती हैं, क्योंकि अन्य सभी उजरती श्रम की तरह श्रम के इस एक भाग के लिए पैसा नहीं दिया जाता है। समूची उत्पादन प्रक्रिया के सामान्य व्यवधान , जिन अंतरालों में उत्पादक पूंजी कार्यशील नहीं होती , न तो मूल्य निर्मित करते हैं और न वेशी मूल्य । इसलिए रात में भी काम चालू रखने की इच्छा उत्पन्न होती है (Buch I, Kap. VIII, 4) *। श्रम के विषय को स्वयं उत्पादन प्रक्रिया के दौरान श्रम काल के जिन व्यवधानों को झेलना होता है, वे न तो मूल्य और न वेशी मूल्य निर्मित करते हैं । किंतु वे उत्पाद को आगे बढ़ाते हैं, उसके जीवन का एक भाग, ऐसी प्रक्रिया बन जाते हैं, जिससे उसे गुजरना होगा। यंत्र- सज्जा, आदि का मूल्य उस समग्र काल के अनुपात में उत्पाद में अंतरित होता है, जिसके दौरान वे अपना कार्य करते हैं। उत्पाद को इस मंजिल तक श्रम द्वारा ही लाया जाता है और इस यंत्र-सज्जा का उपयोग उत्पादन की वैसी ही शर्त है, जैसी कि कपास के एक हिस्से का धूल में बदल जाना, जो उत्पाद में प्रवेश नहीं करता, किंतु फिर भी अपना मूल्य उत्पाद में अंतरित कर देता है। अंतर्हित पूंजी का दूसरा भाग , यथा इमारतें, मशीनें, आदि, अर्थात श्रम उपकरण , जिनकी कार्यशीलता उत्पादक प्रक्रिया में नियमित विरामों द्वारा ही विच्छिन्न . • हिंदी संस्करण : अध्याय १०, ४।-सं०