पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/११

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१२ भूमिका .. है, वह छपे हुए दस पन्नों से ज्यादा न होगी और उसका सम्बन्ध केवल प्रस्तुति से ही है। दूसरे खंड के लिए मार्क्स ने जो पाण्डुलिपियां छोड़ी हैं, उनकी सूची से ही यह साबित हो जायेगा कि अपनी अर्थशास्त सम्बन्धी महान खोजों को प्रकाशित करने से पहले उन्होंने किस वेजोड़ ईमानदारी और कठोर आत्मालोचना से काम लेते हुए उन्हें तैयार करने का यत्न किया था। अपनी इस आत्मालोचना के कारण वह विषय के अपने प्रस्तुतीकरण- क्या विषय-वस्तु और क्या रूप- को कदाचित ही अपने निरन्तर अध्ययन के फलस्वरूप सत्वर व्यापक होते विचार-क्षितिज के अनुरूप कर पाते थे। उपर्युक्त सामग्री निम्नलिखित है : सबसे पहले है Zur Kritik der politischen. Oekonomie* नामक पाण्डुलिपि । यह तेईस कापियों में है, जिनमें कुल मिलाकर क्वार्टो आकार के १,४७२ पृष्ठ हैं, जिन्हें अगस्त, १८६१ से जून, १८६३ के बीच लिखा गया था। यह उसी कृति का सिलसिला है, जिसका पहला भाग इसी शीर्पक से १८५६ में वर्लिन से प्रकाशित हुआ था। 'पूंजी' के प्रथम खंड में जिन विषयों की छानबीन की गयी है, उन्हीं का विवेचन पृष्ठ १ से २२० तक (कापी १ से ५ तक ) और फिर पृष्ठ १, १५६ से १,४७२ तक (कापी १६ से २३ तक ) किया गया है। द्रव्य [मुद्रा] पूंजी का रूप कैसे धारण करता है, यहां से शुरू करके अन्त तक के विपयों का विवेचन यहां किया गया है और पुस्तक का यह पहला मसौदा है, जो सुलभ है। तीसरे खंड के लिए पाण्डुलिपि में आगे चलकर जिन विपयों की विस्तार से चर्चा की गई, उनका विवेचन पृष्ठ ६७३ से १, १५८ तक (कापी १६ से १८ तक ) किया गया है। ये विपय हैं : पूंजी और लाभ , लाभ की दर, व्यापारी पूंजी और द्रव्य पूंजी। दूसरे खंड में जिन विपयों का विवेचन किया गया है और बहुत से ऐसे विषय भी, जिनका विवेचन आगे चलकर तीसरे खंड में किया गया, उन्हें अभी अलग-अलग क्रमवद्ध नहीं किया गया है। उनकी चलते-चलाते , ठीक-ठीक कहें, तो पृष्ठ २२० से १७२ तक (कापी ६ से १५ तक ) के अंश में, जो पाण्डुलिपि का मुख्य अंग है, जिसका शीर्षक है : ‘वेशी मूल्य' के सिद्धान्त', चर्चा कर दी गयी है। इस हिस्से में राजनीतिक अर्थशास्त्र के सारतत्व , वेशी मूल्य के सिद्धान्त , का विस्तृत अालोचनात्मक इतिहास दिया गया है और साथ ही साथ पूर्ववर्ती लेखकों के साथ वादविवाद के दौरान यहां वे अधिकांश वातें कही गई हैं, जिनकी छानवीन अलग-अलग और आन्तरिक तर्कसंगति का ध्यान रखते हुए मार्क्स ने वाद में, दूसरे और तीसरे खंडों की पाण्डुलिपि में की थी। दूसरे और तीसरे खंडों में जो वहुत से अंश आ चुके हैं, उन्हें निकाल देने के वाद, मेरा 'पूंजी' के चौथे खंड के रूप में पाण्डुलिपि का यह आलोचनात्मक हिस्सा प्रकाशित करने का विचार है।" अत्यंत मूल्यवान होने पर भी इस पाण्डुलिपि का दूसरे खंड के वर्तमान संस्करण के लिए वहुत ही कम उपयोग किया जा सका। .

  • इसे आगे Zur Kritik कहा गया है।-सं०

वेशी मूल्य के लिए पहले खंड में “अतिरिक्त मूल्य" का प्रयोग किया गया है। - सं०

  • मृत्यु के कारण एंगेल्स 'वेशी मूल्य के सिद्धान्त' को 'पूंजी' के चौथे खंड के रूप में

प्रकाशित नहीं कर पाये। १९०५-१० में काउत्स्की ने इस पुस्तक का एक जर्मन संस्करण प्रकाशित किया था, जिसमें मूल पाठ से अनेक मनमाने विचलन, क्रम परिवर्तन और छोड़े हुए अंश थे। रूसी भाषा में 'वेशी मूल्य के सिद्धांत' का पहला प्रामाणिक संस्करण १६५४-६१ में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के मार्क्सवाद-लेनिनवाद संस्थान द्वारा प्रकाशित किया गया था। अनुवाद में कुछ आवश्यक सुधारों और पुस्तक की सहायक सामग्री में परिवर्धनों