उपनिवेशीकरण का प्राधुनिक सिद्धान्त ८६३ नबनाना पड़े, बल्कि जिसपर पूंजीपति खुद अपना हम चला सकें... प्राचीन एवं सभ्य देशों में मजदूर स्वतंत्र होते हुए भी प्रकृति के नियमानुसार पूंजीपति के पापीन रहता है। उपनिवेशों में बनावटी उंग से यह पराधीनता पैदा करनी होगी।' 1 Merivale, "Lectures on Colonization and Colonies”, London, 1841 at 1842, खण्ड २, पृ० २३५-३१४, विभिन्न स्थानों पर। यहां तक कि स्वतंत्र व्यापार के अनुन समर्थक , घटिया किस्म के अर्थशास्त्री मोलिनारी ने भी यह लिखा है : "Dans les colonies où l'esclavage a été aboli sans que le travail forcé se trouvait remplacé par une quantité équivalente de travail libre, on a vu s'opérer la contre-partie du fait qui se réalise tous les jours sous nos yeux. On a vu les simples travailleurs exploiter à leur tour les entrepreneurs d'industrie, exiger d'eux des salaires hors de toute proportion avec la part légitime qui leur revenait dans le produit. Les planteurs, ne pouvant obtenir de leurs sucres un prix suffisant pour couvrir la hausse de salaire, ont été obligés de fournir l'excédant, d'abord sur leurs profits, ensuite sur leurs capitaux mêmes. Une foule de planteurs ont été ruinés de la sorte, d'autres ont fermé leurs ateliers pour échapper à une ruine immi- nente... Sans doute, il vaut mieux voir périr des accumulations de capitaux que des générations d'hommes mais ne vaudrait-il pas mieux que ni les uns ni les autres périssent?" ["जिन उपनिवेशों में दास-प्रथा समाप्त कर दी गयी है, लेकिन बेगार के श्रम का स्थान स्वतंत्र श्रम की उतनी ही मात्रा नहीं ग्रहण कर सकी है, वहां, जो कुछ हम रोजाना अपनी मांखों के सामने होते हुए देखते हैं, उसका बिल्कुल उल्टा होता है। वहां हम यह पाते हैं कि साधारण मजदूर उल्टे उद्यमकर्तामों का शोषण करने लगते हैं और उनको पैदावार का जितना हिस्सा सचमुच मिलना चाहिये, उससे बहुत अधिक मांगने लगते हैं। बागानों के मालिक चूंकि अपनी चीनी इतने ऊंचे दामों पर नहीं बेच पाते , जिनसे कि बढ़ी हुई मजदूरी का पड़ता पूरा हो सके, इसलिये उनको मजबूर होकर उसे पहले अपने मुनाफे में से और फिर अपनी पूंजी तक में से पूरा करना पड़ता है। इस तरह बागानों के बहुत से मालिक एकदम बरबाद हो गये हैं। दूसरों ने बरबादी से बचने के लिये चीनी बनाने के अपने कारखाने बन्द कर दिये हैं ... इसमें तो सन्देह नहीं कि मनुष्यों की कई पीढ़ियों के नष्ट हो जाने की अपेक्षा यह बेहतर है कि संचित पूंजी जाया हो जाये।" (पहा, मि० मोलिनारी ने यहां कितनी उदारता दिखायी है! ) "लेकिन इससे भी बेहतर क्या यह नहीं होता कि पूंजी भी ज्यों की त्यों रहती और इन्सान भी जिन्दा रहते ?"] (Molinari. "Etudes Economiques", Paris, 1846, पृ. ५१, ५२।) मि० मोलिनारी, यह आप क्या कह रहे हैं ! अगर योरप में "entrepreneur" (" उद्यमकर्ता") मजदूर को पैदावार के उसके part legitime (न्यायोचित भाग) से वंचित कर सकता है, और वेस्ट इण्डीज में मजदूर उद्यमकर्ता से उसका part legitime (न्यायोचित भाग) छीन सकता है, तो फिर दस मादेशों का, मूसा तथा अन्य पैगम्बरों का और पूर्ति तथा मांग के नियम का क्या होगा? और कृपया यह तो बताइये कि यह "part legitime" ("न्यायोचित भाग") कोनसा है, जिसे खुद आपके कथनानुसार योरप में पूंजीपति रोजाना देने से इनकार कर देता है ? मि० मोलिनारी इसके लिये अत्यन्त उत्सुक है कि अन्य स्थानों में पूर्ति और मांग का जो नियम अपने पाप काम करता है, उससे वहां दूर उन उपनिवेशों में, जहां मजदूर इतने
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