पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८६१

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८५८ पूंजीवादी उत्पादन . - दोनों सिद्धान्त की दृष्टि से एक ही है, वही स्वार्य उपनिवेशों में उसे सच्ची बात कहने के लिये और उत्पादन की दोनों प्रणालियों के विरोष को स्वीकार करने के लिये (to make a clean breast of it) मजबूर कर देता है। इसी उद्देश्य से वह यह साबित करता है कि जब तक मजदूरों को सम्पत्ति का अपहरण नहीं किया जाता और तबनुसार उनके उत्पादन के साधनों को पूंजी में नहीं बदल दिया जाता, तब तक श्रम की सामाजिक उत्पादक शक्ति का विकास, सहकारिता, श्रम-विभाजन, बड़े पैमाने पर मशीनों का उपयोग मावि, सब असम्भव रहते हैं। तपाकषित राष्ट्रीय धन को बढ़ाने के लिये अर्थशास्त्री जनता को बनावटी ढंग से गरीब बनाये रखने के उपाय खोजता है। इसलिये, यहां पर उसका तर्कपूर्ण पम-समर्थन का कवच सड़ी हुई लकड़ी की तह घोड़ा-थोड़ा करके टूटने और विसरने लगता है। ई० बी० वेकशील को उपनिवेशों के बारे में कोई नयी बात खोजकर निकालने का श्रेय नहीं है। उनको श्रेय इस बात का है कि उन्होंने उपनिवेशों में इस सत्य की खोज की है कि मातृभूमि में पायी जाने वाली पूंजीवादी उत्पादन की परिस्थितियां सचमुच कैसी है। जिस प्रकार संरक्षण की प्रणाली ने अपने प्रारम्भिक दिनों में मातृभूमि में बनावटी ढंग से पूंजीपतियों को पैरा करने की कोशिश की पी, उसी प्रकार बेकशीलके उपनिवेशीकरण के सिद्धान्त ने, जिसे कुछ समय तक इंगलैड ने संसद में कानून बनाकर जबर्जस्ती लागू करने की कोशिश की थी, उपनिवेशों में मजदूरी पर बम करने वाले मजदूरों को बनावटी ढंग से पैदा करने की चेष्टा की। इसे बैकफ्रीला में "systematic colonization" ("सुनियोजित उपनिवेशीकरण") का नाम दिया है। उपनिवेशों में वेकशील्ड ने सबसे पहले यह पता लगाया कि मुद्रा, जीवन-निर्वाह के साधनों, मशीनों और उत्पादन के अन्य साधनों का स्वामी होने पर भी पावनी पर उस वक्त तक पूंजीपति होने की छाप अंकित नहीं होती, जब तक कि पूंजीपति के साथ परस्पर सम्बब, मजबूरी पर काम करने वाला मजदूर भी वहां नहीं होता, यानी जब तक कि वहाँ एक और मादमी ऐसा नहीं होता, यो स्वेच्छा से अपने को बेचने के लिये मजबूर हो। कफील ने पता लगाया कि पूंजी कोई वस्तु नहीं है, बल्कि व्यक्तियों के बीच पाया जाने वाला एक ऐसा सामाजिक सम्बंध है, जो वस्तुओं के माध्यम से स्थापित होता है। इनको इस बात का बड़ा कुस है कि मि० पील इंगलैड से पश्चिमी प्रास्ट्रेलिया के स्वान-गदी नामक स्थान को जाते समय अपने साप ५०,००० . . माधुनिक उपनिवेशीकरण के विषय में वेकफ़ील्ड ने जो दूरदर्शितापूर्ण बातें कही है ... उनको मिराबो (बड़े) और फिजिमोक्रेट्स पहले ही कह चुके थे, और उनके भी पहले अंग्रेज अर्थशास्त्रियों ने वे सब बातें कह दी थीं। 'बाद को अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के संघर्ष में संरक्षण-प्रणाली एक प्रस्थायी प्रावश्यकता बन गयी। लेकिन उसका प्रयोजन कुछ भी हो, उसके परिणाम सदा एक जैसे ही होते हैं। 'हब्शी हशी होता है। कुछ बास तरह की परिस्थितियों में वह दास बन जाता है। म्यूल कपास कातने की एक मशीन होता है। केवल कुछ खास तरह की परिस्थितियों में ही वह पूंजी बन जाता है। जैसे सोना खुद अपने में मुद्रा नहीं होता और चीनी बद चीनी का दाम नहीं होती , वैसे ही इन परिस्थितियों के बाहर म्यूल भी पूंजी नहीं होता... पूंजी उत्पादन का एक सामाजिक सम्बंध है। वह उत्पादन का एक ऐतिहासिक सम्बंध है।" (Karl Marx, “Loknarbeit und Kapital", "Neue Rheinische Zeitung" के अंक २६६ में, ७ अप्रैल १८४६।)