८५६ पूंजीवादी उत्पादन व्यक्तिगत श्रम से उत्पन्न होने वाली विसरी हुई निजी सम्पत्ति के पूंजीवादी निजी सम्पत्ति में स्पान्तरित हो जाने की क्रिया स्वभावतया पूंजीवादी निजी सम्पत्ति के सामाजीकृत सम्पत्ति में पान्तरित हो जाने की क्रिया की तुलना में कहीं अधिक लम्बी, कठिन और हिंसात्मक होती है, क्योंकि पूंजीवादी निजी सम्पत्ति तो व्यवहार में पहले से ही सामाजीकृत उत्पादन पर भाषारित होती है। पहली क्रिया में सबरवस्ती अधिकार करने वाले चन्द व्यक्तियों ने प्राम जनता की सम्पत्ति का अपहरण किया था, दूसरी क्रिया में माम जनता सबरवस्ती अधिकार करने वाले बन्द व्यक्तियों की सम्पत्ति का अपहरण करती है।' 10 2 . . 'पूंजीपति-वर्ग न चाहते हुए भी उद्योग-धंधों की उन्नति करता है ; इससे मापसी होड़ के कारण उत्पन्न हुआ मजदूरों का बिलगाव ख़तम हो जाता है और उसकी जगह एकता पर माधारित उनका क्रान्तिकारी संगठन पैदा हो जाता है। इस तरह, माधुनिक उद्योग-धंधों का विकास पूंजीपति-वर्ग के पैरों के नीचे से उस जमीन को ही खिसका देता है, जिसके आधार पर वह उत्पादन और पैदावार का अपहरण करता है। इसलिये , पूंजीपति-वर्ग जो सबसे बड़ी चीज पैदा करता है, वह है खुद उसी की क़ा खोदने वाले लोगों का वर्ग। उसका खातमा और मजदूर-वर्ग की जीत, दोनों ही समान रूप से अनिवार्य हैं ... पूंजीपति-वर्ग के खिलाफ़ माज जितने भी वर्ग खड़े हैं , उन सब में केवल मजदूर-वर्ग ही वास्तविक रूप से क्रान्तिकारी वर्ग है। दूसरे वर्ग प्राधुनिक उद्योग-धंधों की चपेट में आकर नष्ट-भ्रष्ट और अन्त में गायब हो जाते हैं ; मजदूर-वर्ग ही उनकी विशेष और बुनियादी पैदावार है। निम्न-मध्यम वर्ग के लोग- छोटे कारखानेदार, दूकानदार, दस्तकार, किसान , ये सब -अपनी मध्य-वर्गीय हस्ती को बनाये रखने के लिये पूंजीपति-वर्ग से लोहा लेते हैं ... वे प्रतिक्रियावादी हैं, क्योंकि वे इतिहास के चक्र को पीछे की ओर घुमाने की कोशिश करते. है।" (Karl Marx und Friedrich Engels, "Manifest der Kommunistischen Partei" [कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स , 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा-पत्र'], London, 1848, पृ० ६, ११) .
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